तस्करों द्वारा बेची गयी दुर्लभ भारतीय प्रतिमाओं को वापिस लाने में काम आ रही है टेक्नोलॉजी
जब देश में धार्मिक स्थलों पर महिलाओं के प्रवेश जैसा ज्वलंत मुद्दा चर्चा का केंद्र है और बहुत सारे विषय लोगों को अपनी ओर आकर्षित कर रहे हैं, ऐसे में कुछ लोग हैं, जो रात दिन पूरी प्रतिबद्धता के साथ एक भिन्न गौरवनीय कार्य में लगे हुए हैं, जहाँ आधी रात को भी प्रतिबद्धता के चिराग़ जल रहे हैं।
दि इंडियन प्राइड प्राजेक्ट(आईपीपी) दुनिया भर के स्वयंसेवियों की एक औपचारिक समिति देश के लूटे हुए मंदिर का ऐतिहासिक गौरव लौटाने में सक्रिय है। आईपीपी के सह संस्थापक अनुराग सक्सेना कहते हैं,
- सदियों तक हज़ारों भारतीय कलाकृतियाँ लूटी जाती रहीं, लेकिन अब दुख की बात है कि हमारी कला के धरोहरों को कोई आतंकी या तस्कर नहीं लूट रहे हैं, बल्कि हमारे अपने लालची लोगों के कारण हम काफी कुछ खोते जा रहे हैं।
भारतीय कला एवं ऐतिहासिक धरोहरों के अगाध प्रेमी और ब्लॉगर अनुराग और विजय कुमार ने आईपीपी की स्थापना की है। आईपीपी विश्व भर में कला संग्रहण, संग्रहालय तथा अन्य भारतीय कलावस्तुओं को पुनर्स्थापित करने के लिए विश्व भर के नेताओं को आंदोलन से जोड़ रहे हैं। दोनों सिंगापुर में रहते हैं। अनुराग वर्ल्ड एजुकेशन फाउण्डेशन, यूके के एशिया पैसिफिक सीईओ का कार्य संभालते हैं, विजय शिपिंग व्यवसायी हैं।
भारत एक आसान शिकार
बिल्कुल पिछले साल तक भी इन दोनों के बारे में कोई अधिक नहीं जानता था। भारतीय संस्कृति और हेरिटेज में रूचि रखने वाले अनुराग कहते हैं कि उन्होंने सोशल मीडिया पर समान विचारधारा के लोगों की तलाश शुरु की तो पाया कि इस तरह की कलावस्तुओं की तस्करी को रोकने के लिए कोई सरकारी संस्था नहीं है। अनुराग ने पिछले दिनों संपन्न हुए आईएनके टाक्स सम्मेलन (मुंबई) का उल्लेख करते हुए बताया कि अंतर्राष्ट्रीय कला के बाज़ार में भारत नो कांसिक्वेंस ज़ोन अर्थात बिना रोकटोक वाले क्षेत्र के रूप में माना जाता है। यही कारण है कि तस्कर दक्षिण एशिया के अन्य देशों की तुलना में दुर्लभ वस्तुओं को लूटने में भारत को सुरक्षित स्थल मानते हैं। लोगों की इस धारणा पर उन्हें बड़ी चिंता हुई।
अनुराग शर्मा ने बताया,
'' बीते कई दशकों में कला को काले धन को वैध बनाने का ज़रिया बनाया गया। मैं स्विस बैंक के साथ एक प्राइवेट बैंकर के रूप में काम कर रहा था। इसलिए मैं जानता हूँ कि यदि आप एक मिलियन डालर रुपये अपने साथ ले जाना चाहते हैं तो वो आप अपने सूटकेस में नहीं रखते। क्योंकि एयरपोर्ट पर कस्टम के लोग आपको पकड़ लेंगे, लेकिन यदि आप इतने ही रुपयों की एक पेंटिंग ख़रीद लेते हैं और अपने साथ ले जाते हैं तो आपको कोई नहीं रोकेगा।''
न्यूयॉर्क टाइम्स की एक रिपोर्ट के अनुसार, तथाकथित पनामा पेपर लीक में बताया गया है कि मोसैक फोंसेका की पनामा ला फर्म ने 11.5 मिलियन फाइलें लीक की हैं, जिससे हमें पता चलता है कि कई कंपनियाँ कला के मालिकाना हक को छिपाती हैं। इससे अंदाज़ा लगाया जा सकता है कि कला के बाज़ार के रास्ते किस तरह कर चोरी कर काला धन स्थानांतरित किया जाता रहा है।
खज़ाने की खोज
आईए देशी जेम्स बाँड की बात करते हैं, अनुराग अपना इन कामों पर पैसा खर्च कर लोगों का ध्यान आकर्षित करते हैं, विशेषकर आईपीपी से जुड़ने के लिए। विजय ने पता लगाया था कि कावेरी नदी के किनारे बृहदीश्वर मंदिर के निकट श्रीपुरंथन मंदिर में जो नटराज की प्रतिमा थी, उसे तस्करों ने कुछ वर्ष पूर्व आस्ट्रेलिया में बेच दिया था। यह वहाँ के एक संग्रहालय में प्रदर्शित की गयी थी, यह जाने बिना की यह चुरायी गयी है।
यह जादुई घटना ही समझी जाएगी, जब 2014 में आस्ट्रेलियाई प्रधानमंत्री टोनी भारत आये और नटराज की प्रतिमा अपने साथ लाये। यह काफी महत्वपूर्ण तथ्य है कि 1954 में जब भारत सरकार ने हज़ार का नोट प्रकाशित किया था, उस समय बृहदीश्वर का मंदिर उस पर अंकित था। यह काफी लोकप्रिय और विशाल मंदिर है, जिसका निर्माण राजराजा चोला द्वारा किया गया था। यहाँ के कई मंदिर लूट का शिकार रहे हैं। बृहदीश्वर से 50 किलोमीटर दूरी पर स्थित श्रीपुरंथन मंदिर भी उन्हीं शासकों ने बनाया था।
अनुराग बताते हैं,
- गूगल पर हम कुछ लोग थे, जो सोशल मीडिया द्वारा पता लगा रहे थे कि इन प्रतिमाओं को कौन चुरा रहा है, यह किस तरह बेची जाती हैं और उन्हें कौन ख़रीद रहा है।
जैसे ही उन्होंने सोशल मीडिया पर अपना आंदोलन तेज़ किया, तब कुछ आर्ट गैलरियों नें महसूस किया कि वे जहाँ बैठे हैं, उनके आस पास चोरी का माल रखा गया है। बहुत जल्द इंटरनेशनल मीडिया भी जाग गया और वहाँ की सरकारों पर इस बात का दबाव बढ़ा कि इस चुराए हुए माल को वापस देना चाहिए।
सोशल मीडिया पर जारी आंदोलन के बावजूद भी उन वे प्रतिमाएँ वापिस लाना संभव नहीं हो पा रहा था, लेकिन जब आस्ट्रेलियाई प्रधानमंत्री भारत आये और उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को नटराज की प्रतिमा लौटायी, इस आंदोलन में कुछ गर्मी पैदा हुई। जब कनाडाई प्रधानमंत्री कुछ अमूल्य प्रतिमाओं के साथ लौटे तो उन्होंने पाया कि ऐसी प्रतिमाएँ उनके पास पहले से मौजूद हैं।
जब जर्मन चांसलर एंजिला मार्कल ने अक्तूबर 2015 में भारत का दौरा किया, वह अपने साथ 10 वीं शताब्दी की एक दुर्गा की प्रतिमा लायीं, वह दो दशक पूर्व कश्मीर के एक मंदिर से चुराई गयी थी और कनाडा में पायी गयी।
अनुराग कहते हैं,
- यह भू-राजनीतिक जीत भारत के लिए संपूर्ण खुशी नहीं दे सकती, सच्ची प्रसन्नता उसी समय हो सकती है, जब लूटा हुआ वैभव पुन स्थापित किया जाए और जीवन में फिर से बसंत न आ जाए।
हालाँकि नटराज की प्रतिमा फिर से मंदिर में लगा दी गयी है। फिर भी एक प्रश्न बना रहेगा कोहिनूर कब लाया जाएगा।कई लोगों ने यह प्रश्न मुझसे पूछा है और यह काफी महत्वपूर्ण भी है, सवाल पूछने वालों में महिलाओं की संख्या अधिक है।
खोखली देशभक्ति से परे
कई आईपीपी सदस्य ऐसे हैं जो गुप्त रूप से काम कर रहे हैं, क्यों कि वो जिस तरह के ऑपरेशन से जुड़े हैं, वह काफी जोखिम भरा है। वे सरकारी एजेंसियों के साथ मिलकर पृष्ठभूमि में काम कर रहे हैं, ताकि तस्करों द्वारा लूटी गयी कलावस्तुओं का पता लगाकर उन्हें वापस लाया जा सके।
अनुराग बताते हैं, 70,000 कलाकृतियों की स्मगलिंग हुई हुई हैं, लेकिन हम नहीं जानते कि वे कब वापिस लायी जाएँगी। इनमें से 200 की पहचान की गयी है और उन्हें लाने की तैयारी हो चुकी है।
अनुराग 1998 में सिंगापुर गये थे, लेकिन उन्होंने अपना भारतीय पास्पोर्ट बनाये रखा है, कहते हैं कि यह काम अगर हम एक दशक पहले शुरू किये होते तो ऐसा करना असंभव था, क्योंकि उस समय टेक्नोलॉजी नहीं थी और इंटरनेट नहीं था, जिसके द्वारा हम यह सब कर पा रहे हैं। आईपीपी नयी दिल्ली, बैंगलूर एवं चेन्नई में अपना रोड शो कर रहा है, ताकि भारत से चुराई गयी ऐतिहासिक कलावस्तुओं के बारे में लोगों में जागरूकता लायी जा सके। यह कार्य निश्चित ही खोखली देशभक्ति से बहुत अच्छा है।
(यह लेख मूल रूप से अंग्रेज़ी में दीप्त नायर ने लिखा है।)
अनुवाद...एफ एम सलीम