...ऐसे बनीं कॉमेडी क्वीन
ऋचा और सुमुखी के हौसले को सलाम, स्टैंड अप कॉमेडी में बनाया अपना मुकाम
“हे भगवान ! तुम एक औरत हो, तुम किसी को कैसे हंसा सकती हो ?” कुछ ऐसी ही प्रतिक्रियाओं से गुजर कर भारत की युवा उभरती हास्य कलाकार ऋचा कपूर और सुमुखी सुरेश ने आज इस पुरुष प्रधान समाज में अपनी एक अलग पहचान बनाई है।
“अच्छा लगता है ये सोच कर कि अब महिलाएं सिर्फ खाना नहीं बनातीं, वो हंसा भी सकती हैं।”
“तुम इतनी मजाकिया थी कि मैं तुम्हें कॉफी के लिए नहीं बुला पाया! अब तुम्हें हंसाना मेरी जिम्मेदारी है?”
ये बस कुछ ही पंक्तियां हैं जो ऋचा और सुमुखी को मिलीं। हालांकि, सुमुखी को एक और संदेश मिला वो भी किसी के मैट्रिमोनियल प्रोफाइल से, जिसमें लिखा था कि कि वो अपने परिवार में एक ऐसे शख्स को चाहेंगे जो सबका मनोरंजन कर सके।
उनके सफर की कहानी जानने को उत्सुक महिलाओं को वो बताती हैं कि ये एक ऐसा सफर जिस पर महिलाओं के कदम यदा-कदा ही पड़े हैं, लोगों को लगता है कि महिलाएं लोगों को नहीं हंसा सकतीं, बस यही धारणा तोड़ने के लिए उन्होंने इस ओर कदम बढ़ाया।
इस दौरान कुछ ऐसे लोग मिले जो थे तो बिल्कुल अलग, फिर भी उनमें कुछ अजीब तरह की समानताएं थीं।
ऋचा और सुमुखी की मुलाकात एक केन्द्रीय मंच “द इम्प्रूव” के साधारण से कॉमेडी शो में हुई। सुमुखी जब इस मंच से जुड़ी तो ऋचा को ये शो करते 2 साल हो चुके थे।
सुमुखी कहती हैं, “हमने साथ मिलकर इसमें सुधार की कोशिश की और तब हमें महसूस हुआ कि हम दोनों बिलकुल अलग होकर भी आपस में काफी मिलते-जुलते हैं।”
फिर ऋचा कहती हैं, ”यहां हमने अपनी सबसे बड़ी ताकत को महसूस किया, जो हमें एक जैसे अनुभवों से मिली थी।”
जब सुमुखी, ऋचा से मिलीं तब वो बच्चों के लिए थिएटर और अनुभव कार्यशालाएं आयोजित करने की योजना बना रही थीं। सुमुखी ने उनकी पहली कार्यशाला के आयोजन में साथ दिया। सुमुखी कहती हैं, “इससे हमें ये समझ आया कि हम एक टीम के रूप में बेहतर काम कर सकते हैं। हम अपने मित्रों कैनेथ सेब्स्टियन और प्रतीक प्रजोश के आभारी हैं कि उन्होंने इसके लिए फंड जुटाने में मदद की, और फिर हमने अपने हास्य नाटक खुद लिखने और उसे रंगमंच पर उतारने का फैसला किया।”
बहुत से नाटक करने के बाद उन्होंने फैसला लिया कि वो इसे आधिकारिक तौर पर शुरू करेंगे और फिर यू-ट्यूब पर “Sketch In The City” नाम से एक चैनल का आगाज हुआ।
ऋचा और सुमुखी दोनों ही काफी बातूनी हैं। हालांकि, कई मामलों में दोनों अलग हैं, फिर भी कई चीजों को लेकर उनका जुड़ाव है, और दोनों किसी एक ही मुद्दे को लेकर गंभीर हैं। अक्सर दिन भर का काम निपटाने के बाद शाम को फोन पर बात करते हुए उनके दिमाग में नए आइडिया आते हैं और वो उन पर चर्चा भी करती हैं। दोनों अपने खास अंदाज में खिलखिलाती हुई कहती हैं ”दिन में समय बचाने के लिए हम सपनों के जरिए एक दूसरे से जुड़ने की उम्मीद करते हैं।”
बदल रही है धारणा
ऋचा और सुमुखी को इस बात पर बहुत गुस्सा आता है जब लोग हैरानी जताते हैं कि दो महिलाएं लोगों को कैसे हंसा सकती है? क्या वाकई इन लड़कियों में वो कला है? हालांकि वो दोनों समझती हैं कि लोगों की इस विचार धारा को गलत साबित करने का एक ही तरीका है, और वो है हर बार बेहतर प्रदर्शन, अपने हर शो को ऐसे पेश करना जैसे ये उनका आखिरी शो हो।
शुरुआत में वो समारोह, तकनीकी चीज़ों, हास्य शैली और हर तरह के दर्शकों को हर जगह पर हंसा पाने को लेकर चिंतित थीं। जीत और हार दोनों के लिए खुद को मानसिक रूप से तैयार कर के ही वो इस मंच पर उतरीं।
हालांकि, कुछ चुनौतियां हमेशा रहती हैं, जैसे कि देर शाम तक अभ्यास करना, लोगों का सामना करना और निजी छवि बनाना। लेकिन उनके लिए इन चुनौतियों से निपटने का हुनर ही मायने रखता था। शायद यही वजह थी कि वो कभी घबराई नहीं।
हमने मंच पर रहकर या मंच से दूर रहकर भी लगातार सुधार किया। हमने शर्मिंदा होने के मज़े लिए और उन चीजों से भी प्यार किया जो अपमानित करने वाली थीं! इन चीज़ों में दिमाग लगाने के बदले काम पर ध्यान देने की हमारी सोच ने हमें बांधे रखा और हर जोखिम लेने के लिए तैयार किया। हमने ट्रैफिक सिग्नल पर झाड़ू बेचने, सड़कों पर व्यंग्य करने, दीवारों पर कूदने से लेकर भव्य समारोहों तक में सबको खूब हंसाया।
ऐसे हुई शुरुआत
सुमुखी
नागपुर में पली-बढ़ी सुमुखी खुद को कन्फ्यूज्ड तमलयाली बताती हैं, जिसे स्कूल में सब मोटी कहकर चिढ़ाते थे। वो बताती हैं कि उनके जीवन में ऐसी कोई जश्न की रात नहीं रही जिसे वो याद रख सकें। घर में वो सबसे छोटी थीं, इसलिए आश्रितों की तरह जीवन चल रहा था।
2006 से थिएटर करने वाली सुमुखी ने पहली बार चेन्नई में स्नातक की पढ़ाई के दौरान अपनी प्रतिभा के साथ प्रयोग शुरू किए। कॉमेडी में उनके सफर की शुरूआत एक इम्प्रूव कलाकार के तौर पर हुई, फिर स्केच कॉमेडी के रूप में और आखिर में स्टैंडअप कॉमेडी ।
श्रेक के तौर पर कॉलेज ईवेंट के लिए किए गए 5 मिनट के एकालाप से लेकर अपने पहले कॉमर्शियल प्ले सत्यजीत रे और इस्मत चुगताई की 6 लघु कथाओं के संकलन “रेटेल” तक, जिसमें उसने एक 80 साल की विचित्र अफगानी यात्री की भूमिका निभाई, सुमुखी ने ये महसूस किया कि उनके लिए कोई भी रोल अजीब नहीं था और वो एक हास्य अभिनेता के रूप में काम कर सकती थीं।
सुमुखी के लिए उनके हीरो उनके पापा रहे, जो एक मजाकिया किस्म के आदमी थे और उनसे सुमुखी को हमेशा आगे बढ़ने की प्रेरण मिली। वो अपने परिवार और दोस्तों को भी शुक्रिया कहना नहीं भूलतीं, जिन्होंने उसे हमेशा बेहतर करने के प्रोत्साहित किया। उन्होंने कभी भी सुमुखी को साहस देने में कसर नहीं छोड़ी और ना ही तब उन्हें आईना दिखाने में संकोच किया जब सफलता उनके सिर चढ़ने लगी।
ऋचा
दूसरी तरफ ऋचा को अपने बचपन में ही देश भर में यात्रा करने और हर दो-तीन साल में नए लोगों से मिलने-जुलने का मौका मिला। एक इंटर-स्कूल नाटकोत्सव के साथ उसने थिएटर में अपना पहला कदम रखा। "इन प्रतियोगिताओं ने मुझे मेरे व्यक्तित्व के उस पहलू से रूबरू कराया जो हुनर बनकर मंच पर निखरा और जिसने मुझे भी हैरान कर दिया। यही वो वक्त था जब मुझे एहसास हुआ कि मंच पर होना किसी वरदान से कम नहीं था। मैंने सैकड़ों लोगों के सामने खड़े होने की खुशी को महसूस किया और साथ ही हर बार प्रदर्शन से पहले की घबराहट को भी जिया।”
ऋचा एक अंग्रेज़ी की शिक्षिका हैं, जो अभी साहित्य में परास्नातक कर रही हैं, जिसके बाद वो फिर से शिक्षण का काम करेंगी। वो कहती हैं, “स्टेज हमेशा मेरा प्यार रहेगा”।
ऋचा ने जिंदगी के कई मुश्किल हालात का सामना करने के लिए अपनी हास्य कला का इस्तेमाल किया। इसके बाद से हंसना-हंसाना उनकी आदत में शुमार हो गया। “मुझे कई लोगों ने कहा कि मेरा 'कठोर' रवैया मुझे कुछ नहीं करने देगा। और आखिरकार ऐसा हुआ। लोगों ने इसे एक हुनर के तौर पर पहचाना और और मैंने खुद को हज़ारों लोगों के सामने प्रदर्शन करते देखा।“
ऋचा ने खुद को आराम-तलब जिंदगी से निकालने के लिए अपने आप को असहज स्थिति में डाल दिया; कार्यशालाओं में हिस्सा लेना; हर उस बात पर चर्चा करना जो उसे चुनौती जैसी लगती। "मैं इस प्रक्रिया में अब भी हूं, और मुझे लगता है कि मैं हर जोखिम से सीखती हूं। अनजाना सा कोई दर्द है जिसे महसूस करने के लिए मैं सारी ताकत लगा देती हूं।”
उसे अपने परिवार और दोस्तों से भी हमेशा समर्थन मिला।
हमारे देश में लोग इतना नहीं हंसते जितना हंसना चाहिए और खुद पर तो बिलकुल भी नहीं।
सुमुखी के मुताबिक देश हंस तो रहा है, लेकिन ज्यादातर लोगों की हंसी का स्रोत ऐसे चुटकुले हैं जो सामान्य तौर पर पत्नियों, महिलाओं, महिलाओं से जुड़ी बातों, परेशान करती प्रेमिकाओं और कपड़ों को लेकर होते हैं या फिर सेक्स को लेकर। सुमुखी कहती हैं, “इसे रोकने की जरूरत है। हमने एक छोटी सी शुरुआत की है। उम्मीद है कि हम आगे बढ़ेंगे। एक ऐसे देश में जहां हास्य अनकही बातों को कहने और असहज मुद्दों पर चर्चा का एक जरिया बन पाए और एक हास्य कलाकार को ये कहने में कोई डर ना हो।”
ऋचा कहती हैं कि हमें एक देश के तौर पर बहुत कुछ जानने की जरुरत है। हमें उन विचारों को समझना होगा जो खुद हमें ही परशान करते हैं। वो कहती हैं, “जरूरी है सुनना और समझना। संवेदनशीलता की बातें अब पुरानी हो चुकी हैं, और मुमकिन है कि इन संवेदनाओं को समझने के लिए हमें हमारे जेंडर और ‘एज गैप’ से बाहर निकलना पड़े।“
हालांकि, ऋचा और सुमुखी दोनों ने अलग मुद्दों और अलग विषयों से प्रेरणा ली, ऋचा के लिए विशेष रूप से उनका पंजाबी परिवार और हमारा पितृसत्तात्मक समाज प्रेरणास्रोत रहे, जबकि सुमुखी खेल और राजनीति में दिलचस्पी रखती हैं।
इस तरह की डर की छुट्टी
ऋचा कहती हैं, "आगे बढ़ो और अपने अंदर के बेवकूफ को बाहर निकालो। खुद को समझा लो कि ‘अभी नहीं, तो कभी नहीं’”
सुमुखी कहती हैं, “स्टेज पर डर लगना किसी भी कलाकार के लिए सबसे मज़ेदार बात है, यह आपको बांधे रखता है। खुद पर भरोसा करो कि आपमें लोगों को हंसाने का हुनर है।“ऋचा अपनी जोड़ी के लिए गाते हुए संदेश देती हैं, “जब तक हम अपने लक्ष्यों के प्रति सचेत हैं, दुश्वारियां कमजोर पड़ने लगती हैं। ऐसे मौकों पर ही आपके अंदर की ताकत निकल कर बाहर आती है। हर बार आपको खुद को अपना सबसे बड़ा हथियार बनाना पड़ेगा, अपनी ताकत खुद बनना पड़ेगा!”