एक डॉक्युमेंट्री फिल्ममेकर ने बेंगलुरु की झील को किया पुनर्जीवित
डॉक्युमेंट्री फिल्ममेकर प्रिया रामसुब्बन ने जब कैकोंडरहल्ली झील को काफी बुरी हालत में देखा, तो उनसे रहा न गया और वह सौकड़ों साल पुरानी इस झील को पुनर्जीवित करने के बारे में सोचने लगीं...
प्रिया रामसुब्बन और उनकी टीम की मेहनत को देखकर शहर के कई लोग उनका साथ देने के लिए खड़े हो गये और सबसे अच्छी बात है, कि प्रिया के प्रयासों के बाद बाकी लोगों ने खुद ही झील का ख्याल रखना शुरू कर दिया। आज बेंगलुरु की कैकोंडरहल्ली झील में तमाम तरह की मछलियां, मेंढक और 40 प्रजाति के पक्षी रहते हैं। इसके अलावा कुछ सांप भी यहां अपना ठिकाना बनाए हुए हैं। आईये जानें कि किस तरह प्रिया के प्रकृति प्रेम, उनकी मेहनत और उनकी लगन ने इस बड़े काम को अंजाम दिया...
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छह साल पहले बेंगलुरु की कैकोंडरहल्ली झील काफी प्रदूषित हुआ करती थी। डॉक्युमेंट्री फिल्ममेकर प्रिया रामसुब्बन ने जब झील को इतनी बुरी हालत में देखा तो उनसे रहा न गया और वह सौकड़ों साल पुरानी इस झील को पुनर्जीवित करने के बारे में सोचने लगीं।
बेंगलुरु की प्रिया रामासुब्बन एक दिन ऐसे ही कैकोंडरहल्ली झील के पास टहल रही थीं, वहां उन्होंने देखा कि तमाम तरह की खूबसूरत तितलियां उनके चेहरे के आस-पास मंडरा रही हैं और फिर उन्होंने उस झील को संवारने का निश्चय कर लिया। लेकिन इसके लिए उन्हें टीम की ज़रूरत थी, जो एक बड़े सपोर्ट के रूप में उनके साथ काम करती। प्रिया ने अपने दोस्त रमेश शिवराम से संपर्क किया, जिसे आसपास के लोगों से अच्छी जान पहचान थी। उसने लोगों को झील की हालत के बारे में बताया। प्रिया भी कुछ लोगों की टीम बनाकर रिपोर्ट के साथ बेंगलुरु म्यूनिसिपल कॉर्पोरेशन के पास दौड़ने लगीं। एक ऑफिस से दूसरे ऑफिस वह भटकती रहीं। उन्होंने कई पर्यावरणविदों से भी संपर्क किया। येल्लपा रेड्डी, डॉ. हरिनी नागेंद्र और डॉ सब्बु सुब्रमण्य जैसे पर्यावरण प्रेमियों ने प्रिया की इस मुहिम को सहारा दिया।
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धीरे-धीरे उन्हें समर्थन मिलता गया और सरकारी विभाग से भी मदद मिलनी शुरू हो गई। दरअसल नगर निगम के पास भी झील को साफ करने के एक प्लान था, लेकिन प्रिया का प्लान उससे ज्याद बेहतर और असरकारी थी। सरकारी विभाग के प्लान में कई तरह की अड़चनें आ रही थीं। प्रिया ने कहा कि उनके पास पूरी तरह से इंजिनियरिंग टाइप का फॉर्मूला था। वे झील को साफ करने के लिए और स्पेस चाहते थे। प्रिया अपनी टीम के साथ BBMP के दफ्तर पहुंचीं और अपना नया प्लान उनके सामने पेश किया। म्यूनिसिपल कॉर्पोरेशन ने भी उनका सकारात्मक जवाब दिया।
इस प्रोजेक्ट की शुरुआत सबसे पहले बाउंड्री बनाने से हुई। झील के चारों तरफ बाउंड्री बननी शुरू हो गई ताकि आवारा पशु और कचरा फेंकने वाले लोग झील में न आ सकें। इसके बाद झील के पास से गुजरने वाली सीवेज लाइन को वहां से हटाया गया। इस प्रोजेक्ट में एक आर्किटेक्ट वासु को भी शामिल किया गया और 2008 से ये प्रोजेक्ट अपनी लय में आ गया।
प्रिया ने BBMP के प्रोजेक्ट में थोड़ा सुधार लाकर उसे और प्रैक्टिकल बनाया और वाटर व वॉकिंग स्पेस को बड़ा किया, झील के आस पास बगीचों का विस्तार किया। इस दौरान सभी टीम मेंबर बारी-बारी से शिफ्ट में काम को सुपरवाइज करते रहे, ताकि ठेकेदार द्वारा किया जाने वाला काम सही तरीके से होता रहे। इस काम में दो साल लग गए। एक बार झील का पूरा काम हो गया तो सभी लोग मॉनसून का इंतजार करने लगे। लेकिन इसे दुर्भाग्य ही कहा जाएगा कि उस दौरान ज्यादा बारिश ही नहीं हुई और झील में पानी नहीं भरा जा सका। लेकिन तीसरे महीने ही बादल उमड़ पड़े और बारिश से झील लबालब भर गई। धीरे-धीरे वहां लोगों का आना शुरू हो गया और पक्षियों ने भी अपना ठिकाना बनाना शुरू कर दिया।
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प्रिया और उनकी टीम की मेहनत को देखकर कई लोगों ने उनका साथ देना शुरू कर दिया। लोग खुद ही झील का ख्याल रखने लगे। आज इस झील में तमाम तरह की मछलियां, मेढक और 40 प्रजाति के पक्षी रहते हैं। इसके अलावा कुछ सांप भी यहां अपना ठिकाना बनाए हुए हैं। झील के पास कल्चरल प्रोग्राम आयोजित करने के लिए एक एम्पीथिएटर बनाया गया है, जहां लोग इकट्ठा होकर अपना कोई सामूहिक कार्यक्रम आयोजित करते हैं और मस्ती करते हैं। इस एम्पीथिएटर में माइक लगाने की अनुमित नहीं दी गई है, क्योंकि इससे पक्षियों को नुकसान पहुंच सकता है।
विश्व पर्यावरण दिवस के मौके पर प्रिया रामसुब्बन की ये मुहिम हमें प्रकृति को बचाए रखने के लिए प्रेरित करती है। सामूहिक रूप से पर्यावरण और समाज के लिए काम करने का ये एक बेहतरीन उदाहरण है।
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प्रिया रामसुब्बन के प्रयासों को और करीब से जानने के लिए इस वीडियो को ज़रूरी देखें,