दोनों पैर नकली लेकिन हौसले थे फौलाद, यूरोप की सबसे ऊंची चोटी फतह कर गए चित्रसेन
जब हौसले बुलंद हो तो किसी भी बाधा को पार करते हुए कामयाबी पाई जा सकती है और छत्तीसगढ़ के युवा पर्वतारोही चित्रसेन साहू इस का ताजा उदाहरण हैं। चित्रसेन ने अपने कृत्रिम पैरों के साथ यूरोप की सबसे ऊंची चोटी माउंट एल्ब्रुस को फतह कर एक नेशनल रिकॉर्ड स्थापित कर दिया है। चित्रसेन को यह कामयाबी 23 अगस्त को हासिल हुई थी जब उन्होने चोटी पर गर्व के साथ तिरंगे को लहराया था।
रूस में स्थित इस पर्वत की ऊंचाई 5 हज़ार 642 मीटर है। अपनी इस सफलता के साथ अब चित्रसेन ऐसा करने वाले देश के पहले डबल अम्पुटी पर्वतारोही भी बन गए हैं। पर्वतारोही चित्रसेन अपनी इस चढ़ाई को पूरा करते हुए अपने अनुभवों को कैमरे पर कैद भी कर रहे थे, जिन्हें उन्होने बाद में सभी के साझा भी किया है।
चोटी से दिया संदेश
चोटी फतह करने के साथ चित्रसेन ने दुनिया भर के लोगों को मिशन इंक्लूसन और प्लास्टिक मुक्त होने का संदेश भी दिया। इस यात्रा को पूरा करने के साथ चित्रसेन ने उन सभी लोगों को धन्यवाद भी दिया जिन्होने उनका सहयोग किया था। मालूम हो कि इस चढ़ाई के दौरान ही चित्रसेन चोट के शिकार भी हो गए थे, हालांकि उन्होने बावजूद इसके अपनी चढ़ाई को जारी रखने का फैसला किया और सफलता हासिल की।
चित्रसेन को आमतौर पर लोग ‘ब्लेड रनर’ और ‘हाफ ह्यूमन रोबो’ जैसे नामों से भी जानते हैं। माउंट एल्ब्रुस फतह करने से पहले चित्रसेन माउंट किलिमंजारो और माउंट कोजीअस्को को भी फतह कर चुके हैं। माउंट एल्ब्रुस पर चढ़ाई के दौरान चित्रसेन माइनस 15 से माइनस 25 डिग्री तापमान का सामना भी कर रहे थे।
सातवें आसमान पर जज़्बा
एक सफल पर्वतारोही होने के साथ ही चित्रसेन नेशनल व्हीलचेयर बास्केटबॉल और नेशनल पैरा स्विमिंग टीम के भी सदस्य हैं, इसी के साथ वे दौड़ भी लगाते हैं। चित्रसेन के नाम 14 हज़ार फीट से स्काई डाइविंग करने का भी रिकॉर्ड दर्ज़ है, इतना ही नहीं वे एक सर्टिफाइड स्कूबा डाईवर भी हैं। मालूम हो कि चित्रसेन ने दिव्यांगजनों के ड्राइविंग लाइसेन्स के लिए काफी लंबी लड़ाई भी लड़ी है।
चित्रसेन के अनुसार चढ़ाई के दौरान आखिरी क्षणों में उनके लिए माहौल काफी थकान भरा हो चुके थे, जहां उनके पैरों में दर्द भी हो रहा था। चित्रसेनकी मानें तो उन्हें इस बात की उम्मीद नहीं थी कि यह चढ़ाई इतनी मुश्किल हो सकती है। चढ़ाई के दौरान मौसम भी चित्रसेन को काफी परेशान कर रहा था।
अपनी चढ़ाई के दौरान वे बस हर हाल में चोटी पर पहुँचकर वहाँ तिरंगा लहराना चाहते थे। अपनी चढ़ाई के दौरान चित्रसेन ने 10 घंटे का लक्ष्य तय किया था, लेकिन उन्होने इसे महज 8 घंटे में ही हासिल कर लिया।
दुर्घटना में गँवाए दोनों पैर
साल 2014 में हुए एक हादसे के चलते चित्रसेन को अपने पैर गँवाने पड़ गए थे। दरअसल वे अपनी एक रेल यात्रा के दौरान एक स्टेशन पर पानी लेने के लिए उतरे थे लेकिन तभी अचानक ट्रेन के चलने पर वे ट्रेन पर चढ़ने के लिए बढ़े और तभी उनका पैर फिसल गया। ट्रेन और प्लेटफॉर्म के बीच फंसकर घायल हुए पैर के इलाज के दौरान डॉक्टरों को उसे काटना पड़ गया, जबकि दूसरा पैर भी कुछ ही दिनों बाद इन्फेक्शन का शिकार हो गया था।
साल 2015 में चित्रसेन ने कृत्रिम पैर लगवाकर एक नई पारी की शुरुआत की और खुद को खेलों की तरफ ले जाने का मन बनाया। आज चित्रसेन इस तरह से घायल होकर अपने अंग गँवाने वाले लोगों से व्यक्तिगत तौर पर मिलते हैं और उनकी हौसलाफजाई करते हैं।
Edited by Ranjana Tripathi