एक टूटे मोबाइल को बनाने के संघर्ष से शुरू हुआ था आज के सफल उद्यमी हरमीत सिंह की ज़िंदगी का सफ़र
फरीदाबाद के एनआईटी मुहल्ले में जन्मे हरमीत सिहं एक निम्न मध्यमवर्गीय सिख परिवार से संबंध रखते हैं। उनके पिता यहाँ एक वर्कशॉप चलाते थे। हरमीत ने भी अपने बचपन में कई बार पिता के इस वर्कशॉप में हथौडे चलाये हैं। आर्थिक स्थितियाँ कुछ ऐसी थीं कि हरमीत अपनी शिक्षा 10वीं से आगे नहीं बढ़ा पाये। दिल्ली के करोलबाग़ मार्केट में एक छोटी सी मोबाइल रिपेयरिंग शॉप नौकरी भी करनी पड़ी, लेकिन यहीं से हुए अपने कारोबार को उन्होंने कई क्षेत्रों में विस्तार दिया, विशेषकर हर नयी चीज़ को चाहने वाले और इलेक्ट्रानिक्स और ऑटोमेटिव में नये-नये प्रयोग करने के उनके शौक़ ने उन्हें दुनिया भर की यात्रा करवाई और आज वो मोटरकोट्स ऑटो स्पा को लेकर हाज़िर हुए हैं।
मोटरकोट्स इंडिया द्वारा कारों को ग्लैमरस बनाने के कारोबार में कदम रखने वाले हरमीत सिंह की कहानी उनके हाथ से एक सेलफोन के टूटने से शुरू हुई थी। यह सेलफोन उनके मित्र का था। हरमीत ने योर स्टोरी को बताया कि तब सेलफोन अभी-अभी बाज़ार में आया था और फरीदाबाद में इसके रिपेयरिंग की कोई दुकान नहीं थी। हरमीत ने बताया,
'मेरे हाथ से एक दोस्त का सीमन्स का काफी महेंगा सेलफोन टूट गया। पूरा फरीदाबाद घूमा, लेकिन वह बन नहीं पाया। किसी ने बताया कि दिल्ली के करोलबाग़ में मोबाइल रिपेयरिंग की दुकानें हैं। दिल्ली गया तो वहाँ मेकानिक ने दो हज़ार रुपये मांगे। इतने पैसे मेरे पास थे नहीं, लेकिन मोबाइल बनवाना भी ज़रूरी था। पिताजी से इतने रूपये मांग नहीं सकता था, क्योंकि जानता था कि उनके पास भी एक साथ इतने रुपये नहीं मिल पाएंगे। इधर-उधर से रुपये जमा करने के लिए 20 दिन लग गये। मोबाइल तो बन गया, लेकिन उसी दिन से ठान लिया कि अब कोई मोबाइल खराब होगा तो खुद ही बनाऊँगा।'
हरमीत सिंह को उसी दिन से धुन सवार हो गयी कि वे मोबाइल टेक्नोलॉजी के बारे में अधिक से अधिक जानकारी प्राप्त करें। वे दोस्तों के खराब मोबाइल लेते उन्हें खोलते और फिर कोशिश करते कि इसके बारे में अधिक से अधिक जानकारी प्राप्त करें। कई बार ऐसा होता कि थोड़ी बहुत धूल साफ करने से मोबाइल की खराबी दूर हो जाती। गंभीर समस्याओं को सुलझाने के लिए उन्होंने कई तरकीबें निकालीं। एक मित्र का सेलफोन खराब हो गया तो उन्हें एक आइडिया सूझा। उन्होंने आईसी पर कुछ खास निशान लगाये और फिर उसे मेकानिक को दिया। जब सेलफोन बनकर आया तो वे जान गये कि उसमें क्या बदला गया है। इसी तरह से उनकी जानकारी बढ़ती गयी और एक दिन उनकी दिलचस्पी देखकर एक जान पहचान वाले ने उन्हें जालंधर में अपनी दुकान खोलने के लिए कहा। इस तरह उनकी पहली दुकान जालंधर में खुली, जहाँ उस समय काफी एनआरआई आया करते थे। बहुत जल्द ही वे मोबाइल रिपेयरिंग ट्रेनर के रूप में मशहूर गये, लेकिन यह उनकी मंज़िल नहीं थी। दिल्ली के करोलबाग में उनका आना जाना काफी बढ़ गया था। यहाँ उन्हें एक दुकान में नौकरी मिल गयी। जालंधर की अपनी दुकान एक मित्र को देकर वे दिल्ली चले आये।(आज भी यह दुकान उन्हीं के नाम से है।) कुछ ही दिन में उन्होंने जान लिया कि मोबाइल और कंप्यूटर की रिपेयरिंग का कारोबार काफी फ़ायदेमंद है। उन्होंने किस्तों पर एक कंप्यूटर भी ख़रीद लिया और विभिन्न प्रकार के साफ्टवेयर डाउनलोड करने के बारे में जानकारी प्राप्त करने लगे।
करोलबाग़ में फोन अनलॉक करने के वाले विशेषज्ञ के रूप में भी जाने गये, लेकिन यह भी उनकी मंज़िल नहीं थी। उन्हें हर नयी टेक्नोलॉजी में कारोबार करने की चाह ने कभी रुकने नहीं दिया। उस दिन उनकी खुशी का ठिकाना नहीं था, जिस दिन उन्होंने दिल्ली में वो मकान ख़रीदा, जहाँ पर वो किराए पर रहा करते थे। बाज़ार में भी उनकी उपस्थिति अब मायने रखने लगी थी। सेलफोन के बाद सीसीटीवी कैमरा, ड्रोन और उसके बाद अब कारकोटिंग में उन्होंने कदम रखा।
मोबाइवाला.कॉम और जीएसएमफादर.कॉम पर उन्होंने अपना कारोबार चलाया और आज मोटरकोट के क्षेत्र में वे नये कारोबार के प्रथम कारोबारी माने जाते हैं। उन्होंने दिल्ली के बाद हैदराबाद में अपना स्टूडियो खोला है।
कारों को ग्लैमरस बनाए रखने का यह कारोबार शुरू करने के पीछे एक दिलचस्प घटना है। हरमीत बताते हैं कि 10 साल पहले उन्होंने एक पुरानी कार खरीदी। हालाँकि वह अच्छी हालत में थी, लेकिन पाँच छह महीने नहीं गुज़रे थे कि कार का रंग पीला पड़ने लगा। उनके मन में आया कि ऐसी कोई तकनीक होनी चाहिए, जिससे कार का रंग पीला न पड़े। यह ख्याल उस समय अधिक दिन तक टिक नहीं पाया। वे अपने कारोबार में लग गये। अब जब उन्होंने दो साल पहले एक मर्सडीज़ ख़रीदी और उसका भी रंग फीका होने लगा तो उन्हें लगा कि कुछ न कुछ करना होगा। वे ऐसी तकनीक की तलाश में लग गये, जो कार के रंग को फीका होने से रोके। वे जर्मनी, इटली और जापान सहित कई देशों में इस तकनीक की तलाश करते रहे। अपनी कार पर इसका प्रयोग भी किया और फिर वे इसमें कामयाब हो गये। छह महीने पहले दिल्ली में अपना पहला स्टूडियो खोला।
हरमीत बताते हैं कि दिल्ली में मोटरकोट्स ऑटो स्पा को मिले प्रोत्साहन के बाद उन्होंने सोचा कि यह कारोबार देश भर में चलेगा। देश के दूसरे शहर के रूप में उन्होंने हैदराबाद को चुना है। इसके बाद वे बैंगलूर एवं अन्य शहरों का रुख कर रहे हैं। हरमीत कहते हैं,
'रोटी, कपड़ा और मकान के साथ गाड़ी भी अब आदमी की ज़रूरतों में शामिल हो गयी है। जब वो गाड़ी में निकलता है तो चाहता है कि वह चमकती रहे, लेकिन हमेशा कार को गलैमरस बनाए रखना संभव नहीं हो पाता। इसके लिए लगभग 2 वर्ष के शोध के बाद मैंने कारों के रंग और लेयर को चमकदार बनाए रखने के लिए जापान से आयातित तकनीक के उपयोग में सफल रहा। दिल्ली में जब इसका प्रयोग सफल रहा तो मैंने सोचा कि यह हर शहर में होना चाहिए।'
मोटरकोट इंडिया ने के देश के 21 शहरों में 30 मोटरकोट्स ऑटो स्पा खोलने की योजना बनायी है। हरमीत कहते हैं कि भारत में यह तकनीक नयी है, लेकिन उन्हें उम्मीद है कि यह धीरे-धीरे लोकप्रिय हो जाएगी।
उन्होंने मोटर कोटिंग में अपना काम कर दिया है। अब उन्हें एक और क्षेत्र में कदम रखना है। वह है ड्रोन का क्षेत्र। वे चाहते हैं कि ड्रोन का उपयोग आपातकालीन स्थितियों में राहत कार्यों में किया जा सकता है। हरमीत कहते हैं,
'मैं देखता हूँ कि बड़ी-बड़ी अग्निदुर्घटनाओं में लोगों को बचाते हुए हमारे अग्निशमन कर्मी और कभी कभी आम लोग भी अपनी जान जोखिम में डालते हैं। ड्रोन इसका बेहतरीन विकल्प है। इससे हम ऐसी जगहों पर पहुँच सकते हैं, जहाँ आदमी आसानी से नहीं पहुँच सकता लोगों की जान भी बचायी जा सकती है।'
हरमीत अपने जीवन के चुनौतीपूर्ण कार्यों के बारे में बताते हैं कि देखा जाए तो सारे काम मुश्किल थे, लेकिन शौक़, जिज्ञासा और मेहनत से उनके क़दम आगे बढते रहे। यही कारण है कि आज उनकी विभिन्न कंपनियों में लगभग 200 लोग काम कर रहे हैं। वे चाहते हैं कि वे रुके नहीं, बल्कि दुनिया में जहाँ कहीं भी नयी तकनीक और टेक्नोलॉजी बने वे उसे भारत लाने में जुट जाएँ।