कभी सड़कों पर मांगता था भीख, अब बीते 23 सालों से बेसहारा लोगों को खाना खिला रहा है ये शख्स
कोयंबटूर के रहने वाले बी मुरूगन बीते कई सालों से बिना एक भी दिन मिस किए लगातार बेसहारा लोगों की सेवा में लगे हुए हैं और आज वे स्थानीय लोगों के बीच एक प्रेरणास्रोत बन चुके हैं।
कभी सड़कों पर भीख मांग कर अपना गुज़ारा करने वाला ये शख्स आज बेसहारा लोगों को खाना खिलाने के लिए जाना जाता है। कोयंबटूर के रहने वाले बी मुरूगन बीते कई सालों से बिना एक भी दिन मिस किए लगातार बेसहारा लोगों की सेवा में लगे हुए हैं और आज वे स्थानीय लोगों के बीच एक प्रेरणास्रोत बन चुके हैं।
हर सुबह 3 बजे उठने वाले मुरूगन अपने घर के पास ही इस खास रसोई की स्थापना करते हैं और यूके इस नेक काम में उनकी पत्नी के साथ ही तीन सहायक और एक रसोइया भी उनकी मदद करते हैं।
मुरूगन हर रोज़ शाम 6 बजे तक इस खाने का वितरण करते हैं और खास बात यह है कि उनके द्वारा बांटे जाने वाले इस खाने को बड़ी ही साफ सफाई के साथ तैयार किया जाता है और इसके बाद उसे बड़े ढंग से पैक कर बेसहारा लोगों के बीच वितरित भी किया जाता है।
भीख मांग कर किया गुज़ारा
अपने अतीत के बारे में बात करते हुए 47 साल मुरूगन ने मीडिया को बताया है कि जब उन्होंने 12वीं कि परीक्षा दी थी तब उन्हें असफलता हाथ लगी थी और उस दौरान वे इस कदर परेशान हुए थे कि उन्होंने तीन बार आत्महत्या का भी प्रयास किया था। इस असफलता से प्रभावित होने के बाद मुरूगन साल 1992 में कोयंबटूर के सिरुमुगई आ गए, हालांकि इस दौरान उनके पास कोई भी सहारा नहीं था।
कठिन परिस्थितियों के बीच उन्हें सड़क किनारे एक भिखारी के साथ रहने को मजबूर होना पड़ा और इस दौरान वे हर रोज़ खाने के लिए संघर्ष किया करते थे। अन्य भिखारियों कि दयनीय दशा को देख उससे प्रभावित होकर मुरूगन ने तब फैसला किया था कि वे आगे बढ़कर ऐसे लोगों की मदद करेंगे।
ऐसे मिली उम्मीद
उस दौरान एक शख्स मुरूगन की मदद को आगे आए और उन्हें एक होटल में काम दिलाया। इसके बाद मुरूगन ने कई अन्य छोटे-मोटे काम भी किए। कुछ समय बाद उन्हें ऑटो ड्राइवर की नौकरी मिली और तब वे हर महीने 3 हज़ार रुपये कमाया करते थे।
मुरूगन के लिए उनके सपने को सच करने का समय साल 1998 में आया और तब उन्होंने अपने खर्च पर हर रविवार को मेट्टुपालयम रोड पर 25 बेसहारा लोगों को मुफ्त खाना बांटना शुरू किया।
शुरू किया एनजीओ
मुरूगन के इस नेक काम को देखते हुए लोग उनके समर्थन में आने लगे और तब उन्होंने इस दिशा में एक कदम और आगे बढ़ाते हुए अपने एनजीओ निज़ल मैयम की शुरुआत की। एनजीओ के नेक काम से प्रभावित होकर कम समय में ही बड़ी संख्या में वॉलंटियर्स उनके साथ जुड़ना शुरू हो गए।
साल 2011 तक मुरूगन हर रोज़ करीब 200 बेसहारा लोगों को खाना खिलाने में सक्षम हो चुके थे। आज मुरूगन हर रोज़ यह पुख्ता करते हैं कि लोगों को बांटा जा रहा खाना पूरी तरह से स्वच्छ और स्वास्थ्यवर्धक हो। आज खाने में हरी सब्जियों के साथ ही सांभर का भी वितरण किया जाता है।
मुरूगन अपनी दैनिक नौकरी के साथ ही एनजीओ का संचालन करते हैं। उन्होंने मीडिया को बताया है कि वह अपने शहर को भिखारी-मुक्त बनाना चाहते हैं, इसी के साथ वे अनाथ बच्चों और बेसहारा वृद्धजनों की भी देखभाल करना चाहते हैं।
Edited by रविकांत पारीक