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रक्त से रिश्ता जोड़ बनिये दूसरे की सांसो की डोर

ज़रूरतमंद के जिस्म में प्रवेश करता लहू का हर कतरा उसे मौत के पंजे से छुड़ा कर जिन्दगी की खुशनुमा आरामगाह तक लाने की कूवत रखता है। पढ़ें 'विश्व रक्तदान दिवस' पर विशेष रिपोर्ट...

"समय पर खून न मिल पाने से भारत में हर साल करीब पंद्रह लाख मरीजों को जान से हाथ धोना पड़ता है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के एक अध्ययन के मुताबिक भारत में सालाना एक करोड़ यूनिट रक्त की जरूरत पड़ती है। लेकिन हमारे यहां स्वैच्छिक रक्तदान से केवल पचास प्रतिशत खून ही जमा हो पाता है। आधुनिक तकनीकी से लैस ब्लड बैंकों की कमी के चलते रक्त के अवयवों का इस्तेमाल भी सीमित है और रक्त की कमी का फायदा पेशवर तरीके से खून बेचने वाले उठाते हैं..."

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फोटो साभार: Shutterstocka12bc34de56fgmedium"/>

रक्त के अभाव में दम तोड़ते आदम की संतानों को बचाने के लिये स्वैछिक रक्तदान को एक आंदोलन का स्वरूप देने की जरूरत है। कुछ भ्रांतियां जो लोगों के दिमाग में घर कर गई हैं, उन्हें दूर करने की आवश्यकता है।

"रक्तदान इक यज्ञ है, मानवता के नाम

आहूति अनमोल है, लगे न कोई दाम

मानवता के मंच से, कर दो यह ऐलान

आगे बढ़कर हम सभी,रक्त करेंगे दान"

जीवन को जीवन का दान है रक्तदान। मरीज के जिस्म में प्रवेश करता लहू का हर कतरा इंसान को मौत के पंजे से छुड़ा कर जिन्दगी की खुशनुमा आरामगाह तक लाने की कूवत रखता है, तो मरीज़ के जिस्म से निकलती रक्त की हर एक बूंद उसे जिंदगी से दूर जाने का पैगाम देती है। मतलब सांस की तरह रक्त भी जिन्दगी के लिये प्राण वायु के समान है। अफसोस यह है कि रक्त रासायनिक समीकरणों से उत्पन्न नहीं किया सकता और मानव छोड़ किसी अन्य जीवधारी का उपयोग में लाया नहीं जा सकता। मतलब इंसान के लहू का तलबगार है इंसान। इंसानियत की इक नजर का मोहताज है ये दान। यूं तो मानवीय परम्परा में दान को दैवीय भावना का द्योतक माना जाता है, लेकिन रक्तदान उस भावना का उत्कर्ष है।

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जरा सोचिये किसी अस्पताल के गहन चिकित्सा कक्ष के बाहर मरीज के परिजनों की पथराई आंखों से झरते आंसुओं और बच्चों की टुकुर-टुकुर निहारती कातर निगाहों के कारण बने मुर्दा निर्वात को तोड़ती हुई आपके रक्तदान करने आवाज कैसे उम्मीद का तार झंकृत कर देती है। कुछ लम्हा पहले तक जहां निराशा के तवील अंधेरे जिंदगी को निगल जाने को आमादा था वहीं अब इंसानियत की इक नजर ने तमाम अंधेरों को निगल लिया। कहने का तात्पर्य है रक्त दान के बाद होने वाला अहसास आत्मा से परमात्मा के साक्षात्कार की अनुभूति देता है। लेकिन विडंबना है, कि ऐसे पुनीत अनुभव और उत्तरदायित्व की राह जन सहभागिताके अबाव में सूनी पड़ी है।

दीगर है कि हर साल देश की कुल 2433 ब्लड बैंकों में 80 लाख यूनिट रक्त इकट्ठा होता है, जबकि जरूरत है एक करोड़ यूनिट की। इसका भी केवल 20 प्रतिशत ही रक्त बफर स्टॉक में रखा जाता है और शेष का इस्तेमाल कर लिया जाता है।

नेशनल एड्स कंट्रोल ऑर्गेनाइजेशन (नाको) की गाइडलाइंस के मुताबिक, दान में मिले हुए रक्त का 25 प्रतिशत बफर स्टॉक में जमा किया जाना चाहिए, जिसे सिर्फ आपातस्थिति में ही इस्तेमाल किया जा सके। एक यूनिट रक्त 450 मिलीलीटर होता है। आसन्न संकट के मद्देनजर देश को एक रक्तदान क्रांति की सख्त जरूरत है। समय पर खून न मिल पाने से भारत में हर साल करीब पंद्रह लाख मरीजों को जान से हाथ धोना पड़ता है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के एक अध्ययन के मुताबिक भारत में सालाना एक करोड़ यूनिट रक्त की जरूरत पड़ती है, लेकिन हमारे यहां स्वैच्छिक रक्तदान से केवल पचास प्रतिशत खून ही जमा हो पाता है। आधुनिक तकनीकी से लैस ब्लड बैंकों की कमी के चलते रक्त के अवयवों का इस्तेमाल भी सीमित है।

रक्त की कमी का फायदा पेशवर तरीके से खून बेचने वाले उठाते हैं। इसके अलावा, प्लाज्मा की जरूरत पडऩे पर मरीजों या उनके परिजनों को किस तरह के आर्थिक शोषण से गुजरना पड़ता रहा है, यह छिपा नहीं है। ब्लड बैंक के जरिए अतिरिक्त प्लाज्मा की कोई तय कीमत न होने के चलते इसके अवैध कारोबार के मामले सामने आते रहे हैं। इसी के मद्देनजर स्वास्थ्य मंत्रालय ने ब्लड बैंकों में उपलब्ध अतिरिक्त प्लाज्मा के लिए बिक्री-मूल्य भी निर्धारित कर दिए हैं। अब इसके लिए सोलह सौ रुपए प्रति लीटर से ज्यादा नहीं वसूला जा सकेगा।

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रक्त के अभाव में दम तोड़ते आदम की संतानों को बचाने के लिये स्वैछिक रक्तदान को एक आंदोलन का स्वरूप देने की जरूरत है। कुछ भ्रांतियां जो लोगों के दिमाग में घर कर गई हैं उन्हें दूर करने की आवश्यकता है। बहुत से ऐसे लोग होते है जो सोचते हैं कि रक्तदान करने से उनके शरीर को खतरा हो जाता है या फिर उनमें कमजोरी आ जाती है। कुछ तो ये सोचते है कि रक्तदान के बाद उनके खुद के खून को बनने में कई साल लग जाते हैं, किन्तु ऐसा कुछ नहीं होता क्योंकि रक्तदान एक सुरक्षित और स्वस्थ परंपरा और जहां तक खून के दुबारा बनने की बात है तो उसे शरीर मात्रा 21 दिनों के अंदर दोबारा बना लेता है, साथ ही खून के वॉल्यूम को शरीर सिर्फ 24 से 72 घंटो में ही पूरा कर लेता है, तो रक्तदान के संदर्भ में व्याप्त भ्रांतियों को दूर करना आवश्यक है।

रक्तदान से मानवता के साथ बनने वाले संबंध का स्वाद संवेदना के स्वरों में ही मुखरित हो सकता है। अत: आइये इस दिव्य संबंध में बंधने के लिये रक्तदान करें और मानवता के संस्कार को सहकार के स्वरूप दें।

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