World Bicycle Day: कहां गई वो एटलस साइकिल, जो गांव की कच्ची पगडंडी से लेकर शहर की सड़क तक पर करती थी राज
एटलस साइकिल ने बुलंदियों का आसमान भी देखा और फिर ऐसी गिरी कि आखिर में बंद ही हो गई...
देश की आजादी के ठीक बाद का वक्त था, चारों ओर विकास की दरकार थी...रास्ते कच्चे थे, लोग पैदल, बैलगाड़ी और घोड़ागाड़ी से अपनी मंजिल पर पहुंचा करते थे. उस दौर में आया एक ऐसा शख्स, जिसने लोगों की परेशानी को समझा..उसकी कंपनी ने देश के आम लोगों को दोपहिया से सवारी करना क्या होता है यह सिखाया, जिसने गांवों से लेकर शहरों तक यातायात को आसान बनाया...वह शख्स थे जानकी दास कपूर (Janki Das Kapur) और कंपनी का नाम था एटलस (Atlas)...
एटलस साइकिल ने बुलंदियों का आसमान भी देखा और फिर ऐसी गिरी कि आखिर में बंद ही हो गई. कभी भारत की सड़कों पर एटलस एकछत्र राज करती थी और राष्ट्रीयता का प्रतीक मानी जाती थी. लेकिन फिर ऐसी हारी कि 70वें जन्मदिन के एक साल पहले ही बंद हो गई.
कैसे हुई शुरुआत
यह उस दौर की बात है, जब ग्रामीण भारत में टूव्हीलर ट्रांसपोर्टेशन की क्रांति दूर-दूर तक कहीं नहीं थी. जानकी दास कपूर ने 1951 में एटलस साइकिल कंपनी को शुरू किया. शुरुआत में वह एक टिन शेड में साइकिल की गद्दी बनाते थे. फिर उन्होंने सपना देखा..एक ऐसी साइकिल का, जो लोगों के बजट में आ सके. फिर नींव पड़ी एटलस साइकिल इंडस्ट्रीज की और 1952 में पहली साइकिल बनकर तैयार हुई. इसी साल पहली फैक्ट्री 25 एकड़ में शुरू की गई. कंपनी ने पहली साल फैक्ट्री से 12000 साइकिलों का उत्पादन किया और बस एटलस के अच्छे दिनों की शुरुआत हो गई. 1950-80 के दौर में शुरुआत में एटलस गोल्डलाइन ने बाजार में एंट्री की.
अंतरराष्ट्रीय बाजार में दी दस्तक
एटलस साइकिल की बजट में आ सकने वाली कीमत ने इसे आम आदमी की साइकिल बनाया और ग्रामीण व शहरी क्षेत्रों में दोपहिया से ट्रांसपोर्टेशन का अहम जरिया भी. साल 1958...वह वर्ष जब एटलस ने अंतरराष्ट्रीय बाजार में कदम रखा. उसके बाद मिडिल ईस्ट, म्यांमार और साउथ अफ्रीका समेत कई देशों में इसे एक्सपोर्ट किया गया. 2004 में एटलस 50 देशों में निर्यात कर रही थी. 1961 में एटलस ने 10 लाख साइकिलों के उत्पादन का आंकड़ा पार किया. 1965 आतेआते कंपनी भारत की सबसे बड़ी साइकिल मैन्युफैक्चरर बन गई.
जब साइकिल का दूसरा नाम ही हो गया एटलस
एटलस ने कुछ ऐसी पॉपुलैरिटी बटोरी कि एक वक्त ऐसा भी आया, जब साइकिल का दूसरा नाम ही एटलस हो गया. भारत के बाजारों पर एटलस का एकछत्र राज चलने लगा. एटलस कभी हर साल 40 लाख साइकिलों का उत्पादन करती थी. शुरुआत में कपूर ने एटलस के मॉडल्स बेसिक रखे. लेकिन जब एटलस घर-घर में पहचानी जाने लगी, तब कंपनी ने रीबल साइकिल को उतारा. इसकी मार्केटिंग एडवेंचर बाइक के तौर पर की गई. इसके बाद आई 10 गियर वाली Atlas Concorde. 1978 में एटलस ने भारत की पहली रेसिंग साइकिल को लॉन्च किया और इसी साइकिल ने कंपनी को 1982 में दिल्ली एशियन गेम्स का आधिकारिक सप्लायर बना दिया. एटलस भारत की पहली कंपनी थी, जिसने ट्विन सस्पेंशन डबल शॉकर बाइक और पावर ब्रेक्स की पेशकश की. 1988 में एटलस की 20 तरह की रेंजर साइकिलें बनती थीं.
कैसे आई बुलंदियों से फर्श पर
जनवरी 1967 में जानकी दास कपूर की मृत्यु हो गई. इसके बाद उनके तीनों बेटों ने साइकिल कंपनी के बिजनेस को संभाला. फिर कारोबार की बागडोर तीनों बेटों के बच्चों के हाथों में आई. लेकिन 2000 के दशक में अचल प्रॉपर्टी को लेकर तीनों भाइयों और उनके बेटों में विवाद शुरू हुआ और एटलस साइकिल कंपनी तीन डिवीजन्स में बंट गई. इस विवाद से कंपनी को नुकसान होने लगा. इसके अलावा एक वजह यह भी रही कि समय गुजरने के साथ आम आदमी की खरीद क्षमता में इजाफा हुआ. मिडिल क्लास हाउसहोल्ड, कार या मोटरसाइकिल खरीदने में सक्षम हो गया. साथ ही मार्केट में दूसरी साइकिल कंपनियां आ जाने से कॉम्पिटीशन बढ़ गया.
अब सभी प्लांट हो चुके हैं बंद
लगातार नुकसान होने से साल 2014 में मध्य प्रदेश के मालनपुर में एटलस की फैक्ट्री बंद हुई. उसके बाद एक-एक कर इसकी सभी फैक्ट्री बंद हो गईं. साल 2020 में 3 जून को विश्व साइकिल दिवस पर कंपनी ने गाजियाबाद के साहिबाबाद में स्थित आखिरी कारखाना भी बंद कर दिया. साहिबाबाद प्लांट देश में एटलस का सबसे बड़ा प्लांट था. एटलस के पास फंड की कमी है, जिससे वह न ही प्रॉडक्शन बरकरार रख सकती है और न ही सैलरी का भुगतान कर सकती है. एटलस साइकिल्स ने प्लांट्स को अनिश्चित काल के लिए बंद किया है. लेकिन आज भी कई लोग इस उम्मीद में हैं कि कंपनी वापसी करेगी.