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क्या है सेंट्रल विस्टा प्रोजेक्ट और उसे लेकर पर्यावरण संबंधी चिंताएं ?

राजधानी दिल्ली में जारी सेंट्रल विस्टा प्रोजेक्ट शहर के इतिहास, भूगोल और पर्यावरण को बदल रहा है.

क्या है सेंट्रल विस्टा प्रोजेक्ट और उसे लेकर पर्यावरण संबंधी चिंताएं ?

Wednesday August 31, 2022 , 4 min Read

दिल्ली हाई कोर्ट के समक्ष पौधों के प्रत्यारोपण को लेकर वन विभाग द्वारा प्रस्तुत किये गए हलफ़नामे से यह बात सामने आई है कि सेंट्रल विस्टा प्रोजेक्ट के तहत वर्तमान संसद भवन के रेस्टोरेशन की साइट पर लगाये गए 404 पौधों में सिर्फ़ 121 पेड़ ही जीवित रह पाए हैं.


दूसरी ओर, सीपीडब्ल्यूडी द्वारा जारी किये गए डाटा में 266 पेड़ों के सर्वाइव करने की बात कही गई है. कुल लगाये गए 402 पौधों में, 267 पेड़ सर्वाइव कर सके हैं- जिसमें 102 पेड़ न्यू पार्लियामेंट बिल्डिंग साइट पर हैं और 272 पेड़ बदरपुर NTPC इको पार्क में हैं.


बता दें, दिल्ली सरकार ट्री प्लान्टेशन पालिसी 2020 के अनुसार, प्रत्यापित किये गए पौधों में 80 प्रतिशत पौधों का जीवित रहना जरुरी है, और उस हिसाब से दोनों ही स्रोतों के नंबर उससे कम ठहरते हैं. 


इस जानकारी की रोशनी में आइए समझते हैं क्या है सेंट्रल विस्टा प्रोजेक्ट और उसे लेकर पर्यावरण संबंधी चिंताएँ क्या रही हैं. 

क्या है सेंट्रल विस्टा प्रोजेक्ट? 

केंद्र की एनडीए सरकार ने साल 2019 में अपनी एक महत्वाकांक्षी परियोजना का शिलान्यास किया जिसका उद्देश्य 1930 के दशक में अंग्रेजों द्वारा निर्मित लुटियंस दिल्ली के केंद्र में स्थित 'पावर कॉरिडोर' को एक नई पहचान दिलाने की थी. इस परियोजना में 10 बिल्डिंग ब्लॉक्स के साथ एक नई संसद, प्रधान मंत्री और उपराष्ट्रपति के आवास का निर्माण एवं सभी सरकारी मंत्रालयों और विभागों को समायोजित करने की योजना है. इस प्रोजेक्ट का नाम है सेन्ट्रल विस्टा (central vista). 


सेन्ट्रल विस्टा की इस परियोजना में 3.2 किलोमीटर के हिस्से का पुनर्विकास करना शामिल है. पुनर्विकास की इस प्रक्रिया में कई प्रतिष्ठित स्थलों सहित कई सरकारी भवनों को ध्वस्त करना और उनका पुनर्निर्माण करना भी शामिल है. इस प्रोजेक्ट की कुल अनुमानित खर्च 20,000 करोड़ रुपये हैं. नए संसद भवन के निर्माण पर करीब 1000 करोड़ रुपये खर्च का अनुमान है. 


साल 2024 तक इस प्रोजेक्ट के पूरा होने का अनुमान है. प्रोजेक्ट का निष्पादन केंद्रीय आवास और शहरी मामलों के मंत्रालय कर रहा है.

सेंट्रल विस्टा और पर्यावरण

मई 2021 में केंद्रीय लोक निर्माण विभाग (सीपीडब्ल्यूडी) ने राजपथ के साथ साझा केंद्रीय सचिवालय के तहत 3,269 करोड़ रुपये की लागत से तीन नये कार्यालय भवनों के लिए बोलियां आमंत्रित की थीं और 139 करोड़ रुपये पांच साल के रखरखाव के लिए अलग रखे गए थे. ये तीन नये भवन उस प्लाट पर निर्मित हो रहे हैं जहां वर्तमान में इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र स्थित है. इस प्रक्रिया में, केंद्रीय लोक निर्माण विभाग (सीपीडब्ल्यूडी) ने इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र (आइजीएनसीए) परिसर से लगभग अठारह सौ पेड़ों को ट्रांसप्लांट करने का फैसला किया गया है. इसी तरह सेंट्रल विस्टा के तहत प्रस्तावित समस्त इमारतों के मामले में पेड़ ट्रांसप्लांट करने और नये पौधे लगाने की योजना रही है. 


प्रोजेक्ट का विरोध करने वालों में शुरू से एक प्रमुख स्वर पर्यावरणविदों का रहा है जिनका दावा है कि सेंट्रल विस्टा प्रोजेक्ट पर्यावरण और दिल्ली के हरित क्षेत्र के लिए बड़ा खतरा है. 


जिसके जवाब में आधिकारिक सूत्रों ने हमेशा कहा है कि इस प्रोजेक्ट से ग्रीन कवर में कोई क्षति नहीं आएगी. मूल योजना के मुताबिक़ सेंट्रल विस्टा क्षेत्र में 1,753 पेड़ प्रत्यारोपित किए जाने थे और 2,000 नए पौधे लगाए जाने थे. पहले से मौजूद 3,230 पेड़ों को सेंट्रल विस्टा क्षेत्र से हटाकर बदरपुर में एनटीपीसी इको पार्क में प्रत्यारोपित किया जाना था. एनटीपीसी इको पार्क में ही क्षतिपूर्ति के तहत लगाए जाने वाले 36083 पौधों में से 32230 पौधे लगाए जाने का प्लान रहा है ताकि दिल्ली के समग्र हरित आवरण में कमी न हो. 


बीच-बीच में अलग अलग इमारतों के निर्माण के दौरान पेड़ काटे जाने की खबरें आती रही हैं. इस साल जुलाई में लोकसभा में सरकार ने बताया कि अब तक प्रोजेक्ट के तहत कुल 2466 पेड़ हटाए गए हैं. 


प्रोजेक्ट को लेकर विरोध के अन्य स्वर भी रहे हैं. पहले से स्थित इमारतों के साथ-साथ लोगों के दिल में मौजूद उनकी परिकल्पना और उनके इतिहास को भी तोड़े जाने की भावना से प्रोजेक्ट के विरोध में प्रोजेक्ट का पहला विरोध संरक्षणवादियों ने किया था जिनके मुताबिक़, सेंट्रल विस्टा प्रोजेक्ट वर्तमान इमारत के इतिहास के साथ हस्तक्षेप करने के सामान है. उनके तर्क से एडविन लुटियंस द्वारा डिजाइन 1927 की इमारत अब एक खोई हुई विरासत होगी, जिससे आने वाली पीढियां वंचित रह जाएंगी. 


दूसरा विरोध सरकार की प्राथमिकताओं लेकर था. प्रोजेक्ट पर भारी रक़म खर्च करने का ऐलान जब हुआ तब कोविड की दूसरी लहर के दौरान देशभर के अस्पतालों में ऑक्सीजन, बेड और दवाइयों का संकट था. विपक्ष की ओर से तब सरकार परियोजना को रद्द करने और कोरोना संकट से निपटने के प्रयासों के लिए उस धन का उपयोग करने का आग्रह किया गया था.