अपना करियर भुलाकर गरीब बच्चों का भविष्य संवारने लगीं दिल्ली की अनुक्षी
उच्च शिक्षा प्राप्त दिल्ली की अनुक्षी मित्तल अपना करियर भुलाकर अहमदाबाद में अति पिछड़े वाहिनी गंगा कम्यूनिटी क्षेत्र के गरीब बच्चों का भविष्य रच रही हैं। वह बच्चों के लिए स्कूल में अलग से लाइब्रेरी बना रही हैं। जिन बच्चों को ठीक से बैठने तक नहीं आता था, अब गुड मार्निग, थैक्यू, सॉरी, प्लीज बोलने लगे हैं।
मूलतः दिल्ली की रहने वाली अनुक्षी मित्तल विगत पांच वर्षों से अहमदाबाद (गुजरात) के एक सरकारी प्राइमरी स्कूल में वाहिनी गंगा कम्यूनिटी के बच्चों की टीचर हैं। गंगा कम्यूनिटी यहां का एक मुस्लिम बहुल होने के साथ ही काफी पिछड़ा और गरीब इलाका है। अनुक्षी अपने स्कूल के बच्चों को सिर्फ उनके पाठ्यक्रम ही नहीं पढ़ाती हैं, बल्कि उनकी कोशिश बच्चों को अपना भविष्य खुद संवारने की समझ से लैस करना होता है।
बाईस वर्षीय अनुक्षी की खुद की पढ़ाई 12वीं तक बोर्डिंग स्कूल ‘मेयो कॉलेज गर्ल्स स्कूल’ अजमेर (राजस्थान), उसके बाद दिल्ली के हिन्दू कॉलेज से हुई है। अपने कॉलेज के आखिरी वर्ष में उन्होंने टीच फॉर इंडिया फैलोशिप के लिए आवेदन किया, जिसके तहत दो साल के लिए टीचर के तौर पर सरकारी स्कूल में आने वाले गरीब बच्चों को पढ़ाना होता है।
वह कहती हैं कि उनको देश अच्छे स्कूलों और कॉलेज में पढ़ने का मौका मिला है, लेकिन हमारे देश में आज भी करोड़ों ऐसे बच्चे हैं जिन्हें स्कूल तो क्या, किताबें भी नसीब नहीं हो पाती हैं। इसीलिए अब उनका लक्ष्य समाज को वह सब वापस लौटाना है, जो उन्हे इस समाज ने दिया है।
अपने बेहतर करियर को भुला चुकीं अनुक्षी बताती हैं कि जिस स्कूल में वह बच्चों को पढ़ा रही हैं, वहां एक खास तरह की लाइब्रेरी खोलना चाहती हैं, जहां पर इन बच्चों के अतिरिक्त ज्ञानार्जन ढेर सारी किताबें हों। इसके लिए वह फंड जुटा रही हैं। उन्होंने 30 हजार रुपये जुटाने के लिए एक कैंपेन की मदद ली और एक हफ्ते में ही उनके दोस्तों और रिश्तेदारों ने उनके इस लक्ष्य को पूरा कर दिया।
इस फंड से वह अपनी क्लास में एक खूबसूरत सी लाइब्रेरी बनाने का काम शुरू कर दिया है। इस लाइब्रेरी में कम से कम 200 किताबों रखी जाएंगी। वह कहती हैं, एक साल के बाद वह यहां से चली जाएंगी, लेकिन आगे जो भी टीचर इन बच्चों को पढ़ाने आएंगे, वे इस लाइब्रेरी का इस्तेमाल बच्चों का अतिरिक्त ज्ञान विकसित करने में करेंगे। उन्होंने पिछले साल 37 बच्चों को पहली कक्षा में पढ़ाया था।
इस साल उन्हीं बच्चों को वह कक्षा दो में भी पढ़ा रही हैं। वह बच्चों को सच बोलने, चोरी न करने और जीवन में शांति के साथ रहने का पाठ पढ़ाती हैं। अब ये बच्चे गुड मार्निग, थैक्यू, सॉरी, प्लीज बोलने लगे हैं।
अनुक्षी बताती हैं कि बचपन में जब मां के साथ वह अस्पताल जाती थीं, तो वहा गर्भवती महिलाओं को अनायास गौर से देर तक देखती रहती थीं। उनकी मां उन्हें बतातीं कि अशिक्षा के कारण इनके पांच से ज्यादा बच्चे हैं और ये अपना इलाज भी सही से नहीं करा पाती हैं।
जब वह अपनी मां से उन गर्भवती महिलाओं की ऐसी मुश्किलों का समाधान पूछतीं तो मां बताती थी कि शिक्षा ही इसका सबसे कारगर इलाज है। उसके बाद होश संभलते ही उन्होंने संकल्प लिया कि वह गरीब और असहाय बच्चों को शिक्षित करने के लिए हर संभव कोशिश करेंगी।
वह कहती हैं कि उन्होंने जब इन बच्चों को पढ़ाना शुरू किया तो उनको पता नहीं था कि स्कूल होता क्या है, क्योंकि ये बच्चे पहली बार स्कूल आए थे। उनको छह माह तो बच्चों को सिर्फ ये सिखाने में लग गए कि स्कूल में कैसे बैठा जाता है, कैसे बात की जाती है। उसके बाद उन्होंने बच्चों को अंग्रेजी और गणित पढ़ाने शुरू किए।
उसके बाद वह बच्चों को वीडियो के माध्यम से पाठ्यक्रम से अलग की जानकारियां पढ़ाने लगीं। उन्हें ड्राइंग और क्ले के जरिये चित्र और मॉडल बनाकर पढ़ाती हैं। अब बच्चे तेजी से विकसित हो रहे हैं।