वो दिग्गज कंपनियां जिन्हें एक बड़ी गलती के चलते औरतों को देने पड़े सैकड़ों करोड़ रुपये
वो बड़ी कंपनियां जिन्हें औरतें घुटनों पर ले आईं.
बीते रविवार बड़ी कंपनियों में बराबरी की बहस एक कदम और आगे बढ़ी. लंबे समय से चल रहे मुकदमे को निपटाने के लिए गूगल ने 15,500 से अधिक महिला कर्मचारियों को लगभग 920 करोड़ रुपये का भुगतान करने की घोषणा की. गूगल के ऊपर एक ही तरह के काम के लिए पुरुषों को अधिक और महिलाओं को कम पैसे देने का आरोप था.
सितंबर 2017 में पूर्व कर्मचारियों केली एलिस, होली पीज़, केली विसुरी और हेइडी लैमर ने गूगल के खिलाफ मुकदमा कर आरोप लगाए गए थे. मुकदमे को क्लास एक्शन लॉसूट माना गया. यानी कोई केस जो एक बड़े ग्रुप के हित के लिए किया जाए. इस समझौते में 236 पदों पर जॉब करने वाली महिला कर्मचारी शामिल थीं.
गूगल की खबर बाहर आते ही 'ईक्वल वर्क ईक्वल पे' को लेकर फिर बातचीत होने लगी है. गूगल ऐसी पहली बड़ी कंपनी नहीं है, जिसपर महिलाओं से भेदभाव के आरोप लगे हों और उन्हें हर्जाना भरना पड़ा हो. जानते हैं कुछ ऐसी ही बड़ी कंपनियों के बारे में जिनपर औरतों के साथ पैसों और काम के मामले में भेदभाव की बात सामने आई. ये भी जानते हैं कि कानूनी तौर पर इन कंपनियों के साथ फिर क्या हुआ.
1. रायट गेम्स
2006 में शुरू हुई इस गेमिंग कंपनी ने 10 साल के अंदर ही 10 करोड़ प्लेयर्स कमा लिए थे. 'लीग ऑफ़ लेजेंड्स' नाम के गेम के आने के बाद रायट गेम्स ख़ासा पॉपुलर हुआ. 2013 में बिज़नस इनसाइडर ने इस कंपनी को दुनिया की 25 बेस्ट टेक कम्पनीज की लिस्ट में रखा. जिस साल रायट गेम्स औरतों से क्लास एक्शन सूट हारा, उस साल कंपनी के 20 दफ्तरों में 2500 से अधिक इंप्लॉईज काम कर रहे थे. साल 2015 में कंपनी ने 124 करोड़ रुपये का रेवेन्यू कमाया था.
लेकिन इनके आलीशान दफ्तर में औरतों का सम्मान नहीं था. यहां पनप रहे लिंगभेद और स्त्रीद्वेष का पर्दाफाश तब हुआ जब कोताकू नाम के गेमिंग पत्रकारिता प्लेटफॉर्म ने इसपर एक विस्तृत रिपोर्ट की. एक महिला कर्मचारी की कहानी छापते हुए उन्होंने बताया कि किस तरह मैनेजमेंट में महिलाओं को जगह देने से न सिर्फ ये संस्थान कतराता है बल्कि महिला कर्मचारियों पर भद्दी और सेक्सिस्ट टिप्पणियां होना यहां आम है. पुरुषों का पुरुषों के साथ ही ग्रुप बना लेना और महिलाओं को अलग कर देना, उनके आइडियाज को वैल्यू न देना भी ग्रुप में लगभग रोज़ का काम था.
कोताकू ने लगभग 28 तात्कालिक और पूर्व इंप्लॉईज से बात कर इस रिपोर्ट को तैयार किया था. इस रिपोर्ट के छपने के बाद उस समय पूर्व इंप्लॉईज मेलनी मक्क्रैकन और जेस नेग्रों ने रायट गेम्स के खिलाफ केस फाइल किया. 3 साल चले केस के बाद महिलाओं की जीत हुई और दिसंबर 2021 में रायट गेम्स ने घोषणा की कि कंपनी जुर्माने के तौर पर 10 करोड़ डॉलर यानी आज के हिसाब से लगभग 780 करोड़ रुपये भरेगी. जिसमें से लगभग 625 करोड़ रुपये पीड़ित महिलाओं को जाएंगे. और बचे हुए पैसे शिकायतकर्ता महिला को मिलेंगे.
2. वॉलमार्ट
वॉलमार्ट अमेरिका की सबसे बड़ी हाइपरमार्केट चेन है. हाइपरमार्केट यानी वो दुकान जहां एक ही छत के नीचे सबकुछ मिल जाता है. जैसे इंडिया में बिग बाज़ार या स्पेंसर्स जैसी चेन्स. वॉलमार्ट की शुरुआत 1962 में हुई थी और आज की तारीख में दुनिया भर में इसके 10,500 से ज्यादा स्टोर हैं. वॉलमार्ट 24 देशों में 46 अलग-अलग नाम से स्टोर्स चला रहा है. साल 2018 में वॉलमार्ट ने भारतीय ईकॉमर्स कंपनी फ्लिपकार्ट में 77% हिस्सेदारी खरीद ली.
साल 2011 में बेटी ड्यूक्स नाम की वॉलमार्ट कर्मचारी ने वॉलमार्ट के खिलाफ क्लास एक्शन सूट फाइल किया, महिलाओं के अधिकार के हनन का आरोप लगाते हुए. बेटी ड्यूक्स के मुताबिक़ कंपनी की पॉलिसीज़ महिला विरोधी हैं और एक दो स्टोर्स नहीं बल्कि पूरे देश में महिलाओं को पुरुषों से कम पैसे मिल रहे हैं और पुरुषों के मुकाबले प्रमोशन में देरी की जा रही है. नॉर्थ कैलिफ़ोर्निया के डिस्ट्रिक्ट कोर्ट ने केस को मान्य बताते हुए 15 लाख महिला कर्मचारियों को पीड़ित पक्ष यानी 'क्लास' माना. इन 15 लाख महिलाओं में वो सभी महिलाएं शामिल थीं जिनको दिसंबर 1998 के बाद से नौकरी पर रखा गया था.
हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने 15 लाख महिलाओं को 'क्लास' मानने से मना कर दिया. कोर्ट के मुताबिक़ महिलाएं ये साबित नहीं कर पाईं कि एक-एक महिला के साथ भेदभाव हुआ है. कुछ महिलाओं की अलग-अलग कहानियां ज़रूर सामने आईं लेकिन लाखों महिलाओं के लिए भेदभाव का कोई 'कॉमन' तरीका अपनाया गया है, ये साबित नहीं हो पाया.
3. बैंक ऑफ़ अमेरिका/मेरिल लिंच
मेरिल लिंच नाम की वेल्थ इन्वेस्टमेंट कंपनी की शुरुआत साल 1914 में हुई थी. लंबे समय तक ये इस फील्ड में अमेरिका की सबसे बड़ी कंपनी रही जिसका काम फाइनेंशियल एडवाइस और स्टॉक ब्रोकरेज था. साल 2008 के इकनॉमिक रिसेशन के बाद, 2009 में इसे बैंक ऑफ़ अमेरिका ने एक्वायर कर लिया. लेकिन कंपनी का नाम 'मेरिल' ही चलता रहा, जो बैंक ऑफ़ अमेरिका के इन्वेस्टमेंट डिवीज़न की तरह काम करता आया है.
साल 2010 में मेरिल के खिलाफ क्लास एक्शन सूट फाइल हुआ. शिकायतकर्ता महिलाओं का आरोप था कि न सिर्फ सैलरी के मामले में महिलाओं के साथ भेदभाव किया जाता है, बल्कि महिला ब्रोकर्स को न ही बेहतर अकाउंट्स/क्लाइंट दिए जाते हैं, न ही उनके काम की वैल्यू होती है. इस क्लास एक्शन में महिलाएं जुड़ती गईं और 2013 तक लगभग 4800 पीड़ित महिलाएं थीं.
सेटलमेंट के तहत बैंक ऑफ़ अमेरिका ने लगभग 304 करोड़ रुपये पीड़ित महिलाओं को दिए थे. इसके साथ कोर्ट ने संस्थान को आदेश दिया था कि वो कॉर्पोरेट साइकोलॉजिस्ट की मदद से संस्थान में ऐसा कल्चर लेकर आएं कि क्लाइंट या अकाउंट बांटते हुए महिला ब्रोकर्स के साथ कोई भेदभाव न हो. साथ ही टीम्स का विभाजन भी इसी तरह हो कि महिलाओं का हर तरह के काम में प्रतिनिधित्व बना रहे.
भले ही बैंक ऑफ़ अमेरिका के लिए ये इस तरह का पहला वाकया हो, मगर मेरिल लिंच का इतिहास दागदार था. 1998 में मेरिल लिंच को लगभग ऐसे ही भेदभाव के केस में 3000 महिलाओं को 2000 करोड़ (आज के हिसाब से) देने पड़े थे. वहीं साल 2013 (केस 2005 में शुरू हुआ था) में नस्लभेद के एक केस में 1200 कर्मचारियों को लगभग 1200 करोड़ रुपये देने पड़े थे.
4. नाइकी
1964 में शुरू होने वाला ब्रांड नाइकी इस वक़्त दुनिया का सबसे बड़ा स्पोर्ट्स अपैरेल ब्रांड है. दुनियाभर में नाइकी में लगभग 80,000 कर्मचारी काम करते हैं.
साल 2018 की शुरुआत में कंपनी की कुछ महिलाओं ने पाया कि न सिर्फ उनके साथ भेदभाव हो रहा है बल्कि हाई लेवल मैनेजमेंट में महिलाएं नहीं हैं. हाल ही में 3 महिलाओं ने हाई मैनेजमेंट से इस्तीफ़ा दिया था. इसके बाद कुछ महिलाओं ने एक इंटरनल सर्वे किया. एक क्वेश्चनेयर बनाकर कंपनी की महिलाओं में बांटा गया जिसमें पूछा गया था कि क्या उन्हें सैलरी और जॉब में मिलने वाले मौकों में भेदभाव महसूस होता है. नाइकी के स्तर की कंपनी के लिए सर्वे के नतीजे चौंकाने वाले थे.
हालांकि सर्वे के नतीजे कभी पब्लिक में नहीं आए. लेकिन कंपनी के सीईओ मार्क पार्कर को सर्वे के पर्चे सौंपे जाने के बाद नाइकी के हायर मैनेजमेंट से लगभग 11 पुरुषों को छोड़कर जाते देखा गया. इसके बाद खबर अंदर रुक नहीं सकी. साल 2018 में ही पहले द वॉल स्ट्रीट जर्नल और न्यू यॉर्क टाइम्स में विस्तृत रिपोर्ट्स छपीं. टाइम्स की रिपोर्ट में 50 महिलाओं से बात की गई थी. जिसके बाद कई घटनाएं सामने आईं- जैसे पुरुषों का ऑफिस पार्टीज के बाद स्ट्रिप क्लब जाना जहां औरतों को सहज महसूस नहीं होता, एक मैनेजर का अपनी सेक्स लाइफ और बैग में भरे कॉन्डम पैकेट्स के बारे में बढ़-चढ़कर बताना, एक पुरुष का एक महिला को जबरन किस करना, वगैरह. लेकिन मसला सिर्फ इतना ही नहीं था. रिपोर्ट में सामने आया कि महिलाओं को पुरुषों के बराबर काम करते हुए भी उनसे कम सैलरी मिल रही थी, उन्हें बास्केटबॉल जैसे महत्वपूर्ण डिवीज़न्स से बाहर रखा जा रहा था और मीटिंग में उनके आइडियाज को तरजीह नहीं दी जा रही थी.
10 अगस्त 2018 को 4 महिलाओं ने नाइकी के खिलाफ क्लास एक्शन लॉसूट की अर्जी डाली. शिकायतकर्ताओं और कंपनी के बीच अब भी कोर्ट में तनातनी चल रही है. हालिया रिपोर्ट्स के मुताबिक़, नाइकी इस बात पर अड़ा हुआ है कि वो अपने इंटरनल डॉक्यूमेंट पब्लिक नहीं कर सकता. अगर इस केस को क्लास एक्शन का दर्जा मिल जाता है तो इससे लगभग 5000 महिलाएं पीड़ित केटेगरी में आ जाएंगी जिन्हें नाइकी कंपनी से मुआवज़ा मिल सकता है.
5. डिज़नी
1923 में डिज़नी कार्टून कंपनी के नाम से शुरू हुआ डिज़नी आज दुनिया में एनीमेशन इंडस्ट्री का बेताज बादशाह है. लगभग 10 फिल्म स्टूडियोज का मालिक होने के साथ-साथ डिज़नी तमाम टीवी चैनल्स और OTT प्लेटफॉर्म्स का भी मालिक है. इसके अलावा डिज़नी के थीम पार्क, होटल और क्रूज़ भी चलते हैं.
अप्रैल 2019 में डिज़नी की दो महिला इंप्लॉईज ला'रोंडा रासमुसेन और कैरेन मूर ने कंपनी के खिलाफ भेदभाव का केस दर्ज किया. शिकायतकर्ताओं के मुताबिक़ न सिर्फ कंपनी महिलाओं को एक जैसे काम के लिए पुरुषों के मुकाबले कम सैलरी देती है, बल्कि इंप्लॉईज को अपनी सैलरी दूसरों को बताने या सैलरी पर चर्चा करने पर भी रोक लगाती है, जो गैरकानूनी है. महिलाएं सैलरी में बढ़त, हर्जाने के पैसे के साथ-साथ मौकों में बराबरी की डिमांड कर रही हैं.
डिज़नी ने इन आरोपों को नकारते हुए स्टेटमेंट भी जारी किए थे. फ़िलहाल केस तनातनी में अटका हुआ है.