पीआरपी तकनीक से माँ बनना हुआ आसान, बच्चे का सपना हो रहा साकार
आज दुनिया भर में पीआरपी ( प्लेटलेट्स रिच प्लाज्मा ) का एक्सपेरिमेंट लेवल पर इंफर्टिलिटी के लिए इस्तेमाल हो रहा है। लेकिन अभी इसका कहीं पर भी यह इस्टैबलिस्ड प्रोसीजर के तौर पर नहीं इस्तेमाल हो रहा है। वास्तव में अब पीआरपी की मदद से इन्फर्टिलिटी का इलाज संभव हो पाया है। यह जानकारी इंदिरा आईवीएफ हॉस्पिटल में आयोजित एक सेमिनार में आई वी फ विशेषज्ञ डॉ सागरिका अग्रवाल ने दी।
डॉ सागरिका के मुताबिक एक महिला पूजा (बदला हुआ नाम) की यूट्रस की लाइनिंग कमजोर और पतली थी, जिसकी वजह से वह मां नहीं बन पा रही थी। डॉक्टरों ने प्लेटलेट्स रिच प्लाज्मा (पीआरपी) तकनीक अपना कर उनकी इन्फर्टिलिटी दूर करने में सफलता प्राप्त की है। यह महिला शादी के 18 साल बाद इस तकनीक के द्वारा मां बनी।
डॉ. सागरिका अग्रवाल ने बताया कि शादी के 18 साल बाद भी पूजा मां नहीं बन पा रही थीं। मेडिकल जांच में पाया गया कि उनके यूट्रस की लाइनिंग पतली है, जिस वजह से गर्भ नहीं ठहर रहा है लेकिन यूट्रस की लाइनिंग को मोटी बनाने के तमाम प्रक्रिया और दवा अपनाने के बाद भी जब फायदा नहीं हुआ तो डॉक्टरों ने उन्हें सरोगेसी की सलाह दी। लेकिन पूजा अपने बच्चे की मां बनना चाहती थीं। तब डॉक्टरों ने प्लेटलेट्स रिच प्लाज्मा (पीआरपी) तकनीक अपनाने की सलाह दी।
आमतौर पर यूट्रस की मोटाई सात से बारह एमएम के बीच होनी चाहिए, इस मरीज के यूट्रस की मोटाई इलाज के बाद भी छह एमएम से कम रह जा रही थी। डॉक्टर ने बताया कि पीआरपी एक ऐसी तकनीक है, जिसमें मरीज के शरीर से ब्लड निकाल कर उसे विशेष तकनीक की मदद से ब्लड कंपोनेंट को अलग किया गया, जिसमें प्लेटलेट्स रिच पदार्थ काफी मात्रा में होते हैं। इसमें ग्रोथ फैक्टर और हार्मोन में सुधार की क्षमता होती है। इससे रेसिस्टेंस में सुधार होता है। मरीज को 12वें और 14वें दिन दो बार पीआरपी थेरेपी दी गई। उसकी एंडोमेट्रियल लाइनिंग धीरे-धीरे 6.2 से बढ़कर 6.8 हो गई। 18 वें दिन, उसकी मोटाई 7.4 एमएम तक पहुंच गई जो प्रेग्नेंट होने के लिए पर्याप्त थी। इसके बाद हमने आईवीएफ तकनीक की मदद ली और महिला प्रेग्नेंट हो गई।
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