जिन्होंने बॉक्सिंग की ट्रेनिंग नहीं ली कभी, पर अंतर्राष्ट्रीय खिलाड़िओं को सिखाते हैं पंचिंग के गुर
लड़कियों को मुफ्त में सिखाते हैं बॉक्सिंग...
कई बॉक्सिंग मुकाबलों में लड़कियों ने गाड़े झंडे...
इंटरनेशनल प्लेयर अंजली शर्मा को सिखाई बॉक्सिंग...
70 से ज्यादा राष्ट्रीय खिलाड़ियों को किया प्रशिक्षित...
ग्वालियर में देते हैं बॉक्सिंग की ट्रेनिंग...
महिला बॉक्सिंग का नाम आते ही हमारे जहन में सबसे पहले नाम आता है मैरी कॉम का। देश को ऐसी और मैरी कॉम देने की कोशिश में लगा है ग्वालियर में रहने वाला एक बॉक्सिंग कोच जिसका नाम है तरनेश तपन। जो काम तो करते हैं मध्य प्रदेश इलेक्ट्रिकसिटी बोर्ड में, लेकिन ट्रेनिंग देते हैं उन लड़कियों को जो बॉक्सिंग में अपना करियर बनाना चाहती हैं। अब तक करीब 70 से ज्यादा राष्ट्रीय खिलाड़ी दे चुके तरनेश, शौकिया तौर पर कोच बने और उन्होने कहीं से बॉक्सिंग की ट्रेनिंग नहीं ली। तरनेश ने योरस्टोरी को बताया-
“बॉक्सिंग से मेरा दूर दूर तक कोई नाता नहीं था, मैं तो हॉकी का खिलाड़ी था और ग्वालियर में दर्पण खेल संस्थान नाम के एक क्लब में खिलाड़ियों को ट्रेनिंग देने का काम करता था।”
तरनेश ना सिर्फ लड़कियों को बल्कि लड़कों को भी बॉक्सिंग का प्रशिक्षण देते हैं। दरअसल इनको बॉक्सिंग का कोच बनने की सलाह दी इनके एक दोस्त ने। जिसने इनसे कहा कि आप काफी मेहनती हो इसलिए बॉक्सिंग जैसे खेल की ट्रेनिंग दो। हालांकि तब ग्वालियर में बॉक्सिंग नया खेल था क्योंकि इससे पहले कोई इस खेल के बारे में ज्यादा नहीं जानता था। इसलिए शुरूआत में तरनेश को काफी दिक्कत भी हुई उनको इस खेल से जुड़े कोच भी नहीं मिले। तब इन्होने सेना के उन जवानों को अपने साथ जोड़ा जो इस खेल में माहिर थे। जिन्होने इनके क्लब में आने वाले लड़के लड़कियों को बॉक्सिंग की ट्रेनिंग देनी शुरू की, लेकिन सेना के जवान जिस तरह की मुश्किल ट्रेनिंग खिलाड़ियों को देते उसको देख जो लोग ये खेल खेलना चाहते थे वो इससे दूर रहने में ही अपनी भलाई समझने लगे। तब इनके मन के ख्याल आया कि क्यों ना वो खुद ही बॉक्सिंग की ट्रेनिंग देने का काम शुरू करें। इसके लिए इन्होने बॉक्सिंग के कई मुकाबले देखे और लोगों से इस खेल की जानकारियां जुटाई जिसके बाद ये अपनी समझ से बॉक्सिंग के लिए खिलड़ियों को तैयार करने लगे।
जब साल 2002 में अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर महिला बॉक्सिंग का पदार्पण हुआ तो यहां की लड़कियों के लिए बिल्कुल नई चीज थी। तब तरनेश ने सोचा कि क्यों ना लड़कियों को बॉक्सिंग से जोड़ा जाये जिसका काफी फायदा मिल सकता है। इसके बाद उन्होने लड़कों के साथ साथ लड़कियों को भी ट्रेनिंग देने का काम शुरू कर दिया। शुरूआत में इनके पास 14 साल से लेकर 18 साल तक की 15-20 लड़कियां बॉक्सिंग सीखने के लिए आती थी। जब पहली बार राज्य स्तरीय महिलाओं की बॉक्सिंग प्रतियोगिता हुई तो उसमें इनकी टीम ने भी हिस्सा लिया। जिसमें इनकी टीम चैम्पियन बनी। इसके बाद अगले दो सालों तक इनकी टीम ये खिताब अपने नाम करती रही। इसके अलावा तरनेश से ट्रेनिंग लेने वाली नेहा ठाकुर ने लगातार तीन साल तक राज्य स्तरीय बॉक्सिंग प्रतियोगिता में गोल्ड मेडल जीता। खास बात ये है कि नेहा इस खेल में जितनी चपल थी उतनी ही पढ़ाई में भी होशियार थी। यही कारण है कि इस साल नेहा ने यूपीएससी की परीक्षा में 20वां स्थान हासिल किया। तरनेश के मुताबिक ये इतिहास में पहली बार है कि जब कोई मुक्केबाज आईएएस की ट्रेनिंग ले रहा है।
धीरे-धीरे इनसे ट्रेनिंग लेकर कई खिलाड़ी राज्य और राष्ट्रीय स्तर पर काफी नाम कमान लगे जिसके बाद महिला बॉक्सिंग में ग्वालियर बड़ी ताकत बन गया। इसके बाद तरनेश ने नये बच्चों को बॉक्सिंग की ट्रेनिंग देने के लिए ग्वालियर के एक सरकारी स्कूल से कुछ लड़कियों को चुना। इनमें में ज्यादातर लड़कियां गरीब तबके से थी। इन्ही लड़कियों में से प्रीति सोनी, प्रियंका सोनी और निशा जाटव ऐसी लड़कियां थी जिन्होने खेल के लिए हर साल दिये जाने वाले मध्य प्रदेश सरकार के एकलव्य अवार्ड को अपने नाम किया। ये तीनों लड़कियां काफी गरीब परिवार से थी और मजदूरों की बेटियां थी जिनको बॉक्सिंग के गुर तरनेश ने सिखाये थे। आज तरनेश 14 साल से लेकर 24 साल तक की करीब 20 लड़कियों को बॉक्सिंग की ट्रेनिंग दे रहे हैं। खास बात ये है कि ये मुफ्त में लड़कियों को बॉक्सिंग की ट्रेनिंग देते हैं। ट्रेनिंग में आने वाला खर्च क्लब के सदस्य ही उठाते हैं।
ये तरनेश की ट्रेनिंग का ही असर है कि अब तक इनके 70 से ज्यादा महिला और पुरूष खिलाड़ी विभिन्न राष्ट्रीय बॉक्सिंग प्रतियोगिताओं में हिस्सा ले चुके हैं। जबकि 25 से ज्यादा नेशनल प्लेयर को ये ट्रेनिंग देने का काम कर रहे हैं। तरनेश से ही प्रशिक्षण प्राप्त बॉक्सर अंजली शर्मा ने तो अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर अपनी धाक जमाई हैं। आज तरनेश और उनकी सहयोगी प्रीति सोनी जिन्होने कभी तरनेश से ट्रेनिंग ली थी, मिलकर दोनों लोग बॉक्सिंग के नये खिलाड़ियों को सामने लाने का काम कर रहे हैं। तरनेश की सिखाई बॉक्सिंग के बदलौत सौ से ज्यादा खिलाड़ी विभिन्न संस्थानों में नौकरी कर रहे हैं। हालांकि इनके ज्यादातर खिलाड़ी सेना में शामिल हैं।
जाहिर है इतना करने के बाद भी तरनेश को काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ता है। खिलाड़ियों को ट्रेनिंग देने के लिए या फिर टीम के साथ दूसरे शहरों में जाने के लिए तरनेश को कई कई दिन अपने सरकारी काम से छुट्टी भी लेनी पड़ती है। आर्थिक तंगी के कारण खिलाड़ियों को बॉक्सिंग ग्लब्स की कमी का सामना करना पड़ता है। बावजूद इसके तरनश के इरादे और जुनून में अब तक ऐसा कोई पंच नहीं लगा कि वो ट्रेनिंग देने का काम रोक देते। तरनेश गिरते जरूर हैं लेकिन उठकर मुश्किलों का सामना करना उन्होने अच्छी तरह सीख लिया है। तभी तो वो कहते हैं कि “सरकारी नौकरी से रिटारयमेंट के बाद मैं अपने को इस खेल में पूरी तरह झोंक दूंगा।”