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नई सोच और अनूठे तरीक़ों से मेघालय के गांवों की तस्वीर बदल रहा यह आईएएस अधिकारी

नई सोच और अनूठे तरीक़ों से मेघालय के गांवों की तस्वीर बदल रहा यह आईएएस अधिकारी

Tuesday October 09, 2018 , 4 min Read

बदलाव की इस तस्वीर को जीवंत बनाने का श्रेय जाता है डांडेगरी विधानसभा के सब-डिविज़नल मजिस्ट्रेट (एसडीएम) स्वप्निल तेंबे को। स्वप्निल 2015 बैच के असम कैडर के आईएएस अधिकारी हैं।

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स्वप्निल बताते हैं कि उन्होंने बच्चों के लिए नए खिलौने, किताब, स्टोरी बुक्स, कुशन्स, कालीन और वॉटर फ़िल्टर आदि सामग्री मंगवाई। एक ही महीने में इस केंद्र की सूरत बदल गई। सिर्फ़ 1 लाख की धनराशि में ही स्वप्निल और उनकी टीम ने इस बड़े बदलाव को साकार कर दिखाया।

कुछ सालों पहले तक मेघालय के वेस्ट गारो हिल्स ज़िले की डांडेगरी विधानसभा के अंतर्गत आने वाले गांवों में स्थित आंगनवाड़ी केंद्रों की स्थिति बेहद ख़राब थी। बहुत से गांव ऐसे थे, जहां बिजली की उपलब्धता न के बराबर थी। ये गांव एक बेहद बुरे दौर से गुज़र रहे थे। लेकिन आज की तारीख़ में इन आंगनवाड़ी केंद्रों की दीवारों में सीलन नहीं है, बल्कि इनमें स्थानीय चित्रकला के नमूने बने हुए हैं; बच्चों को अच्छा भोजन उपलब्ध हो रहा है और भंडारण में पर्याप्त अनाज हमेशा उपलब्ध रहता है; अब बच्चे सिर्फ़ खाना खाने के लिए ही नहीं बल्कि पढ़ने और खेलने के लिए भी आंगनवाड़ी केंद्रों पर जाते हैं क्योंकि वहां पर उन्हें अच्छी किताबें और खिलौने मिलते हैं। बदलाव की इस तस्वीर को जीवंत बनाने का श्रेय जाता है डांडेगरी विधानसभा के सब-डिविज़नल मजिस्ट्रेट (एसडीएम) स्वप्निल तेंबे को। स्वप्निल 2015 बैच के असम कैडर के आईएएस अधिकारी हैं।

इस ख़ास तरक़ीब से बदली आंगनवाड़ी केंद्रों की तस्वीर!

स्वप्निल ने अपने ब्लॉग में बदलाव की इस पूरी यात्रा का ज़िक्र किया है। हालात बदलने के लिए स्वप्निल ने एक ख़ास तरक़ीब लगाई। आंगनवाड़ी केंद्रों का विकास करने के लिए उन्होंने अपने अधिकार क्षेत्र के अंतर्गत आने वाली सभी 100 केंद्रों पर एक साथ लक्ष्य नहीं साधा बल्कि एक केंद्र पर ही ध्यान केंद्रित करते हुए उसे मॉडल सेंटर में तब्दील कर दिया। इस तरक़ीब के पीछे स्वप्निल की सोच थी कि ऐसा करने से संबंधित सरकारी विभाग को अन्य केंद्रों के विकास के लिए प्रेरणा मिलेगी और स्थानीय समुदाय भी अपने पास उपलब्ध साधनों का बेहतर से बेहतर इस्तेमाल करने के लिए जागरूक हो सकेंगे।

इस एक आंगनवाड़ी केंद्र का चुनाव करना भी एक बड़ी जिम्मेदारी थी। स्वप्निल ने विचार करने के बाद दिलसिगरी आंगनवाड़ी केंद्र का चुनाव किया, जो सब-डिविज़न मुख्यालयों से पास था और इस वजह से प्रशासन, आंगनवाड़ी केंद्र पर सहजता से नज़र बनाकर रख सकता था। अपनी मुहिम को साकार करने के लिए प्रशासन ने क्राउडफ़ंडिंग का विकल्प चुना, लेकिन कुछ ख़ास सफलता हाथ नहीं लगी। इसके बाद प्रशासन ने तय किया कि स्थानीय समुदायों से ही मदद ली जाएगी। प्रशासन की कोशिश रंग लाई और मेघालय के बाहर से भी लोगों ने मदद का हाथ बढ़ाया।

आंगनवाड़ी केंद्र के ढांचे की मरम्मत कराई गई और उसका सौंदर्यीकरण किया गया। स्थानीय कलाकारों की मदद से आंगनवाड़ी केंद्र की दीवारों पर पेंटिंग्स बनवाई गईं। स्वप्निल बताते हैं कि उन्होंने बच्चों के लिए नए खिलौने, किताब, स्टोरी बुक्स, कुशन्स, कालीन और वॉटर फ़िल्टर आदि सामग्री मंगवाई। एक ही महीने में इस केंद्र की सूरत बदल गई। सिर्फ़ 1 लाख की धनराशि में ही स्वप्निल और उनकी टीम ने इस बड़े बदलाव को साकार कर दिखाया।

स्वप्निल कहते हैं कि ये आंगनवाड़ी केंद्र ग्रामीण इलाकों में रहने वाले बच्चों की अच्छी परवरिश के लिए बेहद ज़रूरी हैं और इनके माध्यम से इन बच्चों के लिए अच्छी शिक्षा और अच्छे स्वास्थ्य का तोहफ़ा सुनिश्चित किया जा सकता है।

दीपावली के दिन देखा था, गांव-गांव रौशनी पहुंचाने का सपना!

पिछले साल बतौर एसडीएम स्वप्निल की नियुक्ति का पहला दिन था और मौक़ा था दीपावली का। जब चारों ओर रौशनी का त्योहार मनाया जा रहा था, स्वप्निल को उन पिछड़े गांवों की चिंता सता रही थी, जहां पर बिजली की उपलब्धता न के बराबर है। उन्होंने तय किया कि सोलर लालटेनों के माध्यम से इन गांवों की स्थिति को बेहतर बनाया जाएगा। स्वप्निल ने सोहरा में नियुक्त अपने साथी शांतनु शर्मा का सहयोग लिया और क्राउडफ़ंडिंग के ज़रिए फ़ंड इकट्ठा करना शुरू किया। स्वप्निल बताते हैं कि खर्चे का पूरा ब्यौरा उन्होंने पहले से ही तैयार कर लिया था और अनुमानित खर्चे से करीबन 1 लाख रुपए अधिक इकट्ठा हो गए।

नेक काम में सभी ने किया भरपूर सहयोग

प्रशासन ने जिन सप्लायरों से संपर्क किया था, उन्होंने अपनी ओर से अतिरिक्त सोलर लालटेन उपलब्ध कराने का वादा किया और इस नेक मुहिम अपनी भी हिस्सेदारी दर्ज कराने की इच्छा जताई। सोलर लाइट्स का इंतज़ाम होने के बाद अगली चुनौती थी, सुदूर गांवों में उन्हें पहुंचाने की। इसके लिए प्रशासन ने स्थानीय ट्रांसपोर्टरों की मदद ली और सोलर लाइट्स पहुंचाने का इंतज़ाम किया गया। प्रशासन ने बीडीओ दफ़्तर की मदद भी ली और ज़रूरतमंद गांवों के साथ-साथ ज़रूरतमंद घरों की भी एक सूची तैयार की गई और उन घरों में रौशनी पहुंचाकर स्वप्निल ने अपना सपना साकार किया।

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