भारत में बिक रहे सैनिटरी पैड में मिले हैं कैंसर पैदा करने वाले खतरनाक केमिकल – स्टडी
स्वीडिश एनजीओ इंटरनेशनल पॉल्युटेंट्स इलिमिनेशन नेटवर्क (IPEN) ने एक स्थानीय संस्था ‘टॉक्सिक लिंक’ के साथ मिलकर यह स्टडी की है.
जिस सैनिटरी पैड को पीरियड में सबसे सुरक्षित और हाइजीनिक विकल्प बताकर कंपनियां सालों से उसकी मार्केटिंग कर रही हैं, वही सैनिटरी पैड कैंसर और नपुंसकता का कारण बन रहा है. एक ताजा स्टडी में यह पाया गया कि सैनिटरी पैड को बनाने में ऐसे खतरनाक कैमिकल्स का इस्तेमाल हो रहा है, जो कैंसर का कारण बन सकते हैं.
स्वीडिश एनजीओ इंटरनेशनल पॉल्युटेंट्स इलिमिनेशन नेटवर्क (IPEN) ने एक स्थानीय संस्था ‘टॉक्सिक लिंक’ के साथ मिलकर यह स्टडी की है. उन्होंने भारत में सैनिटरी पैड बनाने वाले 10 ब्रांड्स के सैनिटरी पैड की जांच की और पाया कि उसमें खतरनाक केमिकल्स थे.
ये केमिकल्स कोई सामान्य टॉक्सिक केमिकल्स नहीं हैं, बल्कि ऐसे केमिकल्स जो शरीर में कैंसर और इंफर्टिलिटी यानी बांझपन जैसे खतरनाक स्थितियों के लिए जिम्मेदार हो सकते हैं.
“रैप्ड इन सीक्रेसी” नामक इस रिपोर्ट के खुलासे परेशान करने वाले हैं. इस रिपोर्ट के मुताबिक शोधकर्ताओं को सैनिटरी पैड्स के सभी सैंपलों में थैलेट (phthalates) और वोलेटाइल ऑर्गेनिक कंपाउंड (VOCs) के तत्व मिले हैं. इसके अलावा सभी उत्पादों में कारसिनोजन, रिप्रोडक्टिव टॉक्सिन, एंडोक्राइन डिसरप्टर्स और एलरजींस जैसे खतरनाक केमिकल्स मिले हैं.
एनजीओ टॉक्सिक्स लिंक में प्रोग्राम कोर्डिनेटर और इस स्टडी में शामिल डॉक्टर अमित का कहना है कि ये सारे केमिकल्स शरीर के लिए हानिकारक और कैंसर पैदा करने वाले हैं.
सैनिटरी पैड एक ऐसा प्रोडक्ट है, जिसमें महिलाएं हर महीने 6 से 7 दिन बहुत इंटीमेट तरीके से इस्तेमाल करती हैं. यह शरीर के बेहद नाजुक और संवेदनशील भाग में संपर्क में रहता है. इस उत्पाद में ऐसे खतरनाक केमिकल्स मिलने का अर्थ है कि यह केमिकल्स महिलाओं के शरीर में भी प्रवेश कर रहे हैं और उन्हें खतरनाक ढंग से नुकसान पहुंचा रहे हैं.
हालांकि यह इस तरह की पहली स्टडी नहीं है. इसके पहले भी स्वीडन, न्यूजीलैंड, यूके और अमेरिका में इस तरह के अध्ययन हो चुके हैं, जिसमें सैनिटरी पैड के इस्तेमाल को खतरनाक बताया गया है. सोखने की क्षमता बढ़ाने के लिए पैड्स के निर्माण में ऐसे रासायनिक तत्वों का प्रयोग किया जाता है, जो कैंसर का कारण बनते हैं.
पारंपरिक रूप से सभी समाजों और सभ्यताओं में महिलाएं पीरियड्स के दौरान कपड़े का इस्तेमाल करती रही हैं, जिसे बहुत सिस्टमैटिक तरीके से पिछले तीन-चार दशकों में हमारे विज्ञापनों ने एक असुरक्षित और अनहायजेनिक प्रैक्टिस बताते हुए सैनिटरी पैड्स के विज्ञापन किए हैं.
इन विज्ञापनों में दावा किया जाता है कि यह पीरियड के दौरान ज्यादा सुरक्षित और आसान विकल्प है. सिर्फ सैनिटरी पैड ही नहीं, बल्कि टैंपून, मेन्स्ट्रुअल कप्स जैसे पीरियड के दौरान इस्तेमाल किए जाने वाले विकल्प भी खतरनाक केमिकल्स से लैस हैं.
हालांकि मेन्स्ट्रुअल कप्स को लेकर अब तक कोई स्टडी नहीं आई है, लेकिन बहुत सारी महिलाओं को इसे इस्तेमाल करने के बाद एनर्जी और इंफेक्शन की शिकायत होती है. डॉक्टर्स आमतौर पर इसे सिलिकॉन एनर्जी समझकर मेन्स्ट्रुअल कप्स इस्तेमाल न करने की सलाह देते हैं.
संभवत: इस बारे में भी बाकायदा रिसर्च किए जाने की जरूरत है. पीरियड को सुरक्षित बनाने के नाम पर बाजार महिलाओं को जो भी विकल्प मुहैया करा रहे हैं, वो वास्तव में कितने सुरक्षित हैं.
Edited by Manisha Pandey