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सक्षम सीएम का अक्षम सिस्टम

योगी आदित्यनाथ के राज में भी खाकी पर हमले थमने का नाम नहीं ले रहे हैं। सीएम के शपथ लेने के 48 घंटे के भीतर ही अलीगढ़ के अलीनगर में पुलिस कांस्टेबिल खजाना सिंह की हत्या कर दी गई। वह पुलिस सब इंस्पेक्टर उम्मेद सिंह के साथ हाइवे पर थे। पांच अप्रैल को शमशाबाद आगरा में एसओजी कांस्टेबिल अजय यादव को बेखौफ अपराधियों ने गोली मार कर मौत के घाट उतार दिया और पिस्टल लूट कर फरार हो गए।

उत्तर प्रदेश की केसरिया सरकार के लगभग 70 दिन गुजरने के बाद सूबे में कानून गुनहगारों के सामने हांफता नजर आ रहा है, व्यवस्था अपनी लुटी हुई अस्मत के साथ दूर खड़ी इस खौफनाक दौर के गुजरने का इन्तजार कर रही है और जनता बड़ी हसरतों के साथ जनादेश देने के बाद अपनी उम्मीदों को विवशता के साथ जार-जार होते देखने को मजबूर है।

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जातीय हिंसा में जले सहारनपुर ने योगी सरकार के इकबाल को खाक में मिला दिया। जो अपराधी सरकार बनने के 15 दिनों तक भूमिगत हो गए थे, वे अब अपना जलवा दिखा रहे हैं और राज्य पुलिस की तरफ से जारी आंकड़े इसकी गवाही दे रहे हैं। इस साल 15 मार्च से 15 अप्रैल के बीच ही दुष्कर्म के मामले बीते साल के मुकाबले चार गुना बढ़े हैं और हत्या के मामलों में दोगुने से अधिक बढ़ोतरी हुई है।

गुजरे 2 माह के वक्त में सूबे की आवाम ने कभी कानून के मुहाफिजों को बलवाइयों के सामने अपनी हिफाजत के लिए भागते देखा तो कभी पीड़ित को विरोध करने की सजा के तौर पर अपराधियों की गोली का शिकार बनते देखा। अपराधी बारी-बारी से अस्मतरेजी करते रहे और सरकार प्रजेंटेशन देखने में मशगूल रही। 15 मिनट के फासले पर खड़ी पुलिस 2 घंटे में पहुंचती है और पुलिस जाती भी है तो कुछ कर नहीं पाती। ऐसी तेज और समर्थ पुलिस के कन्धों पर ही है उत्तर प्रदेश जैसे बड़े प्रदेश की कानून व्यवस्था की जिम्मेदारी।

क्या यह मान लिया जाए कि उत्तर प्रदेश पुलिस अक्षम, असमर्थ, गैर पेशेवर है, जो अपराधियों के सामने प्रत्येक मोर्चा दशकों से हारती चली आ रही है या ये मान लिया जाए कि उत्तर प्रदेश में पुलिस और प्रशासनिक मशीनरी का इस कदर राजनीतीकरण हो चुका है, कि सरकार में तब्दीली होने के साथ ही पुलिस और प्रशासनिक मशीनरी में भी तुरन्त बदलाव होना चाहिए अन्यथा उनकी पूर्व राजनीतिक निष्ठायें नयी सरकार के लिए परेशानी का सबब बन जाती हैं। वरिष्ठ पत्रकार हेमंत तिवारी बताते हैं, कि सपा सरकार के खासमखास अफसर अभी भी प्रदेश और जिले को चला रहे हैं। सपा निजाम में सरकार की ओर से नियुक्त वकील, जिसमें कई बकायदा सपा कार्यकर्ता हैं, अब भी अपने पदों पर जमे हुए हैं। इस पर भी प्रदेश सरकार को गौर करने की जरूरत है। राज्य सरकार ने हालात पर काबू पाने के लिए बीते दो महीनों में 200 आईपीएस अफसरों के तबादले किए तो हैं, लेकिन फिलहाल राहत मिलती दिख नहीं रही है।

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परमात्मा के बाद सबसे अधिक पुलिस नाम को सुमिरने वाली उत्तर प्रदेश की जनता अब किस आस-विश्वास के सहारे अपने दिन गुजारे, जब पुुलिस ही अपराधियों के हमलों का शिकार बन रही हो। कभी थाने के अन्दर दरोगा को झन्नाटेदार तमाचा मारा जाता है, तो कहीं एसएसपी का आवास तोडफ़ोड़ का शिकार हो जाता है।

योगी आदित्यनाथ के राज में भी खाकी पर हमले थमने का नाम नहीं ले रहे हैं। सीएम के शपथ लेने के 48 घंटे के भीतर ही अलीगढ़ के अलीनगर में पुलिस कांस्टेबिल खजाना सिंह की हत्या कर दी गई। वह पुलिस सब इंस्पेक्टर उम्मेद सिंह के साथ हाइवे पर थे। पांच अप्रैल को शमशाबाद आगरा में एसओजी कांस्टेबिल अजय यादव को बेखौफ अपराधियों ने गोली मार कर मौत के घाट उतार दिया और पिस्टल लूट कर फरार हो गए। इसके बाद बदमाशों ने प्रतापगढ़ में कांस्टेबिल राजकुमार की गोली मार कर हत्या कर दी। अभी विभाग के साथी इस सदमे से उबरे भी नहीं थे कि 08 अप्रैल की रात फिरोजाबाद में खनन माफिया ने कांस्टेबिल रवि कुमार रावत को ट्रैक्टर से कुचल कर मार डाला। सहारनपुर में तत्कालीन एसएसपी लव कुमार के घर पर हमला कर तोडफ़ोड़ की गई। शाहजहांपुर में तैनात सीओ पुवायां अरुण कुमार ने ट्रक सीज किया तो उनके घर पर हमला कर तोड़-फोड़ की गई। आगरा के फतेहपुर सीकरी में थाने के अन्दर घुस कर बलवाइयों ने बवाल काटा और सीओ रविकान्त पराशर की थाने के अन्दर ही पिटाई कर दी। आगरा के ही सिकन्दरा में खनन माफिया ने पुलिस और खनिज अधिकारी कमल कश्यप को पीट-पीट कर घायल कर दिया। एटा में थानेदार को थाने के अन्दर थप्पड़ मारे जाने जैसी घटनाएं, खराब कानून व्यवस्था और मनबढ़ अपराधियों के हौसलों की गवाही दे रही हैं।

उधर दूसरी तरफ जातीय हिंसा में जले सहारनपुर ने योगी सरकार के इकबाल को खाक में मिला दिया। जो अपराधी सरकार बनने के 15 दिनों तक भूमिगत हो गए थे अब वह अपना जलवा दिखा रहे हैं और राज्य पुलिस की तरफ से जारी आंकड़े इसकी गवाही दे रहे हैं। इस साल 15 मार्च से 15 अप्रैल के बीच ही दुष्कर्म के मामले बीते साल के मुकाबले चार गुना बढ़े हैं और हत्या के मामलों में दोगुने से अधिक की बढ़ोतरी हुई है।

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पिछले साल समान अवधि में राज्य में 101 हत्याएं हुई थीं। इस बार 240 हुई हैं। मथुरा, लखनऊ, लखीमपुर खीरी, मैनपुरी, कन्नौज, महोबा, सुल्तानपुर, नोएडा, झांसी, कुशीनगर, जौनपुर, फतेहपुर, देवरिया, हमीरपुर और बरेली में डबल मर्डर की घटनाओं ने लोगों की नींद हराम कर दी है। इलाहाबाद में सगी बहनों से रेप के बाद बेखौफ बदमाशों ने दोनों युवतियों व माता-पिता की भी हत्या कर दी। इलाहाबाद के अलावा चित्रकूट में भी चार बच्चों समेत एक ही परिवार के पांच लोगों की हत्या से लोगों में दहशत है। मथुरा में दो व्यापारियों की हत्या ने सत्तारूढ़ खेमे की चिन्ता इस हद तक बढ़ा दी, कि घटना के 24 घंटे के अन्दर 67 आईपीएस अफसरों का तबादला कर दिया गया। हालात कितने गम्भीर हैं, इसका अन्दाजा इसी से लगाया जा सकता है कि बीते दिनों इलाहाबाद उच्च न्यायालय को भी राज्य में अपराध की स्थिति पर चिन्ता जतानी पड़ी।

एक याचिका की सुनवाई के दौरान मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति डी. बी. भोसले और न्यायमूर्ति यशवंत वर्मा ने प्रधान सचिव (गृह) और पुलिस महानिदेशक को अपराध और माफिया तत्वों पर लगाम लगाने का निर्देश दिया। चुनाव से पहले भाजपा ने कहा था कि समाजवादी पार्टी सरकार के शासन में कानून व्यवस्था ध्वस्त हो चुकी है और उसने वादा किया था कि वह इसे फिर से बहाल करेगी। नारा ही यही था 'न गुण्डाराज न भ्रष्टाचार, अबकी बार भाजपा सरकार'। सत्ता विरोधी लहर पर सवार भाजपा तीन-चौथाई बहुमत से सत्ता में आयी, लेकिन दो महीने से भी कम समय में हालात सत्तारूढ़ भाजपा के खिलाफ जाने लगे हैं। हत्या, दुष्कर्म, डकैती, जातिगत और साम्प्रदायिक संघर्ष होने से कुछ बचा नहीं है।

सरकार बेतहाशा बढ़ते अपराध और लोगों के डिग रहे विश्वास के सामने लड़खड़ाती दिख रही है। राजनीति में अर्श से फर्श तक का सफर तय करने में दो महीने की अवधि कोई खास नहीं मानी जाती, खासकर तब जब लोगों के जबर्दस्त समर्थन से सत्ता हासिल की गई हो, लेकिन उत्तर प्रदेश में ऐसा होता दिख रहा है। योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व वाली भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की सरकार के 'हनीमून पीरियड' पर राज्य में ताबड़तोड़ होने वाले अपराधों की श्रृंखला ने ग्रहण लगा दिया है। विपक्ष की संख्या विधानसभा में बहुत कम है। लेकिन, अपराध के मुद्दे पर विपक्ष ने सरकार को सदन में घेरा। इस पर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने सदन को भरोसा दिलाया कि राज्य में कानून का राज होगा, अपराधियों से अपराधियों जैसा ही बर्ताव होगा और ऐसे तत्वों को राजनीतिक संरक्षण की अनुमति नहीं दी जाएगी। इसमें कोई दो मत नहीं है, कि योगी सरकार उत्तर प्रदेश में भयमुक्त माहौल देना चाहती है पर उचित कार्यशैली के अभाव में इसके दुष्परिणाम भी देखने को मिले हैं। हर थाने में एक पुरुष और एक महिला को रिसेप्शन पर नियुक्त करना महिला सुरक्षा के लिहाज से बहुत अहम् फैसला है। इसी सन्दर्भ में एंटी रोमियो स्क्वाड के गठन पर भी प्रकाश डालने की जरूरत है। योगी सरकार को गौ-रक्षा के नाम पर मारपीट करने वालों से उसी प्रकार कड़ाई से निपटना होगा, जिस प्रकार किसी एक अपराधी के साथ न्यायोचित व्यवहार किया जाता है। उन तत्वों के भी चिन्हीकरण की प्रबल दरकार है जो सरकार को बदनाम करने के लिए किसी आपराधिक घटना को अंजाम दे रहे हैं अथवा कहीं से प्रायोजित हो रहे हैं। जैसे सहारनपुर घटना के सन्दर्भ में ही देखा जाए तो कुल घटनाक्रम में अनेक ऐसे मोड़ आते हैं जब घटना परिस्थिति सापेक्ष न होकर, प्रेरित प्रतीत होती है।

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प्रदेश में अपराध का ग्राफ चढ़ने से चिन्तित मुख्यमंत्री योगी ने एक विशेष प्रकोष्ठ गठित करने का फैसला किया है। योगी खुद इसकी निगरानी करेंगे। जनमानस के मन में सीएम योगी आदित्यनाथ की नीयत को लेकर पूरा भरोसा है किन्तु सिस्टम की शरारत से पैदा हुई हरारत ने सभी को बेचैन कर दिया है। योगी आदित्यनाथ ने राज्य में कानून का राज होगा, का वचन विधानसभा में जनता को दिया है। अब अपने वचन को पूरा करना सीएम योगी की जिम्मेदारी है क्योंकि सीएम का वचन ही होता है शासन।