खुशी की तलाश में छोड़ दी कार्पोरेट नौकरी और मनाली में खोल लिया कैफ़े
चमचमाते दफ्तरों में ऊंचे ओहदों पर बैठने और भारी-भरकम वेतन लेने से यदि खुशी मिलती, तो महानगरों के बाशिंदों के चेहरों पर मायूसी न दिखती। ऐसा ही कुछ हुआ रूस से भारत आई मार्गेरिटा के साथ।
खुशी वो है, जो दिल की आवाज़ सुन धड़कती है! यानि, कि कुछ ऐसा कर जाना जो दिल की आवाज़ हो। रूस के शहर मास्को से भारत आई मार्ग्रेरिटा को अपने दिल के धड़कने का एहसास भी कुछ इसी तरह हुआ। उसने नोएडा की एक नामी बिल्डर कंपनी में असिस्टेंट जनरल मैनेजर की नौकरी सिर्फ इसलिए छोड़ दी, क्योंकि बड़े ओहदे और भारी वेतन के तौर पर मिलने वाला पैसा उसे खुशी नहीं दे रहा था, क्योंकि खुशी तो छुपी थी हिमाचल प्रदेश मनाली के उस छोटे से कैफ़े में, जिसे खोलने के बाद उन्हें संपूर्णता का एहसास हुआ।
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मार्गेरिटा और विक्रम ने अपनी-अपनी नौकरियां छोड़कर मनाली में एक बड़ा शांतिप्रिय कैफे स्टार्टअप शुरू किया है, जहां मार्गेरिटा आने वालों को अपने ही हाथ से कॉफी बनाती और सर्व करती हैं।
सुबह नौ बजे काम पर जाना, मीटिंग्स, रिपोर्ट्स, टारगेट्स जिंदगी को नीरस बना रहे थे और तभी उन्होंने फैसला किया मनाली में कैफ़े खोलने का।
मार्ग्रेरिटा ओल्ड मनाली में एक छोटा सा कैफ़े चला रही हैं। कैफ़े में आने वाले ग्राहकों के लिए कॉफ़ी से लेकर कई तरह की रेसिपी वे खुद तैयार करती हैं। खुद सर्व करती हैं। इस सारे काम में उनका साथ देते हैं उनके पति विक्रम, जिन्होंने इस कैफ़े को चलाने के लिए 22 साल का अपना कार्पोरेट करीयर छोड़ दिया।
विक्रम गुड़गांव के एक मल्टीनेशनल बैंक में एक बड़ी पोस्ट पर थे और अच्छी खासी सैलरी ले रहे थे। लेकिन खुशी की उनकी परिभाषा इन मापदंडों पर फिट नहीं बैठ रही थी। तभी एक दिन मार्ग्रेरिटा ने नौकरी छोड़ कर कुछ ऐसा करने का विचार दिया, जिससे उन्हें असली खुशी मिले। सुबह नौ बजे काम पर जाना, मीटिंग्स, रिपोर्ट्स, टारगेट्स जिंदगी को नीरस बना रहे थे और तभी उन्होंने फैसला किया मनाली में कैफ़े खोलने का।
मार्गेरिटा और विक्रम के कैफे की कहानी कुछ इस तरह शुरू हुई थी। करीब पांच साल पहले एक दौरे पर मार्गरिटा मास्को से भारत आई थी। उसी टूर प्रोग्राम के दौरान उनकी मुलाक़ात विक्रम से हुई। टूर प्रोग्राम खत्म होने के बाद मार्गेरिटा वापस मास्को लौट गईं। लेकिन विक्रम से संपर्क बना रहा। कुछ समय बाद मार्गेरिटा नौकरी करने फिर से भारत आ गईं और नोएडा में एक बड़ी बिल्डर कंपनी में एजीएम के तौर पर काम करने लगीं। इसी दौरान मार्गेरिटा और विक्रम ने विवाह कर लिया।
मार्गेरिटा कहती हैं,
"जो काम हम कर रहे थे, वो एक जैसा काम था। उसमें अच्छा पैसा था, लेकिन खुशी नहीं थी। हम अपने लिए समय नहीं निकाल पा रहे थे। मुझे ऐसा कुछ करना था, जो हम दोनों को खुशी दे और कुछ समय बाद समझ आया कि हम जो जीवन जी रहे हैं, वो हमारी मंज़िल नहीं। मंज़िल तो कोई और ही है।"
उन्होंने इस बारे में विक्रम से बात की। विक्रम गुड़गांव में एक मल्टीनेशनल बैंक में काम कर रहे थे। इससे पहले वे लंदन में भी रहे, लेकिन फिर से भारत लौट आये। विक्रम का कहना है कि वे कुछ ऐसा करना चाह रहे थे, जिसको करने से उन्हें मन से शांति मिले और वे खुशी महसूस हो। मार्गेरिटा ने जब विक्रम से इन सबके बारे में बात की, तो मानो विक्रम के मन की मुराद मिल गई। उन्होंने नौकरी छोड़ने में बिल्कुल देरी नहीं की।
मार्गेरिटा और विक्रम ने मनाली के कई चक्कर लगाये और फिर दोनों ने आखिरकार फैसला लिया कि वे मनाली में ही कैफ़े खोलेंगे। आज दोनों ओल्ड मनाली में अपना एक प्यारा-सा कैफ़े चला रहे हैं। विक्रम के मुताबिक, अब वे वो सबकुछ कर पा रहे हैं, जो वे कभी करने का सोचते थे।
मनाली की खूबसूरत वादियों में रहते हुए विक्रम और मार्गेरिटा पहाड़ों में देवदारों के बीचोंबीच गुजरती पगडंडियों पर कई किलोमीटर की सैर एकसाथ करते हैं। झरनों के बीच से गुजरते हैं। साइकल चलाते हैं। मार्गेरिटा नोएडा के प्रदूषण भरे माहौल से बाहर निकल कर बहुत खुश हैं। वे बोर्ड मीटिंग्स की बजाय यहां अपने कैफ़े के किचन में नई रेसिपी तैयार करने और मनाली घूमने आने वाले पर्यटकों को यादगार कॉफ़ी पिलाकर अधिक खुशी महसूस करती हैं। अब वे वो सबकुछ कर पा रही हैं, जो उनका सपना था और जिसे करने का वो सोचा करती थीं।
विक्रम सर्दियों में मनाली में बर्फ़ पड़ने के बाद खुद ड्राइव करके पूरे देश में घूमने का प्लान बना रहे हैं और ये सब उस खुशी के लिए है जो उन्हें कार्पोरेट सेक्टर के ऊंचे ओहदे और भारी वेतनों ने नहीं दी।
-रवि शर्मा