60 की उम्र में फॉर्च्यूनर से 36,500 किमी का सफर कर 33 देश घूमने वाले अमरजीत सिंह
अपने सपनों को पूरा करने की कोई उम्र नहीं होती। शायद तभी कहा जाता है कि उम्र तो बस एक संख्या है। हमने कई बार ये लाइनें सुनी होंगी। दिल्ली के रहने वाले अमरजीत सिंह चावला ने इस कहावत को सच साबित कर दिखाया है। अमरजीत सिंह ने 60 वर्ष की उम्र में अपनी चार पहिया एसयूवी गाड़ी से 150 दिनों में 33 देशों में घूमने का कारनामा कर दिखाया। उन्होंने दिल्ली से अपने सफर की शुरुआत की थी और लंदन 33 देशों में घूमने के बाद अब वापस अपने वतन भारत लौट आए हैं।
अमरजीत सिंह पहले दिल्ली में कपड़ों के एक्सपोर्ट का बिजनेस करते थे। लेकिन 60 की उम्र पहुंचने पर उन्होंने एक तरह से रिटायरमेंट ले लिया। रिटायरमेंट के बाद उनके पास खाली टाइम बचा तो उन्होंने अपने सपने को पूरा करने की ठान ली। बीते साल 7 जुलाई 2018 को उन्होंने दिल्ली से अपना सफर शुरू किया था। उन्होंने अपनी 5 साल पुरानी टॉयोटा फॉर्च्यूनर को अपना साथी चुना। उन्होंने 36,500 किलोमीटर का सफर तय किया और 16 दिसंबर 2018 को लंदन में अपनी यात्रा का समापन किया।
सिंह ने इंडियाटाइम्स से बात करते हुए कहा, 'मैंने भारत से अपनी शुरुआत की थी और नेपाल, चीन, किर्गिस्तान, उजबेकिस्तान, कजाकिस्तान, रूस, पोलैंड, लिकटेंस्टीन, ऑस्ट्रिया, एस्टोनिया, लिथुआनिया, लातविया, स्वीडन, नॉर्वे, जर्मनी, स्विट्जरलैंड, बेल्जियम, चेक गणराज्य, हंगरी, स्लोवेनिया, स्लोवाकिया, इटली, स्पेन, पुर्तगाल, लक्समबर्ग, मोनाको, फ्रांस, नीदरलैंड, डेनमार्क होते हुए लंदन पहुंचा।'
अमरजीत सिंह फैमिली बिजनेस करते हुए अक्सर घूमने के बारे में सोचा करते थे, लेकिन तमाम व्यस्तताओं के चलते वे घूमने का सोच भी नहीं पाते थे। इस सपने को पूरा करने के लिए उन्हें 40 सालों का लंबा इंतजार करना पड़ा। वे बताते हैं, '1979 में मैं एक जर्मन दंपती से मिला था जो भारत भ्रमण पर आए थे। उस वक्त मेरी उम्र सिर्फ 20 साल थी। जब मैंने उनकी कहानी सुनी तो मेरे मन में भी दुनिया के अलग-अलग देशों को घूमने की इच्छा जागी। इसके बाद मैंने अपने दोस्त के साथ बाइक से जर्मनी जाने का प्लान बनाया और अपने पिता जी से अनुमति मांगी लेकिन उन्होंने साफ मना कर दिया। '
पिताजी के मना करने के बाद अमरजीत सिंह घूमने के लिए नहीं जा पाए, लेकिन वे हमेशा से मौके की तलाश में रहे। रिटायरमेंट के बाद उन्हें अब जाकर यह मौका मिला। अमरजीत सिंह बताते हैं कि उन्हें लगभग तीन महीने तो सिर्फ कागजी कार्रवाई करने और अनुमति लेने में लग गए। उनके पिता की उम्र अब 80 वर्ष हो चली है। वे बताते हैं कि इस फैसले से उनके परिवार का हर सदस्य खुश था और सबने उनकी हौसलाफजाई की।
इस सफर की सबसे खास बात ये रही कि अमरजीत सिंह को उस जर्मन दंपती से मिलने का मौका मिला जो 1979 में उनसे भारत में मिले थे। वे कहते हैं, '1979 के बाद उनसे मेरा कोई संपर्क नहीं था, लेकिन उनके नाम मुझे पता था और ये भी पता था कि वे किस शहर में रहते हैं। मैंने जर्मनी पहुंचकर उनसे मुलाकात की।'
हालांकि इस सफर में उन्हें तमाम तरह की चुनौतियां भी मिलीं। वे बताते हैं, 'मेरी उम्र 60 की हो चली है और मुझे कई तरह की स्वास्थ्य संबंधी दिक्कतों का सामना करना पड़ता है फिर वो चाहे ब्लड प्रेशर हो या फिर डायबिटीज। सबसे बड़ी दिक्कत यूरोपियन स्टाइल टॉयलेट के न मिलने की थी। नेपाल से लेकर लगभग रूस तक मुझे इस दिक्कत का सामना करना पड़ा। इसके बाद मेरी सबसे बड़ी दिक्कत खाने की थी। मैं एक शाकाहारी व्यक्ति हूं लेकिन चीन जैसे इलाकों से गुजरते हुए शाकाहारी खाना ढूंढ़ना अंसभव जैसा काम लगता था।'
इस सफर ने अमरजीत को काफी कुछ सिखाया। वे बताते हैं कि नए लोगों से मिलना और उनकी संस्कृति और परिवेश को देखना अचंभित करने वाला अनुभव था। वे कहते हैं, 'ये दुनिया अच्छे लोगों से भरी है। आपको किसी अजनबी देश में भी पूरी मदद मिल जाए तो आपका दिल खुश हो जाता है। मुझे लोगों के स्वागत और सत्कार ने अभिभूत कर दिया।' हालांकि अभी अमरजीत का सफर थमा नहीं है। उनका कहना है कि वे सातों महाद्वीपों की सैर करेंगे और कम से कम 100 देशों तक घूमेंगे।
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