कार्बन में कमी लाकर दस साल में दो करोड़ रोज़गार पैदा कर सकता है भारत
कार्बन उत्सर्जन के मामले में नेट ज़ीरो होना भारत की जीडीपी में वृद्धि करने के साथ-साथ रोज़गार के अवसर भी बनाएगा.
पॉलिसी कमिशन ‘द गेटिंग इंडिया टू नेट जीरो’ (The Getting India to Net Zero report) के एक नई शोध रिपोर्ट में यह अनुमान लगाया गया है कि भारत अगर शुद्ध रूप से शून्य कार्बन उत्सर्जन (net zero emissions target) के लक्ष्य को वर्ष 2050 तक ही हासिल करने की पहल करता है तो उसके सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में वर्ष 2032 तक 7.3 प्रतिशत (470 अरब अमेरिकी डालर) की वृद्धि हो सकती है और लगभग दो करोड़ अतिरिक्त रोजगार भी पैदा होंगे.
इस ‘पॉलिसी’ आयोग का गठन पिछली मई में किया गया था. इसके सदस्यों में ऑस्ट्रेलिया के पूर्व प्रधानमंत्री केविन रुड, संयुक्त राष्ट्र के पूर्व महासचिव बान की-मून, नीति आयोग के पूर्व उपाध्यक्ष अरविंद पनगढ़िया और अंतर्राष्ट्रीय वित्त निगम में जलवायु व्यवसाय के वैश्विक प्रमुख एवं निदेशक विवेक पाठक शामिल हैं. नेतृत्वकर्ताओं ने इस सप्ताह नई दिल्ली में आयोजित एक समारोह में रिपोर्ट के तथ्यों को सामने रखा. उन्होंने भारत को और अधिक दक्ष, स्वच्छ तथा शक्तिशाली अर्थव्यवस्था के रूप में स्थापित करने और भारत को शुद्ध शून्य कार्बन उत्सर्जन तक पहुंचाने से सम्बंधित पहलुओं पर प्रोत्साहित किया.
बता दें कि प्रधानमंत्री नरेद्र मोदी ने पिछले साल ग्लासगो में जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन में घोषणा की थी कि भारत 2070 तक शुद्ध रूप से शून्य कार्बन उत्सर्जन का लक्ष्य हासिल कर लेगा.
इस हाई लेवल पॉलिसी कमीशन का कहना है कि भारत जलवायु से संबंधित अपनी प्रतिबद्धताओं को पूरा करके और उन्हें बढ़ाकर वित्त संबंधी जोखिमों को खत्म कर सकता है. इसके साथ ही स्वच्छ ऊर्जा में रूपांतरण को बहुत बेहतर बना सकता है. अपनी ऊर्जा प्रणाली और अर्थव्यवस्था को डीकार्बनाइज करने के लिए नीतिगत कदम उठाकर भारत सदी के मध्य तक नेट जीरो उत्सर्जन की ओर आगे बढ़ सकता है. 2050 तक लक्ष्य हासिल करने से भारत को अनेक फायदे होंगे. इस बदलाव से रोजगार अवसरों में वृद्धि एक उल्लेखनीय लाभ होगा. घरों के स्तर पर वर्ष 2060 तक ऊर्जा लागत में 9.7 अरब डॉलर की बचत हो सकती है.
रिपोर्ट ने यह सुझाव भी साझा किया है कि स्वच्छ ऊर्जा में रूपांतरण की प्रक्रिया को अभी से शुरू कर दिया जाना चाहिए. वर्ष 2023 तक नए कोयला उत्खनन को खत्म करना, 2040 तक कोयले से बनने वाली बिजली को अक्षय ऊर्जा में रूपांतरण करना, भारत को जल्द से जल्द शून्य उत्सर्जन की ओर ले जाने में मदद करेगा.
क्या हैं चुनौतियाँ?
हालांकि शुद्ध शून्य उत्सर्जन का लक्ष्य पाने के लिए भारत को कई चुनौतियों का सामना करना होगा, जिसमे सबसे बड़ी चुनौती वित्त की होगी. आयोग के अनुमान के अनुसार, भारत को 2070 के अपने लक्ष्य को पूरा करने के लिए अर्थव्यवस्था में कुल 10.1 लाख करोड़ डॉलर के भारी निवेश की जरूरत होगी.
आयोग का मानना है कि भारत हरित निवेश के लिए कार्बन राजस्व या अन्य घरेलू कर-जुटाने के तरीकों का इस्तेमाल कर सकता है. अंतरराष्ट्रीय समर्थन का लाभ उठाने से विकास, गरीबी में कमी और सामाजिक प्रभावों के प्रबंधन के लिए घरेलू वित्त उपलब्ध होगा और परिवारों पर उच्च कीमतों और करों के नकारात्मक प्रभाव कम करने में मदद मिलेगी.