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कन्याकुमारी से श्रीनगर तक कैसे बदल रही है महिलाओं की ज़िंदगी, 'मॉडर्न दांडी मार्च' से

कन्याकुमारी से श्रीनगर तक कैसे बदल रही है महिलाओं की ज़िंदगी, 'मॉडर्न दांडी मार्च' से

Friday January 12, 2018 , 4 min Read

देशभर भर में वॉकिंग मिशन पर निकली सृष्टि बक्शी का नाम बहुतों की जुबान पर है। कारण है, उनका वॉकिंग मिशन, जिसके ज़रिये वो यौन हिंसा/यौन उत्पीड़न के खिलाफ महिलाओं को ना सिर्फ जागरूक कर रही हैं, बल्कि उन्हें शिक्षित करने और सशक्त बनाने के लिये उनके रोजगार तक की व्यवस्था करने से नहीं हिचकतीं।

साभार: द हिंदू

साभार: द हिंदू


260 दिनों में सृष्टि भारत का 38000 किमी. का सफर कर महिलाओं के अंदर बदलाव का अलख जगाना चाहती हैं। एक एप क्रॉसबोन के जरिए उनके इस 'मॉडर्न दांडी मार्च' से जुड़ा जा सकता है।

अपनी पूरी यात्रा के दौरान उन्होंने महिलाओं, लड़कियों, पुलिस और लोकल सरकारी तंत्र के लिये वर्कशॉप कराने का निश्चय किया। इसके ज़रिये डिजिटल और आर्थिक जानकारी, स्वास्थ्य, हाइजीन,सैनिटेशन, लीडरशीप, अपने अधिकार और लिंग सतर्कता के बारे में जागरूक किया जाता है।

देशभर भर में वॉकिंग मिशन पर निकली सृष्टि बक्शी का नाम बहुतों की जुबान पर है। कारण है, उनका वॉकिंग मिशन, जिसके ज़रिये वो यौन हिंसा/यौन उत्पीड़न के खिलाफ महिलाओं को ना सिर्फ जागरूक कर रही हैं, बल्कि उन्हें शिक्षित करने और सशक्त बनाने के लिये उनके रोजगार तक की व्यवस्था करने से नहीं हिचकतीं। एक एप क्रॉसबोन के जरिए उनके इस 'मॉडर्न दांडी मार्च' से जुड़ा जा सकता है। अपने मूवमेंट का नाम क्रॉसबो रखने के पीछे सृष्टि ने खास वजह बताई। एक ऐसा हथियार जो धीरे काम कर रहा है, पर असर ज़रूर दिखाएगा। इसके पीछे मेहनत लगेगी, हिम्मत रखना होगा, और तीर निशाने पर लगे इसके लिये जूझना होगा। ऐसे हालातों में इन्हीं सब की ज़रूरत तो पड़ती है।

260 दिनों में सृष्टि भारत का 38000 किमी. का सफर कर महिलाओं के अंदर बदलाव का अलख जगाना चाहती हैं। शुरूआत कन्याकुमारी से किया है उन्होंने और वो कश्मीर तक अपनी पहल के ज़रिये महिलाओं की ज़िंदगी जीने का नज़रिया बदलना चाहती हैं। भारत को लड़कियों और महिलाओं के लिये सुरक्षित बनाना चाहती हैं। सृष्टि के मुताबिक मीडिया पहले ही लोगों को यौन उत्पीड़न और हिंसा के खिलाफ लड़ने के लिये काफी हिम्मत जुटा रही है, तो सिर्फ इस मुद्दे पर फोकस करने से कुछ नहीं होगा। होगा उनके लिये उपाय निकालने से। उनकी ज़िंदगी को बेहतर बनाने से। तो अपनी पूरी यात्रा के दौरान उन्होंने महिलाओं, लड़कियों, पुलिस और लोकल सरकारी तंत्र के लिये वर्कशॉप कराने का निश्चय किया। इसके ज़रिये डिजिटल और आर्थिक जानकारी, स्वास्थ्य, हाइजीन,सैनिटेशन, लीडरशीप, अपने अधिकार और लिंग सतर्कता के बारे में जागरूक किया जाता है।

साभार: सोशल मीडिया

साभार: सोशल मीडिया


बकौल सृष्टि, 'अंतर्राष्ट्रीय एशियन मार्केटिंग टीम की हेड होने के नाते अपने विदेशी सहकर्मियों के साथ जह भारत की महिलाओं की स्थिति बारे में चर्चा होती है, तो सबसे पहले यौन उत्पीड़न पर बात निकलती है (मैं सच जानते हुए बात पर कुछ तर्क रखने की कोशिश करती हूं)। वैसे यौन उत्पीड़न के मामले बारत भर में सीमित तो हैं नहीं, पर उनकी बातें भी गलत नहीं होतीं। तो भारत की महिलाओं के लिये कुछ करने की चाहत यहीं से शुरू हुई। काम खासकर तब से शुरू किया जब 2016 में बुलंदशबर में मां-बेटी से साथ रेप की खबर ने अंदर तक झकझोर दिया। हर दिन मैं और मेरे पति इस बात पर चर्चा करते कि क्या किया जाए और कैसे । बोर्ड पर आइडिया लिखते और मिटा देते। आखिर में एक दिन मैंने सबकुछ लिखा मिटाया, और बस लिखा 'वॉकिंग'। और इसी दिन क्रॉसबो का जन्म हुआ।'

15 सिंतबर 2017 से इस मिशन में लगीं 30 साल की सृष्टि बक्शी के मुताबिक, कई बार उनके सामने भी ऐसे पल आते हैं, जब वो असहज हो जाती हैं। कई लोग उनके साथ सेल्फी लेने के लिये इतने करीब आ जाते हैं, कि उनसे दूरी बनाना ही बेहतर लगता है। उन्हें यह बात समझ नहीं आती कि उनकी यह हरकत कितना परेशान करती है। अब तक 40 शहरों से ज्यादा में लोगों और महिलाओं को जागरूक करने के बाद जब ऐसे हालात का सामना उन्हें करना पड़ता है, तो वो सोच में पड़ जाती हैं कि जिन महिलाओं को यौन उत्पीड़न या हिंसा झेलनी पड़ती है, उनके लिये ज़िंदगी कितनी मुश्किल होती होगी।

महिलाएं पहले के मुकाबले आज इंटरनेट के माध्यम से काफी सशक्त बन रही हैं। इंटरनेट ने उन्हें खाना पकाना, अंग्रेज़ी बोलना, जुर्म के खिलाफ लड़ना सिखाया है। पर हिम्मत उनके अंदर आती है सीधे संवाद से, जो सृष्टि करती हैं उनके बीच जाकर। पर अब भी कई ऐसे प्रदेश हैं, जहां इंटरनेट की पहुंच नहीं है, इसलिये सृष्टि कि ये मेहनत रंग ला रही है। सृष्टि का साथ देने के लिये आप भी अपनी पहल कर सकते हैं, कॉसबो मूवमेंट के साथ जुड़कर। द क्रॉसबो एप अपने फोन पर डाउनलोग कर अपनी पसंद की मदद कर के। 

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