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दस साल पुरानी बैंकिग की नौकरी छोड़ किसानों की मदद करने उतरे दंपति, 2000 परिवारों तक पहुँचने का है लक्ष्य

'ग्रीन एंड ग्रेन्स', एक 'फार्म-टू-फोर्क' बिजनेस मॉडल की बदौलत पार्टनर किसानों को उनकी जमीन पर उत्पादन का प्रबंधन करने के लिए प्रशिक्षित करता है और उनके जैविक उत्पादों को ग्राहकों के दरवाजे तक पहुंचाया जाता है।

दस साल पुरानी बैंकिग की नौकरी छोड़ किसानों की मदद करने उतरे दंपति, 2000 परिवारों तक पहुँचने का है लक्ष्य

Wednesday March 16, 2022 , 5 min Read

मध्य प्रदेश की प्रतीक्षा और प्रतीक शर्मा द्वारा शुरू किया गया, 'ग्रीन एंड ग्रेन्स' एक फार्म-टू-फोर्क बिजनेस मॉडल है, जिसमें पार्टनर किसानों को उनकी जमीन पर उत्पादन का प्रबंधन करने के लिए प्रशिक्षित किया जाता है और उनके जैविक उत्पादों को ग्राहकों के दरवाजे तक पहुंचाया जाता है।

प्रतीक्षा शर्मा कहती हैं, “हमारी सबसे हमारी सबसे बड़ी उपलब्धि तब होती है जब कोई हमारे बनाए हुए रास्ते में चलने के लिए कहता है उस वक्त हम सबको बहुत ही बड़ी खुशी मिलती है। इसी तरह एक किसान के लिए सबसे बड़ी खुशी का पल तब होता है जब वे अपने बच्चों को बेहतर जीवन दे पाते हैं। कुछ इसी तरह की मुस्कान मुझे मेरी आठ साल की बेटी से मिली, जब उसने कहा कि वह अपने मम्मा-पापा की तरह एक किसान बनना चाहती है।"

मुझे ये सब उपलब्धियां 'ग्रीन एंड ग्रेन्स', एक 'फार्म-टू-फोर्क' बिजनेस मॉडल की बदौलत मिली हैं, जिसमें पार्टनर किसानों को उनकी जमीन पर उत्पादन का प्रबंधन करने के लिए प्रशिक्षित किया जाता है और उनके जैविक उत्पादों को ग्राहकों के दरवाजे तक पहुंचाया जाता है।

हालांकि, बैंकर से किसान बनने तक का सफर प्रतीक्षा और प्रतीक शर्मा के लिए इतना आसान नहीं था।

प्रतीक्षा और प्रतीक शर्मा

प्रतीक्षा और प्रतीक शर्मा

कैसे हुई इस काम की शुरुआत

यह सब 1983 में मध्य प्रदेश के होशंगाबाद जिले के एक छोटे से गांव डोलारिया में शुरू हुआ था। प्रतीक के पिता, प्रवीण शर्मा, अंग्रेजी में पोस्टग्रेजुएशट थे, उन्होंने किसी तरह आधुनिक खेती के तरीकों पर विदेशी साहित्य एकत्र किया और खेती के उपकरण बेचने लगे।

प्रवीण ने हमेशा से अपने व्यक्तिगत जीवन में सामाजिक व्यवहार के दौरान समग्र रूप से कृषक समुदाय के विकास के लिए जोर दिया और यहीं प्रतीक के दिमाग में 'सामूहिक भलाई' का बीज बोया गया।

एक साक्षात्कार के दौरान प्रतीक ने कहा, "मेरे पास अभी भी मेरे पिता द्वारा इकट्ठी की गई ऑस्ट्रेलियाई और यूरोपीय खेती के तरीकों की किताबें हैं। मुझे नहीं पता कि वह इन लोगों को दूर-दराज़ के गाँव में रहने में कैसे कामयाब कर पाया।"

किस तरह की चुनौतियों का करना पड़ा सामना 

साल 2003 में चीजें अचानक से तब बदल गईं जब प्रतीक ने अपने पिता को खो दिया। प्रतीक ने उस समय केवल ग्रेजुएशन ही किया था और अपने पिता के व्यवसाय को आगे बढ़ाने के बजाय, उन्होंने एमबीए करने और बैंकिंग क्षेत्र में नौकरी करने का फैसला किया।

दूसरी ओर प्रतीक्षा एक आईएएस अधिकारी की बेटी थीं और हमेशा से दूसरों के जीवन में बदलाव लाना चाहती थीं। लेकिन खेती -किसानी उनके दिमाग में कभी नहीं थी। प्रतीक्षा ने कहा, “एक सर्विस सेक्टर फैमिली बैकग्राउंड से होने के कारण, मैंने हमेशा सोचा था कि खेती शिक्षितों का काम नहीं है, जैसा कि शहरों में ज्यादातर लोग सोचते हैं।"

लेकिन इन दोनों में समाज सेवा की एक चिंगारी बनी रही, जो कोटक महिंद्रा में उनके लगातार बढ़ते बैंकिंग करियर में दबी हुई थी। यह जिज्ञासा उस वक्त और तेज हो गई जब उनकी बेटी मिहिका का जन्म हुआ। उन्होंने अच्छी खाने की आदतों पर शोध किया और महसूस किया कि आज के समय में स्वास्थ्यवर्धक भोजन ढूंढना कितना मुश्किल है, क्योंकि अब अधिकतर कृषि केमिकल फार्मिंग को ही उचित स्टैंडर्ड मानकर की जा रही है। इसकी तलाश में प्रतीक वापस अपने गांव गए। फिर जब इस दंपति का भोपाल ट्रांसफर हुआ तब प्रतीक ने अपने गाँव में एक सप्ताह से अधिक समय बिताया, जहाँ उन्होंने एक पॉलीहाउस बनाया।

टर्निंग प्वाइंट

प्रतीक्षा ने कहा, “मेरे लिए नौकरी छोड़ना आसान नहीं था। हम सभी जानते हैं कि खेती एक पूरी तरह से गैर-ग्लैमरस क्षेत्र है और इसके लिए एक आकर्षक बैंकिंग करियर छोड़ना कई लोगों के लिए पागलपन के रूप में ही देखा जा सकता था, लेकिन हमारे कॉरपोरेट दोस्तों ने हमेशा हमारा साथ दिया।"

प्रतीक शर्मा

प्रतीक शर्मा

प्रतीक्षा कहती हैं, “12 फरवरी 2020 को प्रतीक ने फेसबुक पर एक पोस्ट डाला कि वह एक कृषि प्रशिक्षण कार्यक्रम शुरू करेंगे। कई लोगों ने सोचा कि यह सिर्फ एक तरफा और खोखला प्रयास है। लेकिन, प्रकृति और अनाज को बचाने के लिए प्रतीक का यह आखिरी प्रयास था। 'वह हमारे जीवन का सबसे कठिन दिन था। यह हमारी आखिरी उम्मीद थी। अगर यह काम नहीं करता है, तो हमारे पास खेती छोड़ने के अलावा कोई रास्ता नहीं था। यह हमारे बस की बात नहीं थी। हम फिर से अपने कॉर्पोरेट जीवन में वापस जा सकते थे। लेकिन हमसे जुड़े किसानों का क्या? हम जानते थे कि उनका जीवन बेहतर हो रहा है और हम इतने सारे जीवन में यह बदलाव तभी ला सकते हैं, जब हमारे पास पैसा हो।"

प्रतीक और प्रतीक्षा ने यह काम नहीं किया। लेकिन तभी अचानक, मार्च 2020 में COVID की पहली लहर के दौरान देशव्यापी लॉकडाउन की घोषणा की गई। ग्रीन एंड ग्रेन्स बिल्कुल वही मॉडल था जिसकी लॉकडाउन के दौरान आवश्यकता थी।

प्रतीक बताते हैं, “इस दौरान लोग स्वास्थ्य के प्रति अधिक जागरूक थे, इसलिए जैविक भोजन पसंद करते थे। हालाँकि, वे बाहर नहीं जा सकते थे, इसलिए उन्हें डोरस्टेप डिलीवरी की आवश्यकता थी और हर कोई ऐसे विकल्पों की तलाश में था जहां लोगों का न्यूनतम संपर्क हो। इसलिए प्रतीक्षा पूरी रात जागकर हमारे लिए ऑर्डर तैयार करती और मैं खेतों से सब्जियां लेने के लिए सुबह जल्दी निकल जाता ताकि सभी ऑर्डर समय से पूरा हो सके।"

इस अवसर ने उन्हें बड़े पैमाने पर व्यवसाय का संचलान करने के लिए आवश्यक पूंजी दी और पहली बार ग्रीन एंड ग्रेन्स ने मुनाफा कमाया। गौरतलब है, कि पिछले साल प्रतीक्षा और प्रतीक की कंपनी ने 60 लाख रुपये का राजस्व जुटाया था।


Edited by Ranjana Tripathi