स्लम में गरीब बच्चों को शिक्षा के माध्यम से उनकी 'पहचान' दिलाने में जुटे हैं कुछ युवा
एक स्वयंसेवी ग्रुप है पहचान जिसकी शुरूआत मई 2015 में हुई....
दिल्ली के एक बड़े स्लम एरिया में काम कर रहा है पहचान...
15 से ज्यादा युवा मिल कर गरीब बच्चों को कर रहे हैं शिक्षित...
कहते हैं कि किसी भी काम को करने के लिए सबसे जरूरी होता है जज्बा, जुनून और प्रबल इच्छा शक्ति। अगर किसी भी व्यक्ति या संस्था के पास ये तीन चीजें हैं तो उसे आगे बढ़ने से कोई नहीं रोक सकता और कोई भी दिक्कत उसकी उड़ान पर बाधा नहीं डाल सकती। ऐसे ही जज्बे, जुनून और इच्छा शक्ति के साथ काम कर रहा है दिल्ली में गरीब बच्चों के लिए एक ग्रुप जिसका नाम है ‘पहचान’ ।
‘पहचान ’ की शुरूआत 4 मित्र कौशिका सक्सेना, मानिक, विनायक त्रिवेदी और आकाश टंडन ने मई 2015 में की और मात्र 6 महीनों से भी कम समय में इस ग्रुप से लगभग 15 युवा जुड़ चुके हैं जो अपने स्तर पर गरीब और स्लम में रहने वाले बच्चों को बेसिक शिक्षा प्रदान कर रहे हैं। ग्रुप के जुड़े युवाओं की उम्र 22 से 27 साल के बीच है इनमें से कुछ छात्र हैं तो कुछ नौकरी पेशा।
आकाश टंडन बताते हैं कि "एक ऐसा ही ग्रुप मुंबई में था जिसका संचालन अफसाना कर रहीं थी जब मुझे मुंबई के इस ग्रुप के बारे में पता चला तो मुझे उनसे काफी प्रेरणा मिली और तभी सोचा कि क्यों न हम अपने मित्रों के साथ मिलकर कुछ ऐसा ही काम करें। मैंने ये आइडिया अपने मित्रों से साझा किया और सबको काफी पसंद भी आया, फिर सबने हमनें अपना काम बांट लिया और रिसर्च करनी शुरू की।" काफी रिसर्च के बाद इन लोगों ने तय किया कि वे दिल्ली के आईपी डिपो के पीछे के स्लम एरिया में अपना काम शुरू करेंगे। इस जगह के चयन के पीछे बच्चों को पढ़ाने के अलावा एक मैसेज देना भी था और वो ये था कि ये स्थान आईटीओ के काफी करीब है। इसके सामने WHO की बिल्डिंग भी है। आईटीओ में देश के कई प्रमुख मंत्रालयों के दफ्तर हैं लेकिन उसके काफी पास इतनी बडा स्लम एरिया है जहां काफी गंदगी है और बच्चे मूलभूल सुविधाओं से वंचित हैं तो आखिर क्यों किसी का यहां पर ध्यान नहीं जाता।
मई 2015 में ग्रुप ने अपना काम शुरू किया ये लोगों के पास गए उन्हें बताया कि वे उनके बच्चों को पढ़ाना चाहते हैं। शुरूआत में इन लोगों को अपने काम में काफी दिक्कत आती थी क्योंकि बच्चे पढ़ाई में ज्यादा रुचि नहीं लेते थे लेकिन इन लोगों ने भी हार नहीं मानी ये बच्चों का पढ़ाई की तरफ ध्यान आकर्षित करने के लिए उन्हें टॉफी देते जो बच्चा ज्यादा नंबर लाता उसे अलग से टॉफी मिलती ऐसा करके ये बच्चों में एक हेल्दी कॉम्पटीशन ला पाने में सफल रहे और धीरे-धीरे इनका कारवां बढ़ने लगा। पहले चंद बच्चे ही इनके पास आते थे लेकिन धीरे- धीर वो संख्या लगातार बढ़ती चली गई। साथ ही जब पहचान ग्रुप ने अपने काम को फेसबुक के माध्यम से लोगों तक पहुंचाना शुरू किया तो काफी और युवा जो सामाजिक कार्य करना चाहते थे वो इनसे जुड़ने लगे।
आकाश बताते हैं कि वे बच्चों को केवल बेसिक शिक्षा देते हैं कोई पाठ्यक्रम नहीं पढ़ाते जैसे कि कई बार उन्होंने देखा है कि 7वी कक्षा के बच्चे गुणा के आसान सवाल भी नहीं कर पा रहे क्योंकि उन्हें 20 से ऊपर की गिनती नहीं आती। वे बच्चे बस रटकर परीक्षा में चले जाते हैं। ऐसे में बच्चों के लिए जरूरी था कि उन्हें बेसिक शिक्षा मिले जिसके सहारे वे आगे बढ़ें और अपनी जिंदगी सुधारें।
आकाश का मानना है कि वे इस काम को ग्रुप मे रहकर ही करना चाहते हैं वो एनजीओ के तौर पर काम नहीं करना चाहते क्योंकि इस काम में वे पैसे को बिल्कुल नहीं जोड़ना चाहते, वे बताते हैं कि हम सब का मकसद इस कार्य से पैसा कमाना नहीं है न ही कोई बिजनेस करना बल्कि हम लोग गरीब बच्चों को पढ़ाकर देश को आगे बढ़ाना चाहते हैं, लेकिन अगर वे पहचान को बतौर एनजीओ रजिस्टर करवाएंगे तो उन्हें फंड मिलने लगेगा जिसकी उन्हें जरूरत नहीं है। ये सभी लोग थोड़े बहुत पैसे मिलाकर बच्चों के लिए स्टेशनरी खरीद लेते हैं।
पहचान ग्रुप शनिवार और रविवार को बच्चों की क्लासिज लेता है। पहले जहां काफी दिक्कत के बाद बच्चे आते थे वहीं इतने कम समय में ही बच्चे बढ़ चढ़कर आते हैं वे सब इन लोगों के पहुंचने से पहले ही इकट्ठा हो जाते हैं इसके अलावा बच्चों के व्यवहार में भी काफी सकारात्मक बदलाव नजर आने लगे हैं, पहले जो बच्चे पढ़ाई से दूर भागते थे वे अब काफी नई चीजें सीख रहे हैं पढ़ाई की तरफ उनका ध्यान जागृत होने लगा है वो ग्रुप के शिक्षकों को खुद बताने लगे हैं कि आज उनका क्या पढ़ने का मन है। ये सब बातें छोटी हो सकती हैं लेकिन इनके मायने काफी हैं और ये एक सकारात्मक बदलाव की तरफ इशारा कर रही हैं।
ग्रुप से ही जुड़ी एक और वॉलेन्टियर सुरभि बताती हैं कि "शिक्षा किसी भी देश के उत्थान के लिए सबसे जरूरी चीज है अगर किसी भी देश के बच्चे शिक्षित होंगे तो वो देश काफी तरक्की करेगा और एक महाशक्ति बन के उभरेगा ऐसे में सभी को चाहिए कि वे शिक्षा के प्रचार प्रसार के लिए काम करें कम से कम एक बच्चे को शिक्षित करे और देश को आगे बढ़ाने में योगदान दें।"