'राइस फॉर प्लास्टिक' अभियान के जरिए देश की दो गंभीर समस्याओं से दो-दो हाथ कर रहा आंध्र प्रदेश का यह संगठन
'राइस फॉर प्लास्टिक' कैंपेन के जरिए देश को प्लास्टिक और भुखमरी से मुक्त करने में लगा यह NGO
हाल ही में दो बड़ी बातें सामने आई हैं। पहली यह कि भारत ग्लोबल हंगर इंडेक्स के कुल 117 देशों में पाकिस्तान से पीछे होकर 102वें स्थान पर आ गया है। साल 2015 में भारत 93वें नंबर पर था। दूसरी यह कि इस साल गांधी जयंती (2 अक्टूबर) के मौके पर पीएम मोदी ने देशवासियों से सिंगल यूज प्लास्टिक यानी सिर्फ एक बार काम में आने वाले प्लास्टिक का उपयोग कम करने का अनुरोध किया है। साथ ही सरकार ने साल 2022 तक देश को सिंगल यूज प्लास्टिक से मुक्त करने का लक्ष्य निर्धारित किया है।
दरअसल, सही पोषण और कचरा प्रबंधन वे दो गंभीर समस्याएं हैं जिनसे हमारा देश आज भी ग्रसित है। इसके समाधान के लिए पेद्दापुरम (आंध्र प्रदेश) के एक एनजीओ (गैर सरकारी संस्थान) 'मना पेद्दापुरम' ने एक ऐसा इनोवेटिव एक्सचेंज सिस्टम (अनोखी विनिमय प्रणाली) बनाया जो आज काफी कारगर साबित हो रहा है।
साल 2015 में प्रकाशित खाद्य एवं कृषि संगठन की एक रिपोर्ट के मुताबिक भारत में 194.6 मिलियन यानी 19 करोड़ 46 लाख लोग कुपोषित या कुपोषण के शिकार हैं। साथ ही हर रोज 3000 के करीब लोग भूखमरी या इससे जुड़ी बीमारी के कारण मरते हैं। भारत में 25 लाख टन प्लास्टिक कचरा उत्पन्न होता है जिसमें से केवल 9 फीसदी ही रीसाइकल किया जाता है।
पूर्वी गोदावरी जिले के एनजीओ मना पेद्दापुरम के सदस्यों ने सही पोषण और कचरा प्रबंधन, दोनों ही मुद्दों को अपनी लिस्ट में सबसे ऊपर रखा है। NGO ने अपने 'राइस फॉर प्लास्टिक' यानी प्लास्टिक के बदले चावल अभियान के जरिए देश की दोनों बड़ी समस्याओं कुपोषण और प्लास्टिक प्रबंधन से दो-दो हाथ किए। इस कैंपेन की शुरुआत इसी साल 2 अक्टूबर को गांधी जी की 150वीं जयंती के दिन से की गई। अभी तक इस अभियान के माध्यम से संगठन के लोगों ने 300 किलो प्लास्टिक इकठ्ठा कर लिया है और इसके बदले 200 किलो चावल लोगों में बांटे हैं। एकत्र किए गए प्लास्टिक में से 150 किलो तो कैंपेन के शुरू होने के अगले दो ही दिनों में ही जमा हो गया।
राइस फॉर प्लास्टिक का यह अनोखा आइडिया नरेश पेदिरेड्डी का था। नरेश भारत को प्लास्टिक और भूखमरी से मुक्त बनाना चाहते हैं। उन्होंने ह्यूमन रिसोर्सेज से एमबीए की डिग्री ली है।
न्यू इंडियन एक्सप्रेस से बातचीत में नरेश ने बताया,
'हमारे दो लक्ष्य हैं। पहला, लोगों को प्लास्टिक से बनी चीजों का इस्तेमाल करने से रोकने के लिए प्रेरित करना और दूसरा, भूखमरी के खिलाफ जंग। राइस फॉर प्लास्टिक कैंपेन दोनों लक्ष्यों को एक साथ हासिल करने में हमारी मदद करता है।'
वर्तमान में काजू का व्यापार करने वाले नरेश ने विचार किया कि वह लोगों को एकत्रित किए गए प्लास्टिक की मात्रा के बराबर चावल देंगे। मना पेद्दापुरम संगठन चावल सीधे ही मिलों से ही 25 रुपये/किलो की दर से खरीदता है। यह संगठन इस चावल को प्लास्टिक जमा कराने वाले लोगों में बांटता है। इसके बाद इस प्लास्टिक को सफाई कर्मचारियों को दिया जाता है जो बाद में इसे (प्लास्टिक को) आंध्रप्रदेश के पेद्दापुरम स्थित सरकारी और प्राइवेट रीसाइकलिंग प्लांट में जमा करा देते हैं।
लॉजिकल इंडियन से बात करते हुए नरेश कहते हैं,
'2 अक्टूबर से पहले हमने घोषणा की थी कि जो भी हमारे पास प्लास्टिक लाएगा (खासतौर पर सिंगल यूज प्लास्टिक) उसे प्लास्टिक की मात्रा जितने ही चावल दिए जाएंगे।'
मना पेद्दापुरम में 20,000 से अधिक सदस्य हैं। इनमें लोकल और दूसरे राज्य/देश में रहने वाले लोग भी शामिल हैं। अधिकतर सदस्य मध्यमवर्गीय परिवारों से आते हैं और सभी कहीं ना कहीं काम करते हैं। इसलिए संगठन का विचार इस अभियान को सप्ताह में एक दिन चलाने का है।
अभी उनके लिए बड़ी परेशानी प्लास्टिक को रीसाइकल कराने की है क्योंकि सबसे पास स्थित प्लास्टिक रीसाइकल का सरकारी प्लांट विजयवाड़ा में है। नरेश ने स्थानीय सरकार से एक प्लांट पेद्दापुरम में स्थापित करने का अनुरोध किया है।
नरेश ने न्यू इंडियन एक्सप्रेस से बातचीत में कहा,
'हम अभियान को आगे भी जारी रखेंगे लेकिन एक्सचेंज प्रोग्राम केवल रविवार को ही रखेंगे क्योंकि इसमें हमें लोगों की जरूरत अधिक होती है। हमारे सदस्यों को अपनी नौकरी या बिजनेस का भी पूरा ध्यान रखना होता है।'