#SocialForGood: प्रियंका चोपड़ा से मिलना और प्लेइंग ग्राउंड में महिलाओं की एंट्री को समझना
"फेसबुक की #SocialForGood लाइव-एथॉन के महिला उद्यमशीलता पैनल को मैंने जिन अन्य महिलाओं के साथ साझा किया है, उनमें ये बात कॉमन हैं: उन सभी ने अतिरिक्त मील की यात्रा की है। उनमें से कई के अंदर कैलिबर और ड्राइव पुरुष संस्थापकों के बराबर है, और उनमें से कुछ तो ऐसी थीं जिन्होंने कई अन्य पुरुष संस्थापकों की तुलना में अधिक सफलता हासिल की है: श्रद्धा शर्मा"
"पुरुषों की दुनिया में एक महिला उद्यमी होना अपने आप में एक बड़ा अंतर है और यह अंतर भारत भर में कई लड़कियों और महिलाओं के लिए जमीन की वास्तविकताओं से पैदा होता है।"
इस सप्ताह, मैंने एक और वूमेन पावरहाउस से मुलाकात की। मैं प्रियंका चोपड़ा से मिली। दुनिया भर में उनके लाखों प्रशंसकों की तरह, मैं भी उनकी कई उपलब्धियों से प्रभावित रही हूं। लेकिन उनकी जो चीज मुझे सबसे प्रभावित करती है वह है कमिटमेंट। प्रियंका के अंदर वंचित लोगों के लिए सकारात्मक परिवर्तन पैदा करने के लिए अपने प्रभाव और विशेषाधिकार का उपयोग करने की गहरी प्रतिबद्धता है जो मुझे ज्यादा प्रभावित करती है, खासकर दुनिया भर में बच्चों, महिलाओं, लड़कियों और शरणार्थियों के लिए उनकी प्रतिबद्धता। इस साल की शुरुआत में, प्रियंका चोपड़ा ने बांग्लादेश में रोहिंग्या शरणार्थी शिविर जाने के बाद इंस्टाग्राम पर एक पोस्ट लिखी थी। उन्होंने लिखा, "मेरे दिमाग में केवल एक चीज घूम रही है कि मुझे कितना विशेषाधिकार मिला है ... मैं जो कुछ भी करती हूं उसके लिए मैं आभारी हूं और जितना संभव हो उतना जीवन आसान बनाने के लिए हमेशा एक खोज में रहूंगी। और मैं ऐसा करने की क्षमता रखने के लिए भगवान की शुक्रगुजार हूं।"
प्रियंका चोपड़ा और कुछ अलग बनाने के लिए उनकी खोज
इस मंगलवार, जब मैं मुंबई में प्रियंका चोपड़ा से मिली, तो वह ठीक वही काम कर रहीं थी। इस बार, वह भारत में महत्वपूर्ण सामाजिक कारणों और मुद्दों पर प्रकाश डाल रही थीं, और लोगों को फेसबुक इंडिया #SocialForGood लाइव-एथॉन के माध्यम से इन कारणों का समर्थन करने का एक और तरीका प्रदान कर रही थीं। वास्तविक जीवन में प्रियंका चोपड़ा से मिलना और महिला उद्यमिता पैनल पर उनके द्वारा मेरा साक्षात्कार किया जाना, मुझे इस बात का अहसास दिला रहा था कि वह इतनी सफल क्यों हैं। वह तेज हैं और बहुत सारी ऊर्जा के साथ वह कड़ी मेहनत करती हैं। यहां तक कि, उन्होंने सभी अलग-अलग फेसबुक लाइव पैनल डिस्कशन को दोपहर 12 बजे से शाम 5 बजे तक नॉन-स्टॉप होस्ट किया। इस दौरान एक बार भी ऐसा नहीं लगा कि उनके उत्साह में कमी आई हो। वह अंत में भी उतनी ही उत्साहित थीं जितनी पहले पैनल डिक्सशन में। वह उत्साहित, आकर्षक और काफी सज्जनतापूर्ण थी। प्रियंका का ऐसा कमिटमेंट एक पुरानी कहावत को याद दिलाता है- जो जीतते हैं वे हमेशा हर बार एक अतिरिक्त मील चलते हैं।
पुरुषों की दुनिया में महिला उद्यमी होना
दरअसल, फेसबुक के #SocialForGood लाइव-एथॉन के महिला उद्यमशीलता पैनल को मैंने जिन अन्य महिलाओं के साथ साझा किया है, उनमें ये बात कॉमन हैं: उन सभी ने अतिरिक्त मील की यात्रा की है। उनमें से कई के अंदर कैलिबर और ड्राइव पुरुष संस्थापकों के बराबर है, और उनमें से कुछ तो ऐसी थीं जिन्होंने कई अन्य पुरुष संस्थापकों की तुलना में अधिक सफलता हासिल की है। और फिर भी, उद्यमियों पर लगभग हर पैनल डिक्सशन में महिला उद्यमियों से एक महत्वपूर्ण सवाल पूछा जाता है: क्या उद्यमी और महिला उद्यमी होने के बीच कोई अंतर है?
यह एक प्रश्न है जिसे मुझसे अक्सर पूछा जाता है। और भी हैं जैसे, मुझे मेरी दशक लंबी उद्यमिता यात्रा के बारे में सभी पूछते हैं। हालांकि यह सवाल कई अन्य महिला संस्थापकों से भी पूछा जाता है। उनकी सफलता के बारे में जानने के बावजूद ये सवाल पूछे जाते हैं। या फिर वे कितने सालों से अपना व्यवसाय चला रही हैं। और उनकी व्यक्तिगत कहानियों के बावजूद - जो दिखाती हैं कि कैसे उन्होंने अपनी परिस्थितियों से लड़ा और सभी बाधाओं को पार किया है। और हाँ, जब भी मुझे वो सवाल पूछे जाते हैं तो मुझे खुद को थोड़ा अजीब लगता है और मैं थोड़ी परेशान हो जाती हूं। चाहें वो किसी अन्य महिला संस्थापक से भी पूछा जाता हो तब भी। और मैं केवल उम्मीद कर सकती हूं कि (जल्द ही) ऐसा समय होगा जब ऐसे प्रश्न नहीं पूछे जाएंगे। लेकिन ईमानदारी से कहूं तो, उस प्रश्न का उत्तर पारदर्शी रूप से देने के लिए मुझे जिम्मेदारी की भावना का अहसास होता है। अपेक्षा की भावना भी होती है कि इससे अन्य महिला संस्थापक भी ऐसा करेंगी। सच यह है कि यहां काफी भिन्नता है। पुरुषों की दुनिया में एक महिला उद्यमी होना अपने आप में एक बड़ा अंतर है और यह अंतर भारत भर में कई लड़कियों और महिलाओं के लिए जमीन की वास्तविकताओं से पैदा होता है।
"खेल के मैदान" में प्रवेश का सवाल
दरअसल, बड़ी संख्या में लड़कियों और महिलाओं की उस "खेल के मैदान" तक कोई पहुंच नहीं है। उनके आस-पास का वातावरण बस उन्हें मैदान में प्रवेश करने की अनुमति नहीं देता है। फिर भी, दूसरी तरफ, विशेषाधिकार की स्थिति में बैठे लोग हैं जो कहते हैं कि यह एक समान स्तर का खेल मैदान है। लेकिन लड़का और लड़की दोनों के लिए वह समान स्तर का मैदान कैसे हो सकता है? जब लड़की को उस क्षेत्र में प्रवेश की अनुमति ही नहीं दी जाती है। इसलिए, महिला उद्यमी होने में एक बड़ा अंतर है, ठीक उसी तरह जिस तरह भारत के कई हिस्सों में एक लड़की या महिला होना। ठीक उसी प्रकार जिस प्रकार एक बेटी के लिए स्कूल और कॉलेज जाने के लिए लड़ाई लड़नी पड़ती है, जबकि बेटे के लिए, उसी परिवार में, कॉलेज शिक्षा का अधिकार बहस का भी विषय नहीं है। ठीक उसी प्रकार जिस प्रकार एक कामकाजी महिला से उसके करियर और घर दोनों को प्रभावी ढंग से मैनेज करने की क्षमता की हर मोड़ पर पूछताछ की जाती है, जबकि पुरुषों की किसी एक को चुनने के लिए सराहना की जाती है। यहां, मैं इस बात पर जोर देना चाहूंगी कि भारत में बड़ी संख्या में लड़कियों के लिए, वास्तविकता अभी भी यही बनी हुई है कि उन्हें 'खेल के मैदान' में प्रवेश करने, स्तर पर काम करने और बहस व चर्चाओं के अवसर नहीं है। भारतीय महिलाओं के लिए जमीनी वास्तविकता यह है कि हम अभी उसके नजदीक भी नहीं पहुंचे हैं जहां हम पहुंचना चाहते हैं।
यही कारण है कि मैं दृढ़ता से विश्वास करती हूं कि - हमारी पृष्ठभूमि के बावजूद - हम सभी इस वास्तविकता को पहचानने की जिम्मेदारी लें। इसे स्वीकार करें। इसके बारे में बात करें। और हर मंच का उपयोग करके हम इन मुद्दों पर प्रकाश डालें। ठीक उसी तरह जिस तरह प्रियंका चोपड़ा कर रही हैं। ताकि आने वाले दशक में, यह कोई मुद्दा ही न रहे है। चर्चा जारी रखें। इस विषय पर बहस, सहमति, असहमति और इस ड्रामे के साथ आने वाले सभी ड्रामों को रहने दें। परिवर्तन ऐसी ही भावुक बातचीत के जरिए दिल से आएगा। न सिर्फ शहरों और महानगरों में जहां हम अपेक्षाकृत अधिक विशेषाधिकार प्राप्त परिस्थितियों में रहते हैं बल्कि अधिकतर आस-पास के क्षेत्रों और उपमहाद्वीप के कोनों में महिलाओं और लड़कियों के लिए परिवर्तन लाने का काम करें, जहां हम में से कुछ आते हैं और जहां हम जानते हैं कि वहां लड़कियों और महिलाओं के लिए बहुत कुछ किया जाना है।
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