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नागार्जुन का गुस्सा और त्रिलोचन का ठहाका

कालजयी रचनाओं के शीर्ष कवि बाबा नागार्जुन की जयंति पर विशेष...

नागार्जुन का गुस्सा और त्रिलोचन का ठहाका

Friday June 30, 2017 , 8 min Read

भारत ही नहीं, विश्व-साहित्य में बाबा नागार्जुन कालजयी रचनाओं के शीर्ष कवि माने जाते हैं। निराला और कबीर की तरह। उनके शब्द आज भी जन-गण-मन में सर्वाधिक लोकप्रिय हैं। वह संस्कृत के विद्वान तो थे ही, मैथिली, पालि, प्राकृत, बांग्ला, सिंहली, तिब्बती आदि अनेकानेक भाषाओं के भी ज्ञाता। साहित्य की लगभग सभी विधाओं में उनकी लेखनी आजीवन कुलाचें भरती रही। राहुल, निराला, त्रिलोचन की तरह उन्होंने भी जीवन में कत्तई प्रलोभनों से परहेज किए। उनके अंतिम दिन अन्य ईमानदार साहित्यकारों की तरह बड़े अभाव में बीते। आज बाबा का जन्मदिन है।

पहली फोटो में नागार्जुन, दूसरी में त्रिलोचन

पहली फोटो में नागार्जुन, दूसरी में त्रिलोचन


हिंदी साहित्य का एक अनोखा व्यक्तित्व। घर का नाम 'वैद्यनाथ मिश्र', साहित्यक नाम 'नागार्जुन', मैथिली उपनाम 'यात्री', प्रचलित पूरा नाम 'बाबा नागार्जुन'। जिसका भी साहित्य से नाता हो, भला कौन नहीं जानता होगा बाबा नागार्जुन को। रचना के मिजाज में सबसे अलग, स्वभाव में एकदम अलख निरंजन।

बाबा नागार्जुन संस्कृत के विद्वान तो थे ही, मैथिली, पालि, प्राकृत, बांग्ला, सिंहली, तिब्बती आदि अनेकानेक भाषाओं के भी ज्ञाता थे। साहित्य की लगभग सभी विधाओं में उनकी लेखनी आजीवन कुलाचें भरती रही। राहुल, निराला, त्रिलोचन की तरह उन्होंने भी जीवन में कत्तई बड़े से बड़े सरकारी प्रलोभनों से परहेज किया। उनके भी अंतिम दिन अन्य ईमानदार साहित्यकारों की तरह बड़े अभाव में बीते।

आज बाबा की जयंती है। उनके साथ बीता एक वाकया याद आता है। 1980 के दशक में बाबा से मुलाकात हुई थी जयपुर में। जैसे बाबा, वैसी अनोखी मुलाकात। उस दिन देशभर के प्रगतिशील कवि-साहित्यकार जमा थे गुलाब नगरी में। अमृत राय, त्रिलोचन, भीष्म साहनी, अब्दुल बिस्मिल्लाह, शिवमूर्ति आदि-आदि। बाबा से मुलाकात की बात बाद में, पहले एक प्रसंगेतर आख्यान।

महापंडित राहुल सांकृत्यायन के प्रति मेरा छात्र जीवन से रुझान रहा है। इसकी भी एक खास वजह रही है। मेरे गृह-जनपद आजमगढ़ में राहुलजी का गांव कनैला हमारे गांव से सात-आठ किलो मीटर की ही दूरी पर था। संयोग से मेरे हरिहरनाथ इंटर कॉलेज, शेरपुर में क्लास टीचर पारसनाथ पांडेय राहुलजी के गांव कनैला के थे। वह क्लास में यदा-कदा राहुलजी के बारे में तरह-तरह की सही-गलत बातें बताया करते थे। वह बातें फिर कभी। ....तो जयपुर यात्रा के उन दिनो मैं राहुल सांकृत्यायन पर लिखी एक ऐसी किताब पढ़ रहा था, जिसका संपादन उनकी धर्मपत्नी कमला सांकृत्यायन ने किया था। उस पुस्तक से पहली बार राहुलजी के संबंध में उनके जीवन की तमाम अज्ञात जानकारियां मिली थीं। उस पुस्तक से ही ज्ञात हुआ था कि कमला सांकृत्यायन मसूरी के हैप्पी वैली इलाके में रहती हैं। राहुलजी तो नहीं रहे। बाबा नागार्जुन वहां कभी-कभार जाया-आया करते हैं।

उस दिन जयपुर में जैसे ही मुझे पता चला कि बाबा भी यहां आए हुए हैं, कमला सांकृत्यायन के बारे में बाबा से और भी जानकारियां प्राप्त कर लेने की मेरी जिज्ञासा सिर चढ़कर बोलने लगी। उस दिन कवि-साहित्यकारों में मुझे कवि त्रिलोचन बड़े सहज लगे, सो किसी बात के बहाने मैं उनके निकट हो लिया। संयोग से हम जहां ठहरे थे, वहीं अगल-बगल के कमरों में त्रिलोचनजी और बाबा नागार्जुन भी रुके हुए थे। दबी जुबान मैंने अपनी बाल सुलभ जिज्ञासा त्रिलोचनजी के कानों में डाल दी। सुनते ही पहले तो उनके चेहरे पर मैंने अजीब रंग उभरते देखा, जैसे आंखें अचानक चौकन्नी हो उठीं हों। फिर उन्होंने कुछ पल मुझे गौर से देखा, बोले- 'हां-हां, बाबा से बोलो, वह तुम्हें सब बता देंगे। अगर कमलाजी से मिलना चाहते हो तो मिलवा भी देंगे।' उस वक्त उनके मन का आशय मैं भला कैसे पढ़ पाता। असल में त्रिलोचनजी आनंद लेने की मुद्रा में आ गए थे। मुझे बाबा से मिलने के लिए उकसाते समय उन्होंने मान लिया था कि इसकी कोई न कोई मजेदार प्रतिक्रिया जरूर होगी। मुझे बाबा के पास भेजकर वह बगल के कमरे में अन्य लेखकों के बीच जा बैठे। कानाफूसी होने लगी लेकिन उन सभी महापुरुषों के कान मेरी तरफ लगे हुए थे।

ठीक उसी समय बाबा तेजी से हमारे बगल के अपने कमरे से बाहर निकले। मैंने उन्हें रोकते हुए तपाक से पूछा - 'बाबा मुझे कमला सांकृत्यायन के बारे में आप से कुछ बात करनी है।' सुनते ही बाबा ऐसे चिग्घाड़ उठे कि मेरे कमरे से जोर का ठहाका गूंजा। दरअसल, त्रिलोचनजी तब तक इस बारे में अंदर कमरे में बैठे अन्य लेखकों को सब कुछ बता चुके थे और प्रतिक्रिया होने की प्रतीक्षा कर रहे थे। उनका उकसावा ठीक निशाने पर बैठा था। मेरी बात सुनते ही बाबा ने तिलमिलाते हुए कहा- 'मैं क्या जानूं कमला-समला को.... चले आते हैं पता नहीं कहां-कहां से, न जाने कैसी-कैसी बातें करते हुए।' एक बात और। उस वक्त बाबा बाथरूम जा रहे थे। मुझे नहीं मालूम था कि वह पेटझरी (लूज़ मोशन) से पीड़ित थे। उन्हें तेजी से बाथरूम जाते वक्त रोककर मैंने उन्हें क्षुब्ध कर दिया था, सो उससे भी वह तिलमिला उठे थे।

बाबा की फटकार पाकर मैं जैसे ही अंदर अपने कमरे में पहुंचा, वहां ठाट जमाए सभी लेखक महामनाओं की निगाहें मेरे ऊपर आ जमीं। त्रिलोचनजी ने बड़े स्नेह से (ठकुर सुहाती अंदाज में) मेरा माथा सहलाते हुए पूछा- 'क्या हो गया बेटा, बाबा नाराज हो गए क्या?' मेरे कंठ से कोई आवाज ही न फूटे। चुप। मेरी आंख भर आई थी। गला रुंध सा गया।

अब बाबा के गुस्से और लेखकों के ठहाके का मर्म बताते हैं। उन दिनों बाबा सचमुच कमला सांकृत्यायन से नाखुश चल रहे थे। उन्हीं लेखक 'गुरुओं' में से एक ने बताया था कि कुछ माह पहले ही की बात है। बाबा कमलाजी के ठिकाने पर हैप्पी वैली, मसूरी गए थे। कमला जी ने उन्हें फटकार कर दोबारा वहां आने से मना कर दिया था। जिस वक्त मैंने बाबा से पूछा, एक तो पहले से कमलाजी से नाखुशी, दूसरे पेटझरी की पीड़ा से उनका मिजाज बेकाबू हो उठा था। वैसे भी वह स्वभाव से तुनक मिजाजी थे। इस पर मैं जब बाद में त्रिलोचनजी से बात करनी चाही, वह मुसकरा कर चुप रह गए थे। अब आइए, अकाल पर बाबा नागार्जुन की एक सबसे चर्चित कविता पढ़ते हैं -

कई दिनों तक चूल्हा रोया, चक्की रही उदास।

कई दिनों तक कानी कुतिया सोई उनके पास।

कई दिनों तक लगी भीत पर छिपकलियों की गश्त,

कई दिनों तक चूहों की भी हालत रही शिकस्त।

दाने आए घर के अंदर कई दिनों के बाद,

धुआँ उठा आँगन से ऊपर कई दिनों के बाद।

चमक उठी घर भर की आँखें कई दिनों के बाद,

कौए ने खुजलाई पाँखें कई दिनों के बाद।

साहित्य में बाबा कालजयी रचनाओं के शीर्ष कवि रहे हैं। निराला और कबीर की तरह। उनके शब्द आज भी जन-गण-मन में लोकप्रिय हैं। वह संस्कृत के विद्वान तो थे ही, मैथिली, पालि, प्राकृत, बांग्ला, सिंहली, तिब्बती आदि अनेकानेक भाषाओं के भी ज्ञाता थे। साहित्य की लगभग सभी विधाओं में उनकी लेखनी आजीवन कुलाचें भरती रही। राहुल, निराला, त्रिलोचन की तरह उन्होंने भी जीवन में कत्तई बड़े से बड़े सरकारी प्रलोभनों से परहेज किया। उनके भी अंतिम दिन अन्य ईमानदार साहित्यकारों की तरह बड़े अभाव में बीते। उनके काव्य में अब तक की पूरी भारतीय काव्य परंपरा जीवंत रूप में उपस्थित है। वह नवगीत, छायावाद से छंदमुक्त कविताओं के तरह-तरह के रचनात्मक दौर के सबसे सक्रिय साक्षी रहे। और बाबा की एक कविता 'मंत्र' -

ॐ शब्द ही ब्रह्म है,

ॐ शब्द और शब्द और शब्द और शब्द

ॐ प्रणव, ॐ नाद, ॐ मुद्राएं

ॐ वक्तव्य, ॐ उदगार, ॐ घोषणाएं

ॐ भाषण...ॐ प्रवचन...

ॐ हुंकार, ॐ फटकार, ॐ शीत्कार

ॐ फुसफुस, ॐ फुत्कार, ॐ चित्कार

ॐ आस्फालन, ॐ इंगित, ॐ इशारे

ॐ नारे और नारे और नारे और नारे

ॐ सब कुछ, सब कुछ, सब कुछ

ॐ कुछ नहीं, कुछ नहीं, कुछ नहीं

ॐ पत्थर पर की दूब, खरगोश के सींग

ॐ नमक-तेल-हल्दी-जीरा-हींग

ॐ मूस की लेड़ी, कनेर के पात

ॐ डायन की चीख, औघड़ की अटपट बात

ॐ कोयला-इस्पात-पेट्रोल

ॐ हमी हम ठोस, बाकी सब फूटे ढोल

ॐ इदमन्नं, इमा आप:, इदमाज्यं, इदं हवि

ॐ यजमान, ॐ पुरोहित, ॐ राजा, ॐ कवि:

ॐ क्रांति: क्रांति: क्रांति: सर्वग्वं क्रांति:

ॐ शांति: शांति: शांति: सर्वग्वं शांति:

ॐ भ्रांति भ्रांति भ्रांति सर्वग्वं भ्रांति:

ॐ बचाओ बचाओ बचाओ बचाओ

ॐ हटाओ हटाओ हटाओ हटाओ

ॐ घेराओ घेराओ घेराओ घेराओ

ॐ निभाओ निभाओ निभाओ निभाओ

ॐ दलों में एक दल अपना दल, ओं

ॐ अंगीकरण, शुद्धीकरण, राष्ट्रीकरण

ॐ मुष्टीकरण, तुष्टीकरण, पुष्टीकरण

ॐ एतराज, आक्षेप, अनुशासन

ॐ गद्दी पर आजन्म वज्रासन

ॐ ट्रिब्युनल ॐ आश्वासन

ॐ गुटनिरपेक्ष सत्तासापेक्ष जोड़तोड़

ॐ छल-छंद, ॐ मिथ्या, ॐ होड़महोड़

ॐ बकवास, ॐ उद्घाटन

ॐ मारण-मोहन-उच्चाटन

ॐ काली काली काली महाकाली महाकाली

ॐ मार मार मार, वार न जाए खाली

ॐ अपनी खुशहाली

ॐ दुश्मनों की पामाली

ॐ मार, मार, मार, मार, मार, मार, मार

ॐ अपोजिशन के मुंड बनें तेरे गले का हार

ॐ ऐं हीं वली हूं आङू

ॐ हम चबाएंगे तिलक और गांधी की टांग

ॐ बूढ़े की आंख, छोकरी का काजल

ॐ तुलसीदल, बिल्वपत्र, चंदन, रोली, अक्षत, गंगाजल

ॐ शेर के दांत, भालू के नाखून, मर्कट का फोता

ॐ हमेशा हमेशा हमेशा करेगा राज मेरा पोता

ॐ छू: छू: फू: फू: फट फिट फुट

ॐ शत्रुओं की छाती पर लोहा कुट

ॐ भैरो, भैरो, भैरो, ॐ बजरंगबली

ॐ बंदूक का टोटा, पिस्तौल की नली

ॐ डालर, ॐ रूबल, ॐ पाउंड

ॐ साउंड, ॐ साउंड, ॐ साउंड

ओम् ओम् ओम्

ओम धरती धरती धरती,

व्योम व्योम व्योम.....