जलवायु संरक्षण- 1: दुनिया लड़ रही अरबों की लागत से क्लाइमेट प्रोटक्शन की सबसे बड़ी लड़ाई
प्रकृति की सेहत में खतरनाक स्तर तक गिरावट के खिलाफ इस समय अमेरिकी प्रशासन को छोड़कर बाकी पूरा विश्व समुदाय क्लाइमेट प्रोटक्शन की सबसे बड़ी लड़ाई लड़ रहा है। लाखों लोग सड़कों पर उतर कर प्रदर्शन कर रहे हैं। इस दिशा में बड़ी पहल करते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी वर्षों से 'क्लीन इंडिया' कैंपेन चला रहे हैं।
कैलिफोर्निया के जलवायु वैज्ञानिक पीटर कालमुस का कहना है कि पर्यावरण के साथ ज्यादतियां कर दुनिया के लोग अपने बच्चों का भविष्य चुरा रहे हैं। विश्व के कई शहरों में आगामी दो वर्षों में तापमान 08 डिग्री सेल्सियस तक बढ़ जाने का खतरा पैदा हो गया है। आबोहवा और समुद्री जल कार्बन से भर चुका है। पूरी दुनिया में जंगलों की अंधाधुंध कटाई के साथ ही जानवरों को बेतहाशा मारा जा रहा है। हर साल 1.2 करोड़ हेक्टयेर जमीन अनुपयोगी होती जा रही है। 1.6 अरब से आज 7.5 अरब हो चुकी दुनिया की आबादी 2050 तक 10 अरब हो जाने के अंदेशों के प्राकृतिक संसाधन अभी से इतना भारी बोझ बर्दाश्त नहीं कर पा रहे हैं।
जर्मन सरकार पर्यावरण सुरक्षा के लिए आगामी कुछ वर्षों में पर्यावरण सुरक्षा पर 54 अरब यूरो खर्च करने जा रही है। सोनम वांगचुक बिना करंसी के दुनिया की सबसे बड़ी फंडिंग योजना के तहत क्लाइमेट प्रोटक्शन के लिए एक ऐसा अभियान शुरू करने जा रहे हैं, जिसके तहत लोगों की व्यक्तिगत आदतें बदलने की हर गतिविधि को करंसी में गिना जाएगा। अभी कुछ ही दिन पहले 1, 65, 000 लोग पर्यावरण सुरक्षा की लड़ाई लड़ने के लिए बर्लिन, हैम्बर्ग, ब्रेमेन, म्यूनिख, हैनोवर, फ्राइबुर्ग, मुंस्टर और कोलोन की सड़कों पर सड़कों पर उतर पड़े। इसी क्रम में पर्यावरण सुरक्षा के लिए वैश्विक हड़ताल की शुरुआत ऑस्ट्रेलिया से हुई है, जिसमें करीब 300, 000 लोगों ने हिस्सा लिया।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अगुवाई में हमारा देश क्लीन इंडिया कैंपेन शुरू कर चुका है। संयुक्त राष्ट्र के महासचिव एंटेनियो गुटरेस का कहना है कि क्लाइमेट चेंज से मुकाबले के लिए सोलर एनर्जी के क्षेत्र में भारत ने ऐतिहासिक पहल की है। भारत द्वारा संयुक्त राष्ट्र को उपहार में दिया गया गांधी सोलर पार्क पीएम मोदी द्वारा उदघाटन किए जाने के बाद 24 सितंबर से सक्रिय हो जाएगा, जिसकी क्लाइमेट प्रोटक्शन में बेहद महत्वपूर्ण भूमिका इस दिशा में भारत की प्रतिबद्धता की पूरी दुनिया में मिसाल बनने जा रही है। लगभग 10 लाख डॉलर की लागत वाले इसके 193 सौर पैनलों से 50 किलोवाट बिजली पैदा होगी।
संयुक्त राष्ट्र में कुल 193 सदस्य देश हैं। इसका प्रत्येक सोलर पैनल हर एक सदस्य राष्ट्र का प्रतिनिधित्व करेगा। इसके अलावा हमारा देश ओल्ड वेस्टबरी के एक विश्वविद्यालय परिसर में पर्यावरण उपहार के तौर पर लगाने के लिए डेढ़ सौ पेड़ों से बना 'गांधी पीस गॉर्डन' दान कर रहा है, तो गांधी जयंती के मद्देनजर संयुक्त राष्ट्र एक विशेष डाक टिकट जारी करने वाला है।
यह भी गौरतलब है कि तीन साल पहले 2016 में बने वैश्विक सौर ऊर्जा ग्रुप की शुरुआत भी भारत ने ही की, जिसमें एक सौ से अधिक देश शामिल हैं। मोदी सरकार ने स्वच्छ भारत, सिंगल यूज़ प्लास्टिक पर पाबंदी, शौचालय निर्माण आदि देशव्यापी अभियानों के साथ क्लाइमेट प्रोटक्शन की दिशा में ही सौर ऊर्जा, न्यूक्लियर ऊर्जा आदि पर कई बड़े फैसले ले चुका है। इस बीच विश्व के सबसे ताकतवर देश अमेरिका में जब कैलिफोर्निया समेत दूसरे राज्य पर्यावरण के लिए कड़े नियम बना रहे हैं तो ट्रंप प्रशासन उसे रोकने की कोशिश कर रहा है।
इतना ही नहीं, खुद का दामन साफ न रखते हुए अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प जलवायु के मुद्दे पर भारत और चीन की आलोचना करते रहते हैं। उनके कई एक कदमों से पर्यावरण बचाने के अभियानों को भारी नुकसान पहुंचा है। उल्टी नसीहत देते हुए वह कह रहे हैं कि भारत, चीन और रूस में शुद्ध हवा और पानी तक नहीं है और ये देश विश्व के पर्यावरण के प्रति अपनी जिम्मेदारी नहीं निभा रहे हैं। इस पर पूरा विश्व समुदाय उनकी आलोचना कर रहा है।
(क्रमशः)