सिंगल मदर द्वारा संपन्न की गई बेटी की शादी पितृसत्तात्मक समाज पर है तमाचा
बेटी की शादी में तलाकशुदा अकेली माँ ने निभाईं पिता के हिस्से की भी सारी रस्में, पेश किया नया उदाहरण...
शादियों में ऐसा अक्सर होता है। सबसे ज्यादा रस्में शादी में ही निभाई जाती हैं। लेकिन समाज में पितृसत्ता का इतना बोलबाला है कि हर जगह पुरुषों का आधिपत्य होता है।
सिंगल मांओं को शादी की रस्मों से दूर होना पड़ता है। लेकिन हाल ही में सोशल मीडिया पर एक ऐसी शादी की तस्वीरें वायरल हो रही हैं जिसमें सिंगल मदर ने अपनी बेटी की शादी खुद ही संपन्न कराई।
हमारी भारतीय संस्कृति अपनी समृद्धि और परंपराओं के लिए जानी जाती है। पैदा होने से लेकर मरने तक जिंदगी के हर मोड़ रस्मों से भरे होते हैं। कुछ रस्में अच्छी होती हैं, जिनसे हमें खुशी भी मिलती है, लेकिन अधिकतर रस्में, परंपराएं और रीति-रिवाज ऐसे होते हैं कि हमें उनकी वजह नहीं पता होती, लेकिन रस्म के नाम पर उसे निभाए जा रहे हैं। शादियों में ऐसा अक्सर होता है। सबसे ज्यादा रस्में शादी में ही निभाई जाती हैं। लेकिन समाज में पितृसत्ता का इतना बोलबाला है कि हर जगह पुरुषों का आधिपत्य होता है। समाज में लोग कितना भी पढ़-लिख लें, लेकिन आज भी बेमतलब की रस्में ढोई जा रही हैं।
कुछ साल पहले की बात है। एक दोस्त की शादी हो रही थी। उस दोस्त के पिता नहीं थे। हमने देखा कि उसकी की मां शादी में एक कोने में खड़े होकर सब देख रही थी। सारी रस्में लड़की के चाचा-चाची निभा रहे थे। धार्मिक मान्यताओं के मुताबिक विधवाओं और तलाकशुदा औरतों को ऐसे शुभ कामों से दूर रखा जाता है। उसके लिए शादी-शुदा लोगों का होना जरूरी होता है। जिसके परिणामस्वरूप ऐसी मांओं को रस्मों से दूर होना पड़ता है। लेकिन हाल ही में सोशल मीडिया पर एक ऐसी शादी की तस्वीरें वायरल हो रही हैं जिसमें सिंगल मदर ने अपनी बेटी की शादी खुद ही संपन्न कराई।
शादी में फोटो खींचने वाले फोटोग्राफर वरुण ने अपने ब्लॉग में इस कहानी को साझा किया है। वरुण ने बताया कि पिछले साल चेन्नई की रहने वाली संध्या की शादी ऑस्ट्रेलिया के रहने वाले सैम से होनी थी। पूरे भारत में और खासकर तमिल ब्राह्मण परिवार में पिता ही बेटी का कन्यादान करता है और यह परंपरा काफी कड़ाई से निभाई जाती है। संध्या की मां राजेश्वरी अपनी बेटी की शादी में सारी रस्में निभाना चाहती थीं। उन्होंने समाज की मान्यताओं को चुनौती देते हुए अपनी बेटी का कन्यादान किया और बाकी की रस्में पूरी कीं। इस साल जनवरी में उनकी सालगिरह के मौके पर वरुण ने शादी की फोटो शेयर करते हुए उस कहानी को याद किया है।
राजेश्वरी ने कहा, 'मेरी शादी 21 साल में ही हो गई थी। उसके बाद मैं अपने पति के साथ ऑस्ट्रेलिया चली गई। मेरे पति मुझसे 12 साल बड़े थे। रूढ़िवादी तमिल ब्राह्मण परिवार होने की वजह से शुरू में मुझे कई बंधनों में रहना पड़ता था।' लेकिन बाद में राजेश्वरी के पति ने उन्हें आईटी का कोर्स करने के लिए प्रोत्साहित किया। जिसके बाद उन्हें आईबीएम में नौकरी मिल गई। यह 1988 का वक्त था। ऑस्ट्रेलिया में ऐसी नौकरी काफी अच्छी मानी जाती है। लेकिन ऑफिस और बच्चों दोनों को मैनेज करना काफी मुश्किल था। उनके पति राजेश्वरी और बच्चों का ध्यान नहीं रखते थे। इससे दोनों में कलह होती थी।
एक वक्त के बाद दोनों को लगा कि अब साथ रहना आसान नहीं है तो आपसी सहमति से शादी के 17 साल बाद राजेश्वरी ने अपने पति से तलाक ले लिया। इसके बाद जब उनकी बेटी संध्या बड़ी हुई तो उसे एक ऑस्ट्रेलियन लड़का पसंद आया और दोनों ने शादी करने का फैसला किया। राजेश्वरी को इससे कोई दिक्कत नहीं थी, लेकिन उनके रूढ़िवादी परिवार को समझाना काफी मुश्किल था। लेकिन राजेश्वरी को काफी खुशी थी कि उनकी बेटी भारतीय रस्मों रिवाजों से ही शादी करना चाहती है। सैम और उसके परिवार को भी ये तरीका पसंद आया। पिछले साल जनवरी में सैम और संध्या की शादी संपन्न कराई गई।
संध्या कहती हैं, 'हम शादी की कुछ रस्मों के बारे में जानते हैं जो कि हमें अच्छी लगती हैं और हमें खुशी भी देती हैं। लेकिन कई सारी चीजें बेवजह की होती हैं। पिता का अनिवार्य रूप से मौजूद होना जरूरी होता है। जो कि अच्छा नहीं है। मां भी वो सारे काम कर सकती है।' राजेश्वरी को लगा कि शादी के लिए पुजारी की खोज करना काफी मुश्किल होगा, लेकिन यह काम उतना मुश्किल नहीं था। एक युवा पुजारी शादी मिल गया जो कि उनकी बातों को अच्छे से समझ गया। परिवार के अमेरिका में रहने वाले एक सदस्य राघवन ने कहा कि राजेश्वरी ने अपने बच्चों की पूरी परवरिश की है, वो अपने बच्चों की मां है पिता है और दोस्त भी है। बेटी की शादी की रस्में निभाने का उसको पूरा हक है।
संध्या जानती हैं कि उनकी शादी किसी और दूसरे तरीके से नहीं हो सकती थी। वह कहती हैं, 'ज्यादातर समय ऑस्ट्रेलिया में बिताने की वजह से मेरी मां को अब पुरानी बेवजह की परंपराओं में यकीन नहीं रह गया है।' वह कहती हैं कि ऐसी गैरजरूरी परंपराओं की अब समाज को जरूरत नहीं रह गई है। सिंगल मांएं भी वे सारे काम कर सकती हैं जो पिता करते हैं। सच में संध्या की मां इसका जीता जागता उदाहरण हैं।
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