9 दिनों तक -35 डिग्री में पैदल चलकर, इस मां ने कुछ इस तरह दिया अपने बच्चे को जन्म
अभावों के चलते बच्चे को जन्म देने के लिए एक माँ ने तय किया -35 डिग्री सेल्सियस में 9 किमी. का सफर...
क्या हमने कभी सोचा है कि देश के उत्तरी हिस्से में अकल्पनीय ठंड के बीच रहने वाली महिलाएं भी 'मां' हैं। उन्हें भी मां बनने का और प्रेग्नेंसी के दौरान सुविधाओं का उतना ही अधिकार है, जितना कि देश की बाक़ी महिलाओं को। ख़ैर मां तो मां है और बच्चे के सलामती के लिए वह सुविधाओं का मुंह नहीं ताकती।
मां तो मां है और अपने बच्चे की सलामती के लिए वह सुविधाओं का मुंह नहीं ताकती। ऐसी ही एक मां है जिसने अपने बच्चे को जन्म देने के लिए -35 डिग्री सेल्सियस में सिर्फ इसलिए 9 किमी का सफर तय किया क्योंकि उसके आसपास सुविधाएं मौजूद नहीं थीं।
हम अक्सर सुनते हैं कि महिलाएं, बच्चे को जन्म देने के अनुभव को जीवन के सबसे सुनहरे पलों के तौर पर याद करती हैं। असहनीय पीड़ा को हराकर, वे एक नई ज़िंदगी को दुनिया में लेकर आती हैं। क्या हमने कभी सोचा है कि देश के उत्तरी हिस्से में अकल्पनीय ठंड के बीच रहने वाली महिलाएं भी 'मां' हैं। उन्हें भी मां बनने का और प्रेग्नेंसी के दौरान सुविधाओं का उतना ही अधिकार है, जितना कि देश की बाक़ी महिलाओं को। ख़ैर मां तो मां है और बच्चे के सलामती के लिए वह सुविधाओं का मुंह नहीं ताकती।
हम आपसे, हालात की विषमता को हौसलों से हराने की मिसाल कायम करने वाले एक परिवार की कहानी साझा करने जा रहे हैं। एक ऐसी मां की कहानी बताने जा रहे हैं, जिसने अपने बच्चे के सुरक्षित जन्म के लिए -35 डिग्री सेल्सियस में 9 किमी. का सफर तय किया। घटना 2014 की है, जब उत्तर भारत के लद्दाख क्षेत्र में रहने वाले एक परिवार को गर्भवती महिला की सुरक्षित डिलिवरी के लिए शरीर को जमा देने वाले तापमान में बर्फ बन चुकी नदी को पार करके, एक तरफ 45 मील (लगभग 73 किमी.) की दूरी तय करनी पड़ी। ऐसा इसलिए क्योंकि उनके घर से सबसे नजदीकी अस्पताल इतनी ही दूरी पर था।
परिवार ने ठंड से जम चुकी चादर नदी को पार करके अस्पताल तक का सफ़र तय किया। डिलिवरी के बाद परिवार ने फिर यही सफ़र, नवजात बच्चे को साथ लेकर दोहराया। उन्होंने अपने सामर्थ्य के हिसाब से बच्चे को गर्म कपड़ों में लपेटा और अपने घर वापस आए। परिवार ने न सिर्फ़ एक असंभव सा दिखने वाला सफ़र तय किया, बल्कि सोच और संभावनाओं से परे एक कहानी भी गढ़ी।
इस घटना का एक रोचक पहलू यह भी है कि परिवार को रास्ते में आईएसलैंड से आए फोटोग्राफ़र्स का एक समूह भी मिला, जो उनकी यात्रा, संघर्ष और हौसले का साक्षी बनाया। फोटोग्राफ़र टिम वोलमर ने डेली मेल के हवाले से बताया कि जब उनकी और उनके साथियों की मुलाकात इस परिवार से हुई तो वे चकित रह गए। उन्होंने कहा कि उनके मन में सबसे पहले ख़्याल आया कि विदेश में लोग कितने ख़ुशनसीब हैं कि उनके पास इतने संसाधन हैं। वह कहते हैं कि उन्होंने पश्चिमी देशों से ताल्लुक रखने वाले लोगों और ऐसे विपरीत हालात में ज़िंदगी बिता रहे लोगों की जीवनशैली के बीच के अंतर को करीब से समझा।
उन्होंने बताया कि परिवार ने 9 दिनों में रोज़ 8-8 घंटे पैदल चलकर अपना सफ़र तय किया। परिवार के साथ बच्चे भी थे और सामान भी और इस वजह से उनकी यात्रा और भी चुनौतीपूर्ण हो गई थी। इतना ही नहीं, 9 दिनों तक रोज़ाना उन्हें पहाड़ों पर ही कैंप लगाकर रुकना पड़ता था। टिम कहते हैं कि हालात कैसे भी रहे हों, परिवार ने अपने नए मेहमान का स्वागत खुले दिल से किया।
ये भी पढ़ें: अवॉर्ड ठुकराने वाली महिला IPS डी रूपा