ऑफिस में इमोशनल होने, रोने से बढ़ती है प्रोडक्टिविटी: रिपोर्ट
ऑफिस ऐसी जगह नहीं होनी चाहिए, जहां हमें हंसने, रोने, मजाक करने, खुलकर अपनी भावनाओं को व्यक्त करने में डर लगे.
सभी वर्किंग प्रोफेशनल्स ने अपने जीवन में कभी न कभी यह बात सुनी होगी, “Office is not a place to show emotions.” ऑफिस अपनी भावनाएं दिखाने और व्यक्त करने की जगह नहीं है. पारंपरिक तौर पर दफ्तरों में इसी सांस्कृतिक मूल्य का पालन किया जाता रहा है, लेकिन सच तो ये है कि ऑफिस में इमोशनल होना, अपनी भावनाएं व्यक्त करना और यहां तक कि रो पाना भी आपके काम और प्रोडक्टिविटी को बढ़ाने में मददगार होता है. एक नई स्टडी में यह दावा किया गया है.
प्रोफेशनल नेटवर्किंग प्लेटफॉर्म लिंक्डइन (Linkedin) की रिपोर्ट कह रही है कि वर्कप्लेस पर अपनी भावनाओं को व्यक्त करने का कर्मचारियों की प्रोडक्टिविटी पर सकारात्मक असर पड़ता है. इस रिपोर्ट में 25 मई से 31 मई, 2022 के बीच भारत में काम कर रहे 2,188 प्रोफेशनल से बातचीत की गई. उस सर्वे के आधार पर यह नतीजा निकला है कि इमोशनल होना कमजोरी नहीं, बल्कि
ताकत है.
कोविड ने सिखाया भावनाओं को व्यक्त करना
लिंक्डइन की यह सर्वे रिपोर्ट कहती है कि कोविड महामारी ने भी हमें अपनी भावनाओं को व्यक्त करने में मदद की है. सर्वे में शामिल 76 फीसदी लोगों ने कहा कि वे अब प्रोफेशनल स्पेस में अपने इमोशंस के साथ ज्यादा सहज हैं. वो खुलकर अपनी भावनाओं को व्यक्त कर पाते हैं और ऐसा करने में पहले के मुकाबले कहीं ज्यादा सहज महसूस करते हैं.
सर्वे में शामिल प्रत्येक 10 में से 9 यानि 87 फीसदी प्रोफेशनल्स ने इस बात को स्वीकार किया कि संवेदनशीलता को व्यक्त करने का उनकी प्रोडक्टिविटी पर सकारात्मक असर पड़ा है. उनकी कार्यक्षमता में इजाफा हुआ है.
इस सर्वे में शामिल दो तिहाई यानि तकरीबन 63 फीसदी लोगों ने यह बात स्वीकार की कि वे अपने बॉस के सामने रोए भी हैं. इतना ही नहीं, एक-तिहाई यानि 32 फीसदी प्रोफेशनल्स ने यह माना कि एक से अधिक बार ऐसा हुआ है कि अपने बॉस के सामने उन्होंने आंसू बहाए हैं.
महिलाओं को लेकर पूर्वाग्रह अब भी
औरतों को आमतौर पर ज्यादा इमोशनल माना जाता है. जब वर्कप्लेस पर भावनाओं को व्यक्त करने या रोने जैसी बात आती है तो इसे एक स्टीरियाटाइप की हद तक हमेशा औरतों के साथ जोड़कर देखा जाता है. उन्हें जज किया जाता है या उनके बारे में पूर्वाग्रहपूर्ण राय बनाई जाती है कि औरतें तो इमोशनल ही होती हैं.
इसलिए इस रिपोर्ट में महिला प्रोफेशनल्स का भी अलग से जिक्र किया गया है. सर्वे में शामिल प्रत्येक 5 में से 4 यानि 79 फीसदी महिलाओं ने यह बात स्वीकार की है कि जब वह ऑफिस में अपने इमोशंय व्यक्त करती हैं तो उन्हें पुरुषों के मुकाबले ज्यादा जज किया जाता है.
दफ्तर में हंसी-मजाक अच्छा है.
सर्वे में शामिल करीब 76 फीसदी लोग इस बात पर सहमत हैं कि हंसी-मजाक ऑफिस के लिए अच्छा है. इससे दफ्तर का माहौल स्वस्थ होता है. हालांकि दफ्तर में हंसी-मजाक को नापसंद करने वालों की भी कमी नहीं है. तकरीबन 56 फीसदी लोग ऑफिस में हंसी-मजाक को पसंद नहीं करते और इसे अनप्रोफेशनल मानते हैं.
आखिरकार सभी प्रोफेशनल्स अपनी जिंदगी का सबसे लंबा समय ऑफिस में गुजारते हैं. इसलिए ऑफिस में एक खुलापन होना हमारे काम को बेहतर ही करता है. ऑफिस ऐसी जगह नहीं होनी चाहिए, जहां हमें हंसने, रोने, मजाक करने, खुलकर अपनी भावनाओं को व्यक्त करने में डर लगे, बल्कि ऐसी जगह होनी चाहिए जहां हम बिना डर के वो हो सकें, जो सबसे स्नेह और सुरक्षा वाली जगहों में होते हैं.
Edited by Manisha Pandey