मिलें घाटे में चल रहे बिजनेस को करोड़ों के मुनाफे में बदलकर अब्दुल कलाम अवार्ड पाने वाली सृष्टि जिंदल से
दिल्ली की सृष्टि जिंदल के लिए उद्यमिता, परोपकार और मातृत्व डेली वर्क का हिस्सा है। सृष्टि को घाटे में चल रही एक कंपनी को इनोवेशन के जरिए करोड़ो रुपये का बिजनेस करने वाली कंपनी में बदलने के लिए एपीजे अब्दुल कलाम अवार्ड से नवाजा गया है।
अमेरिका की एमोरी यूनिवर्सिटी में मैथमेटिक्स और इकोनॉमिक्स की पढ़ाई करते हुए सृष्टि जिंदल एक बैंकर के रूप में करियर बनाने की तैयारी कर रही थीं। हालांकि इसी दौरान मिले एक समर इंटर्नशिप ने उनकी जिंदगी पूरी तरह से बदल दी।
सृष्टि को बचपन से ही लिखने का काफी जुनून था और इस प्रतिभा के दम पर वो अपनी स्कूल मैग्जीन की एडिटर भी रहीं। अपनी कॉलेज मैग्जीन के लिए भी वह नियमित रूप से लिखती रहती थीं और आखिरकार 2012 में उन्हें एक ट्रैवल मैग्जीन में काम मिला, जो घाटे में चल रही थी।
अगले दो सालों में सृष्टि ने ना सिर्फ मीडिया इंडस्ट्री की बारीकियां सीखीं, बल्कि उन्होंने यह भी भांप लिया कि ट्रैवल के लिए उत्साही लोगों में इस मैग्जीन के प्रसार की काफी क्षमता है। उन्होंने अपने माता-पिता से लोन लेकर मैग्जीन के कानूनी लाइसेंस और ट्रेडमार्क को खरीदा और स्विफ्ट मीडिया इंटरनेशनल की स्थापना की। इस काम में मैथमेटिक्स और इकोनॉमिक्स की उनकी पढ़ाई भी काम आई।
उन्होंने बताया, 'मुझे पूरा यकीन था कि मेरे पैसे डूबेंगे नहीं और मुझे यह भी पता था कि मेरे सामने एक अच्छी डील है।'
सृष्टि ने 2018 में इस प्लेटफॉर्म को खरीदा और उसके चार सालों के अंदर उन्होंने ना सिर्फ अपने सारे लोन चुका दिए, बल्कि इसे एक मुनाफा कमाने वाली कंपनी में भी बदल दिया। वित्त वर्ष 2018-19 में उनकी कंपनी ने 75 करोड़ रुपये की आमदनी दर्ज की। सृष्टि एक बिजनेस परिवार से जरूर आती हैं, लेकिन उन्होंने एक उद्यमी के रूप में भी खुद को साबित किया और 2017 में उन्हें इनोवेशन के लिए एपीजे अब्दुल कलाम अवार्ड से नवाजा गया।
ट्रैवल इंडस्ट्री में जमना
सृष्टि कहती हैं कि पहले से मौजूद किसी प्लेटफॉर्म को खरीदना ज्यादा फायदे का सौदा है क्योंकि नए सिरे से कोई कंपनी स्थापित करने के लिए आपको पब्लिशिंग लाइसेंस हासिल करना, बिजनेस का रजिस्ट्रेशन कराना सहित दूसरी तमाम कानूनी शर्तों को पूरा करना होता है, जिसमें काफी लंबा समय लग जाता है।
इसकी जगह उन्होंने 21वीं सदी के यूथ के स्वाद और पसंद के मुताबिक मैग्जीन की डिजाइन और तेवर में बदलाव किया। एक कहानीकार के तौर पर सृष्टि का मानना है कि कंटेंट और डेटा दो सबसे मूल्यवान चीजें होती हैं।
वह कहती हैं,
"अगर आप डेटा को अच्छी तरह से पेश करते हैं और आपके पास वास्तव में चीजों को देखने का एक अलग नजरिया हैं, तो आप ऐसा कंटेंट बना सकते हैं, जिसे लोग सुनना चाहते हैं और यह बहुत शक्तिशाली है। चारों तरफ बहुत सारे डेटा मौजूद हैं, लेकिन अगर आप इसमें से अपने मतलब का डेटा निकाल पाते हैं, तो आपके लिए अनगिनत अवसर हैं।"
सृष्टि के हिस्से कई सफलताएं हैं, लेकिन इस सफर के दौरान उन्हे कई चुनौतियां का भी सामना करना पड़ा। उन्होंने बताया कि जब एक फाउंडर के रूप में वो अपना परिचय देती थीं, तब लोग उन्हें गंभीरता से नहीं लेते थे। ऐसा इसलिए क्योंकि उनके पास काफी सीमित प्रोफेशनल अनुभव था।
उन्होंने बताया,
"टूरिज्म इंडस्ट्री एक ऐसी इंडस्ट्री है, जिसमें काफी महिलाएं हैं। हालांकि इसके बावजूद यहां महिलाओं के सामने कई बाधाएं हैं, जिसे मैं महसूस कर सकती है। पहली बात तो यही थी कि मैं एक महिला और खासतौर से युवा महिला हूं। इसके चलते मुझे अधिक सजग रहने और अतिरिक्त प्रयास करने पड़ते थे, जबकि अगर मैं थोड़ी उम्रदराज या पुरुष होती तो मुझे इसकी जरूरत नहीं पड़ती।"
मार्केट कॉम्पिटिशन के बारे में बात करते हुए उन्होंने कहा,
“मैं कॉनडे नास्ट जैसे किसी व्यक्ति को प्रतियोगी के रूप में देखना चाहूंगी, हालांकि वे अभी मुझसे बहुत आगे हैं। फिर भी मुझे उम्मीद है कि मैं एक दिन उस जगह पर हो सकती हूं।"
बिजनेस में स्थिरता आने के बाद सृष्टि ने रचनात्मक कार्य और नए कलाकारों की खोज के लिए 'द टेरेन' नाम से एक नए प्लेटफॉर्म को लॉन्च किया। यह एक ग्लोबल प्लेटफॉर्म हैं, हालांकि वह इसके जरिए देश के गलियों-चौराहे में मौजूद उन अनूठे भारतीय आर्ट के सामने आने और उनके चमकने की उम्मीद करती है, जो मुख्यधार की नजरों से दूर हैं।
सृष्टि का कहना है कि उन्होंने अपने जुनून के नाते इस प्रोजेक्ट का शुरू किया है और उनकी योजना इसे व्यवसाय में बदलने की नहीं हैं। 5 लाख रुपये की लागत से शुरू इस प्रोजेक्ट के जरिए सृष्टि एक कम्युनिटी खड़ा करने की उम्मीद रखती है, जहां कलाकार अपने काम को बेच सकें और इसके जरिए होनहार लोगों को स्कॉलरशिप और आवासीय सुविधाएं ऑफर की जा सकें।
लॉकडाउन की चुनौतियां
चूंकि लॉकडाउन के दौरान आमदनी काफी कम हो गई था। ऐसे में सृष्टि को कर्मचारियों की छंटनी और सैलरी में कटौती जैसे कठिन फैसले लेने पड़े। उन्होंने यह भी देखा कि लॉकडाउन से सबसे पहले कलकारों और क्रिएटिव इंडस्ट्री के लोगों को नुकसान उठाना पड़ा। उन्होंने बताया, "कोरोना से प्रभावित होने वाली चीजों के बारे में बात करते हुए लोग अर्थव्यवस्था या ऐसी दूसरी बड़ी चीजों पर चर्चा करते हैं और कलाकारों का स्थान इस चर्चा में सबसे अंत में आता है।
लॉकडाउन के दौरान सृष्टि ने अपने पिता रज्जी राय के साथ मिलकर प्रवासी मजदूरों की मदद की, जो देशव्यापी लॉकडाउन के दौरान फंस गए थे। मार्च से जून तक, दोनों ने दिल्ली के स्लम इलाकों में स्वयंसेवकों की मदद से रोज लगभग हजारों लोगों को खाना खिलाया।
सृष्टि उस वक्त एक महिला होने के साथ-साथ एक सात महीने की बेटी की मां भी थी। ऐसे में वह महिलाओं और खासतौर से गर्भवती महिलाओं की सेहत के लिए अधिक चिंतित थी "क्योंकि वे हमेशा सबसे ज्यादा प्रभावित होती हैं।" सृष्टि ने कोरोना संकट के दौरान महिलाओं के जरूरी सैनिटरी नैपकिन, विटामिन, दवाएं और दूसरी चीजों का वितरण किया।
एक कामकाजी मां के रूप में
सफल उद्यमी बनने के लिए निश्चित तौर पर आपको अपनी कंपनी के लिए चौबीसों घंटे समर्पित होना पड़ता है। ऐसे में कंपनी के ग्रोथ स्टेज में मां बनी सृष्टि के लिए स्थिति कितनी चुनौतीपूर्ण रही होगी, इसे समझा जा सकता है।
वह बताती हैं,
"यह बहुत कठिन रहा और इससे इनकार नहीं किया जा सकता। लोग कहते हैं कि आप दोनों कर सकते हो, लेकिन यह इतना आसान नहीं हैं। आप जितना समय अपने काम को देते हो, उतना समय आप अपने बच्चे से दूर रहते हो। अपने बच्चे को छोड़कर जाने पर एक अपराध बोध जैसा महसूस होता है, लेकिन मैं इन दोनों जिम्मेदारियों को निभाने की बखूबी कोशिश करती हूं।"
ऑफिसों में कामकाजी महिलाओं और माताओं को काम करने और आगे बढ़ने के समान अवसर मिले, इसके लिए सृष्टि सुझाव देती हैं कि वे लचीले कार्य समय के साथ स्पष्ट रूप से परिभाषित KPI निर्धारित करें और प्रमोशन और दूसरे अवसरों के लिए उनकी योग्यता के आधार फैसले करें। चूंकि हर बदलाव घर से शुरू होता है, ऐसे में सृष्टि ने एक उद्यमी के तौर पर अपनी महिला कर्मचारियों के लिए इन सिद्धांतों का पालन करना सुनिश्चित किया है।
Edited by Ranjana Tripathi