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जलवायु संरक्षण-2: ग्रेटा ने अपनी जलवायु आपदा की जंग में शामिल होने के लिए पीएम मोदी को पुकारा

जलवायु संरक्षण-2: ग्रेटा ने अपनी जलवायु आपदा की जंग में शामिल होने के लिए पीएम मोदी को पुकारा

Tuesday September 24, 2019 , 6 min Read

संयुक्त राष्ट्र मुख्यालय में 'जलवायु आपदा' शिखर सम्मेलन के दौरान पीएम नरेंद्र मोदी ने विश्व समुदाय को बताया है कि आगामी कुछ वर्षों में भारत जल संरक्षण पर 50 मिलियन डॉलर खर्च करने जा रहा है। सम्मेलन में पूरे विश्व के नेताओं को खरी-खोटी सुना चुकीं स्वीडन की 16 वर्षीय पर्यावरण ऐक्टिविस्ट ग्रेटा टुनबर्ग ने पीएम मोदी से अपनी मुहिम से जुड़ने की अपील की है।

 

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जलवायु आपदा पर यूएन में लड़ाई लड़ने वाली ग्रेटा आपदा पर यूएन में ललकारने वाली ग्रेटा



इस समय भारत समेत पूरे विश्व के वायुमंडल में हरित गैसों का उत्सर्जन उच्च स्तर पर है। बढ़ते वैश्विक तापमान के कारण भीषण लू, तूफान, चक्रवात, महासागरों में बढ़ती विनाशकारी अम्लता को रोकने के लिए दुनियाभर के वैज्ञानिक और पर्यावरणविद कार्बन उत्सर्जन घटाने की मांग कर रहे हैं। ग्रैंथम इंस्टीच्यूट, इम्पीरियल कॉलेज लंदन के अध्यक्ष प्रोफ़ेसर ब्रायन होस्किन्स के मुताबिक, इस दिशा में हो रही कोशिशें अपर्याप्त होने से जलवायु पर खतरा गहराता जा रहा है। विश्व मौसम विज्ञान संगठन की एक रिपोर्ट में बताया गया है कि मानवजनित कारणों से विगत पाँच वर्षों में, 2014 से 2019 के बीच रिकॉर्ड गर्मी रही है।


इसी दौरान कार्बन डाइ ऑक्साइड के उत्सर्जन में तेज बढ़ोतरी के कारण समुद्री जलस्तर में 1993 से अब तक औसतन 3.2 मिलीमीटर प्रति वर्ष की दर से वृद्धि हो रही थी मगर 2014 से 2019 के बीच इसमें प्रति वर्ष पांच मिलीमीटर की वृद्धि दर्ज हुई है। अंटार्टटिक और ग्रीनलैंड में बर्फ की परतों के पिघलने से इसमें सालाना औसतन चार मिलीमीटर इजाफ़ा हो रहा है। वायुमंडल में कार्बन उत्सर्जन गैस की मात्रा लगातार बढ़ने से 1850 से वैश्विक तापमान में 1.1 डिग्री सेल्सियस तथा 2011 से 2015 के बीच 0.2 डिग्री सेल्सियस की बढ़ोतरी हुई है।





गत दिवस न्यूयॉर्क (अमेरिका) के संयुक्त राष्ट्र मुख्यालय में 60 देशों के प्रतिनिधियों के बीच 'जलवायु आपदा' शिखर सम्मेलन के दौरान पीएम नरेंद्र मोदी ने भारत सरकार की कोशिशों का रिपोर्टकार्ड पेश करते हुए दुनिया को आगाह किया कि अब बातों का समय खत्म हो चुका है। अब एक्शन और प्रैक्टिकल अप्रोच जरूरी है। भारत में सिंगल यूज प्लास्टिक के खिलाफ अभियान चल रहा है। भारत 2022 तक रिन्यूबल एनर्जी में अपनी कैपसिटी को 1075 गिगावाट तक ले जा रहा है। 'जल जीवन मिशन' के साथ भारत में रेन वॉटर हार्वेस्टिंग भी हो रही है। अगले कुछ सालों में भारत जल संरक्षण पर 50 मिलियन डॉलर खर्च करने जा रहा है। 

संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंतोनियो गुतारेस ने कहा है कि जलवायु आपदा से निपटने की दौड़ में दुनिया पिछड़ रही है। इस बीच विश्व के 66 राष्ट्रों ने 2050 तक शून्य कॉर्बन डाईऑक्साइड उत्सर्जन के लक्ष्य को हासिल करने का संकल्प दोहराया है। अभी सिर्फ 20 देशों ने अपने राष्ट्रीय कानून में इसे शामिल किया है। उधर, वर्षावनों के संरक्षण को अहम मुद्दा मानते हुए चिली, कोलंबिया और बोलीविया ने जलवायु आपदा से निपटने के लिए विश्व बैंक, अंतर अमेरिकी विकास बैंक और गैर लाभकारी कन्जर्वेशन इंटरनेशनल के जरिये 50 करोड़ डॉलर के अतिरिक्त कोष की व्यवस्था की घोषणा की है।


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यूएन की इस विश्व स्तरीय क्लाइमेट ऐक्शन समिट में पीएम मोदी के संबोधन से पहले वर्षों से जलवायु आपदा की लड़ाई लड़ रहीं स्टॉकहोम (स्वीडन) की सोलह वर्षीय पर्यावरण ऐक्टिविस्ट ग्रेटा टुनबर्ग ने अपनी स्पीच से वहां मौजूद दुनियाभर के नेताओं को झकझोरते हुए कहा - 'आपने हमारे बचपन, हमारे सपनों को छीन लिया है। आपकी हिम्मत कैसे हुई? युवाओं को समझ में आ रहा है कि जलवायु परिवर्तन के मुद्दे पर आपने हमें छला है। अगर आपने कुछ नहीं किया तो युवा पीढ़ी आपको माफ नहीं करेगी। अपनी गुस्से से भरी आंखों में आंसू लिए हुए ग्रेटा ने कहा कि पूरी दुनिया क्लाइमेट को झेल रही है। लोग मर रहे हैं। पूरा ईको सिस्टम बर्बाद हो रहा है और विश्व समुदाय इतना ताकतवर होते हुए भी कुछ नहीं कर पा रहा है। हम आपको जाने नहीं देंगे। आपको यहां इसी वक्त लाइन खींचनी होगी। दुनिया जग चुकी है और चीजें बदलने वाली हैं, चाहे आपको यह पसंद आए या न आए।'


गौरतलब है कि ग्रेटा स्वीडन की एक ओपेरा सिंगर हैं। उनके पिता स्वांते टनबर्ग अभिनेता हैं। ग्रेटा ने जलवायु आपदा की लड़ाई अपने घर से शुरू करते हुए दो साल तक अपने माता-पिता पर जीवनशैली बदलने का जोर डाला। उनका मांसाहार रोक दिया। जानवरों के अंगों से बनी चीजों और कार्बन उत्सर्जन के लिए जिम्मेदार विमान यात्राओं का बहिष्कार किया। पिछले साल अगस्त में जब वह नौवीं क्लास में पहुंचीं, उस वक़्त स्वीडन में बीते 262 वर्षों की सबसे भयंकर गर्मी पड़ रही थी। उस समय आम चुनाव समाप्त होने तक वह स्कूल नहीं गईं।


ग्रेटा 20 अगस्त से जलवायु आपदा की जंग में कूद पड़ीं। उन्होंने सरकार से मांग की कि पैरिस समझौते के मुताबिक कार्बन उत्सर्जन करे। अपनी बात मनवाने के लिए अपने स्कूल समय में ही उन्होंने स्वीडन की संसद के बाहर लगातार तीन हफ्ते तक विरोध प्रदर्शन किया, लोगों को पर्चियां बांटीं, विमान यात्रा बंद करने का आह्वान किया। सोशल मीडिया पर उनके आंदोलन की पोस्ट पढ़ते ही दुनिया भर से उनको समर्थन मिलने लगा। देखते-देखते ही वह जलवायु परिवर्तन के खिलाफ लड़ने वाली योद्धा बन गईं। उनके आंदोलन का नाम पड़ गया- 'ग्रेटा टुनबर्ग इफेक्ट'। ग्रेटा ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से भी अपनी मुहिम से जुड़ने और इस दिशा में ठोस कदम उठाने की अपील की है। 





संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंटोनियो गुटेरिस ने उनके स्कूली आंदोलन को सराहा। फरवरी 2019 में 224 शिक्षाविदों ने उनके समर्थन में ओपन लेटर पर हस्ताक्षर किया। ग्रेटा दुनिया के शीर्ष मंचों पर जलवायु परिवर्तन पर बोलने के लिए बुलाई जाने लगीं। उन्होंने सम्मेलन में जाने के लिए विमान यात्रा से मना कर दिया। अगस्त 2019 में वह यूके से यूएस एक ऐसे जहाज में गईं, जिनमें सोलर पैनल और अंडरवॉटर टर्बाइन लगे हुए थे। उस जहाज से कार्बन का जीरो उत्सर्जन हो रहा था। उनकी यात्रा 15 दिनों तक चली। वहां उन्होंने न्यू यॉर्क में एक जलवायु सम्मेलन में हिस्सा लिया। 


ग्रेटा ने उससे पहले दिसंबर 2018 में संयुक्त राष्ट्र जलवायु सम्मेलन को संबोधित करते हुए दुनिया के नेताओं को 'गैरजिम्मेदार बच्चा' कहा। उसके बाद जनवरी 2019 में दावोस सम्मेलन में उन्होंने दुनिया भर के चोटी के बिजनेसमैनों से कहा कि कंपनियों को मालूम है, अकूत पैसा कमाने के लिए वे वास्तव में किन मूल्यों का बलिदान ले रहे हैं। ग्रेटा अभी पिछले महीने ही, जब अमेरिका पहुंची थीं, एक रिपोर्टर ने उनसे पूछा कि क्या आप राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप से मिलना चाहेंगी, ग्रेटा ने दो टूक कहा- 'उनसे बात करके मैं अपना समय बर्बाद नहीं करनी चाहती।'


यूएस सीनेट की मीट में उन्होंने कहा,

'कृपया अपनी प्रशंसा को बचाकर रखिए। हमें इसकी जरूरत नहीं है। वास्तव में कुछ किए गए बगैर सिर्फ यह कहने के लिए हमें यहां आमंत्रित मत कीजिए कि हम कितने प्रेरक हैं।'


ग्रेटा की ही प्रेरणा से हाल ही में करोड़ों छात्रों ने एक दिन स्कूल न जाते हुए जलवायु आपदा के खिलाफ 'फ्राइडेज फॉर फ्यूचर' नाम से विश्वव्यापी प्रदर्शन कर दुनिया के बड़े-बड़े नेताओं को खरी-खोटी सुनाई।