बाप-बेटी का अनूठा स्टार्टअप, बिना धूल और गंदगी के कर रहे पेंटिंग
वाकया है 1996 का, जब अतुल ठाणे स्थित अपने घर की पुताई कर रहे थे। इस दौरान धूल और गंदगी से उनके दोनों बच्चे बीमार हो गए। इसके बाद उन्होंने रिसर्च शुरू की और लगभग दो दशकों की मेहनत के बाद उन्हें सफलता हासिल हुई।
अतुल नागपुर में पैदा हुए और उन्होंने अपनी इंजीनियरिंग की पढ़ाई भी वहीं से पूरी की। पढ़ाई के दिनों में वह एक अच्छे विद्यार्थी थे और अक्सर क्लास में टॉप भी करते थे। इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग करने के बाद, अतुल ने क्रॉम्पटन ग्रीव्स के साथ 5 साल काम किया और इसके बाद वह सऊदी अरब चले गए।
बहुत कम लोग ऐसे होते हैं, जो जिंदगी में मिलने वाली चुनौतियों से सबक लेकर, दूसरों के लिए राह आसान बनाने की कोशिश करते हैं। कुछ ऐसी ही कहानी है, महाराष्ट्र के अतुल इंगले की। अतुल इंगले अपनी बेटी नियति के साथ एक पार्टनरशिप फर्म चलाते हैं, जिसके जरिए वे दोनों ‘डस्टलेस पेंटिंग’ यानी ऐसी पेंटिंग की सुविधा देते हैं, जिसमें धूल और गंदगी नहीं पैदा होती। बाप-बेटी की इस जोड़ी ने 2014 में अपनी इस फर्म की शुरूआत की थी।
वाकया है 1996 का, जब अतुल ठाणे स्थित अपने घर की पुताई कर रहे थे। इस दौरान धूल और गंदगी से उनके दोनों बच्चे बीमार हो गए। इसके बाद उन्होंने रिसर्च शुरू की और लगभग दो दशकों की मेहनत के बाद उन्हें सफलता हासिल हुई। 2016-17 तक उनकी कंपनी का टर्नओवर करीबन 30 लाख रुपए तक था। अतुल को अपने काम से मुनाफा तो नहीं हुआ, लेकिन पैसा उनका लक्ष्य कभी नहीं था। उनका मानना है कि उनका मकसद सिर्फ इतना सा है कि वह एक ऐसी तकनीक बना सके और लोगों तक पहुंचा सकें, जो बच्चों के लिए हानिकारक न हो। 15 सालों तक वह अपने प्रयोगों में कई बार फेल हुए, लेकिन आखिरकार 2013 में उन्हें सफलता हासिल हुई और उन्होंने अपने दोस्त के घर पर अपने प्रयोग का पहला सफल प्रयोग किया। यह उनका पहला प्रफेशनल ऑर्डर था।
कंपनी को पहला ऑर्डर अतुल के दोस्त वसंत विहार के दोस्त धीरल गडगिल से मिला। काम में कुल 21 दिनों का समय लगा और कंपनी को 3 लाख रुपए का पेमेंट मिला। अतुल बताते हैं कि उनके दोस्त धीरज को उनकी रिसर्च के बारे में पता था और इसलिए ही उन्होंने अतुल के सामने पेशकश रखी।
अतुल ने पेंटिंग के दौरान घर का एक भी सामान इधर-उधर नहीं किया। काम में उन पेंटरों का सहयोग लिया गया, जिन्हें अतुल महीनों से प्रशिक्षण दे रहे थे। अतुल ने बताया कि उनका पहला काम सफल हुआ और उनके दोस्त धीरज, काम से काफी खुश भी हुए। धीरज ने अपने अन्य दोस्तों को अतुल के काम के बारे में बताया और इस तरह का अतुल के काम का प्रमोशन होने लगा।
अतुल नागपुर में पैदा हुए और उन्होंने अपनी इंजीनियरिंग की पढ़ाई भी वहीं से पूरी की। पढ़ाई के दिनों में वह एक अच्छे विद्यार्थी थे और अक्सर क्लास में टॉप भी करते थे। इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग करने के बाद, अतुल ने क्रॉम्पटन ग्रीव्स के साथ 5 साल काम किया और इसके बाद वह सऊदी अरब चले गए। वहां पर उन्होंने अलग-अलग कंपनियों में 2004 तक काम किया। अतुल बताते हैं कि नौकरी के दिनों में भी उनकी रिसर्च जारी थी। दो सालों की रिसर्च के बाद 1998 में अतुल ने एक मशीन विकसित की, लेकिन वह सफल नहीं हुई और उन्होंने अपना शोध जारी रखा।
2004 में वह भारत वापस आए और आखिरकार 2011 में उनका प्रयोग अंजाम तक पहुंचा। अतुल बताते हैं कि इस दौरान ही उन्होंने बिना धूल के अपने घर की पुताई की। 2014 में अतुल ने 28 लाख रुपए का निवेश किया और अपना बिजनेस शुरू किया। उन्होंने एक स्क्रबिंग मशीन विकसित की, जो डस्ट कंट्रोल करती थी। अतुल की बेटी नियति ने बकिंघम यूनिवर्सिटी से मास मीडिया में बैचलर्स किया और इसके बाद देश वापस आकर सीएनबीसी के साथ काम किया। 2014 में वह अपनी नौकरी छोड़, पिता के बिजनस से जुड़ गईं।
नियति ने पिता के साथ जुड़ने की कहानी बताते हुए कहा कि वह अपने पिता की लगन से इतना प्रभावित हुईं कि उन्होंने पत्रकारिता में अपना करियर छोड़, अपने पिता के साथ जुड़ने का फैसला ले लिया। वह कहती हैं कि उनके पिता ने कभी प्रयास करना नहीं छोड़ा। वह लगातार अपनी तकनीक को बेहतर करने की कोशशि में लगे रहे। नियति बताती हैं कि बिजनस कुछ खास जोर नहीं पकड़ रहा था और लगभग 2 सालों से उनके पास नौकरी नहीं थी। इसके बाद उन्हें समझ आया कि विज्ञापन पर पैसा खर्च करना होगा। नियति और उनके पिता ने कई आर्कीटेक्ट्स के साथ काम करने की कोशिश भी की, लेकिन बात कुछ बनी नहीं।
नियति ने कहा कि वे उम्दा सुविधा दे रहे हैं, लेकिन फिर भी लोग उन्हें पैसा देने के लिए तैयार नहीं हैं। एक वाकये का जिक्र करते हुए उन्होंने बताया कि एक बड़े आर्कीटेक्ट ने उनके साथ काम तो किया, लेकिन उनके लाखों रुपए का पेमेंट ही नहीं किया। नियति कहती हैं कि यह उनके लिए एक बड़ा झटका था, लेकिन उन्होंने इससे सबक लिया और आगे बढ़े। लगातार संघर्ष के बाद कंपनी को 2016 में मुंबई के स्पेशल चिल्ड्रेन्स स्कूल की पेंटिंग का काम मिला। जहां पर 43 दिनों में उन्हें 18,000 स्कवेयर फीट एरिया पेंट करना था। उनके पास कुल 8 मजदूर थे और उन्होंने आराम से अपना काम पूरा कर लिया।
अतुल ने जानकारी दी कि स्कूल के ट्रस्टी नहीं चाहते थे, लेकिन पेंटिंग से उड़ने वाली धूल और गंदगी से बच्चे बीमार हों, इसलिए उन्होंने नियति की कंपनी को कॉन्ट्रैक्ट दिया। इतना नहीं वह अतुल की कंपनी को एक और स्कूल का कॉन्ट्रैक्ट दिलाने वाले हैं। अभी तक अतुल की कंपनी 37 प्रोजेक्ट्स पर काम कर चुकी है, जिनमें से ज्यादार घरों के काम रहे हैं। कंपनी के प्रोजेक्ट्स में एक ईएनटी हॉस्पिटल का काम भी शामिल है।
नियति और अतुल की कंपनी लगातार आर्थिक समस्याओं से जूझ रही है। उन्होंने अभी तक 80-85 लाख रुपए का निवेश किया है और वह हर साल लगभग 3 लाख रुपए का नुकसान झेल रहे हैं। हालांकि, इसके बावजूद भी नियति अपने काम को लेकर संतुष्ट हैं और आशावान भी हैं। नियति बताती हैं कि उनकी कंपनी फिलहाल ओम आर्कीटेक्ट्स के साथ काम रही है, जिसकी मार्केट में अच्छी पकड़ है।
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