इन्हें पढ़िए, यकीन हो जाएगा, आप सब कर सकते हैं बस एक आइडिया ज़रूरी है...
आप जब किसी चीज की तलाश में नहीं होते हैं, कई बार वही आपके सामने सबसे अच्छी कहानी बनकर सामने आ जाती है। धर्मशाला में मैं एक ऐसी जोड़ी से बात कर रहा था जो एक स्टार्टअप की शुरुआत कर रहे थे और जिसके लिए वे अमेरिका जाने की तैयारी में थे। कंपनी का नाम था ओल्ड याक बाजार और जो चीज वो बेचते थे उनमें हाथी के मल से बने पेपर भी शामिल हैं। मैं उनके इस कारोबार के बारे में और अधिक जानकारी जुटाना चाहता था, अब जबकि ओल्ड याक बाजार एक दूसरी कहानी का विषय था, मैंने इन पेपर बनाने वालों के बारे में और अधिक जानकारी जमा करने का तय किया। मुझे मालूम पड़ा कि इस पेपर के पीछे विजेंद्र शेखावत और महिमा मेहरा का हाथ है।
2003 में शुरुआत करने के बाद इनकी लोकप्रियता लगातार बढ़ती गई क्योंकि इनका काम ही कुछ अलग था और जिसका मुकाबला करना थोड़ा मुश्किल था, पर इनकी कहानी ऐसी थी जिसका जिक्र करना जरूरी था। जयपुर में एक मठ में रहने के दौरान महिमा ने विजेंद्र को उनके सामने जमा हाथी के मल के पहाड़ के बारे में बताई थी। तब उन्होंने हाथी के मल को नजरअंदाज किया लेकिन इसने उन्हें उनके कदम पर रुकने पर मजबूर भी कर दिया। हाथी के मल की दुर्गंध, उसकी बनावट और उसकी गंदगी को दरकिनार करते हुए विजेंद्र की रुचि को देखते हुए इस काम में जुट गई। वह हमेशा से ही विभिन्न चीजों से पेपर बनाने का प्रयोग करते रहते थे और उनके लिए ये भी एक प्रयोग ही था जिसके लिए काफी कुछ किया जाना था।
उन्होंने हाथी का थोड़ा सा मल उठाया और फिर उस पर काम करना शुरू किया। काफी मशक्कत के बाद वे इसका पेपर बनाने में कामयाब हुए – और इस तरह हाथी छाप पेपर ब्रांड अस्तित्व में आया। आखिर ये कैसे बना?
हाथी के मल से कागज बनाने का तरीका कमो-बेश वैसा ही है जैसा हाथ से बनाए जाने वाले किसी भी कागज को बनाने का तरीका। हां, हाथी के मल में ज्यादा मात्रा में रेशा होने की वजह से इसमें थोड़ा बदलाव करना पड़ा। दोनों ने बताया, “हमारे लिए सबसे बड़ी चुनौती ये तय करना थी कि हम जिस चीज से कागज बना रहे हैं वो न तो हमारे लिए नुकसादेह हो और न ही इसे इस्तेमाल करने वालों को कोई खतरा हो, इसलिए इसे जीवाणुमुक्त बनाने के लिए हमने इसमें कीटनाशक का इस्तेमाल किया।”
हाथी का मल जमा करना
हाथी के मल को साफ करना
पकाना
छंटाई करना
लुगदी बनाना
परत बनाना
सुखाना
कैलेंडरिंग
विकास
शुरुआत के चार साल तक इस उत्पाद को जर्मनी निर्यात किया गया, फिर 2007 में भारत में इसकी बिक्री शुरू की गई। कंपनी जयपुर में स्थित है और पिछले छह साल के दौरान हाथी छाप ने अपनी पहुंच 50 स्टोर्स तक बना ली है और इसके साथ ही कुछ ऑनलाइन स्टोर्स में इसके प्रोडक्ट बिक रहे हैं। कंपनी की ज्यादातर आय निर्यात से आती है और पिछले वित्त वर्ष की बात करें तो कंपनी ने करीब 35 लाख रुपये की आय की थी।
इसकी क्षमता और इस तरह के दूसरे कारोबार
भारत में इस तरह के काम की कोई कमी नहीं है और इस तरह के कारोबार को बढ़ावा देना काफी फायदेमंद होता है। चाहे आप दो बच्चों के साथ माकू टेक्सटाइल की बात करें या इवोमो वेहिकल की करें, देश में ऐसे तमाम लोग हैं जो अलग-अलग चीजों पर काम कर रहे हैं।