आखिर क्यों गूगल को अपनी महिला कर्मचारियों को 900 करोड़ रु. का हरजाना देना पड़ा, जानिए पूरी कहानी
गूगल पर आरोप है कि वह #equalworkequalpay या #समानकामसमानवेतन नहीं देता. कंपनी में व्यवस्थति ढंग से महिलाओं के साथ भेदभावपूर्ण व्यवहार हो रहा है. मर्दों के बराबर योग्यता, क्षमता वाली और समान पद पर काम कर रही महिलाओं को उनके मुकाबले 50 से 100 गुना कम तंख्वाह दी जा रही है.
5 साल पहले 7 अप्रैल, 2017 को दुनिया भर के अखबारों के पहले पन्ने की हेडलाइन थी- “गूगल पर लैंगिक भेदभाव और जेंडर पे गैप का आरोप, यूएस लेबर डिपार्टमेंट ने किया केस.”
यूं तो सिलिकॉन वैली में शायद ही कोई कंपनी ऐसी हो, जिस पर लैंगिक भेदभाव, सेक्सुअल हैरेसमेंट और जेंडर पे गैप का मुकदमा न चल रहा हो. तीन महीने पहले जनवरी, 2017 में लेबर डिपार्टमेंट ने ऑरेकल पर केस किया था क्योंकि वह गोरे मर्दों को बाकियों के मुकाबले पचास गुना ज्यादा सैलरी दे रहा था. मार्च, 2015 में फेसबुक और ट्विटर और सितंबर में माइक्रोसॉफ्ट पर केस हो ही चुका था. गूगल पर हुआ मुकदमा इन तमाम मुकदमों की फेहरिस्त में अगली कड़ी थी.
अमेरिका के लेबर डिपार्टमेंट ने गूगल पर आरोप लगाया कि कंपनी में बहुत व्यवस्थति ढंग से महिलाओं के साथ भेदभावपूर्ण व्यवहार हो रहा है. मर्दों के बराबर योग्यता, क्षमता वाली और समान पद पर काम कर रही महिलाओं को उनके मुकाबले बहुत कम सैलरी दी जा रही है और यह अमेरिका के 'फेडरल इंप्लॉयमेंट कानून' का उल्लंघन है.
इक्वल पे एक्ट, 1963 और उसका प्रभाव
1963 में जॉन एफ. कैनेडी की सरकार में अमेरिका के श्रम कानूनों में बदलाव हुआ, जो लंबे फेमिनिस्ट मूवमेंट का नतीजा था. इस बदलाव के तहत नया ‘इक्वल पे एक्ट, 1963’ बना, जिसके तहत स्त्री-पुरुष के बीच पे गैप यानि समान काम के लिए औरतों को मर्दों के मुकाबले कम सैलरी दिए जाने को दंडनीय करार कर दिया गया. अमेरिका के लेबर ब्यूरो की 2019 की रिपोर्ट कहती है कि 1963 में यह कानून लागू होने के बाद से लेकर अब तक महिलाओं की औसत तंख्वाह में 62.3 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है.
फिलहाल पिछले दस सालों में अमेरिका में ऐसे मुकदमों का अंबार लग गया है, जहां बड़ी-बड़ी कंपनियां जेंडर पे गैप के मुकदमों की चपेट में आ गई हैं, जिनमें एक बड़ी संख्या सॉफ्टवेअर और टेक कंपनियों की है.
पूरी दुनिया में कर्मचरियों का विरोध प्रदर्शन
ये घटना है 1 नवंबर, 2018 की. सुबह 11 बजे के आसपास गूगल के टोक्यो दफ्तर के बाहर सैकड़ों की संख्या में गूगल के कर्मचारी दफ्तर से बाहर निकल आए. उनके हाथ में बैनर-पोस्टर थे, जिस पर अंग्रेजी में लिखा था- ‘स्पीक अप, स्पीक आउट.’ ये प्रदर्शन सिर्फ टोक्यो में नहीं हो रहा था. धीरे-धीरे तस्वीरें आनी शुरू हुईं. ज्यूरिख, बर्लिन, हइफा (इस्राइल), लंदन, बर्लिन, डेनमार्क, डबलिन, न्यूयॉर्क, इन तमाम शहरों में गूगल के दफ्तर के बाहर भारी संख्या में लोग एकजुट होकर कंपनी के खिलाफ विरोध प्रदर्शन कर रहे थे. प्रदर्शन कर रहे लोग कोई और नहीं, गूगल के कर्मचारी थे.
ताजा मुद्दा कंपनी एक बड़े अधिकारी के खिलाफ सेक्सुअल हैरेसमेंट का केस था, जिसे कंपनी ने दबाने और उस अधिकारी को बचाने की कोशिश की थी. गूगल ने एंड्रॉयड मोबाइल सॉफ्टवेअर बनाने वाले एंडी रूबिन पर सेक्सुअल हैरेसमेंट का आरोप लगने पर उससे इस्तीफा तो मांग लिया, लेकिन जाते-जाते भी 9 करोड़ डॉलर का सीवरेंस पैकेज (नौकरी जाने का मुआवजा) दिया और सेक्सुअल हैरेसमेंट के मामले को दबा गए. लोग यह मानकर संतुष्ट थे कि केस न भी हुआ हो तो भी एंडी रूबिन ने नौकरी तो छोड़ दी, लेकिन न्यूयॉर्क टाइम्स के इंवेस्टिगेशन से पता चला कि कंपनी ने एंडी रूबिन से न सिर्फ इस्तीफा मांगा था, बल्कि मोटा पैकेज भी दिया था. इस खुलासे के बाद ही पूरी दुनिया में गूगल के दफ्तरों के बाहर विरोध प्रदर्शन शुरू हुए और रूबिन को दिए मुआवजे की रकम को लेकर भी बवाल मचा.
दुनिया के 8 से ज्यादा देशों में हो रहा यह विरोध कुल मिलाकर कंपनी के भीतर बहुत सिस्टमैटिक तरीके से बरसों से हो रहे जेंडर भेदभाव के खिलाफ था. ट्विटर पर महिलाएं लिख रही थीं कि गूगल का माहौल महिला कर्मचारियों के लिए सिर्फ असुरक्षित नहीं, बल्कि हिंसक है.
गूगल के खिलाफ मुकदमा और वो चार महिलाएं
द गार्डियन ने अगले दिन उस प्रोटेस्ट को रिपोर्ट करते हुए अपनी स्टोरी की पहली लाइन लिखी- “केली एलिस को माफी चाहिए.”
बेतरतीब बालों, निर्भीक आंखों वाली 34 साल की केली ऐलिस वही महिला थी, जो गूगल के खिलाफ लैंगिक भेदभाव के मुकदमे में प्रमुख वादी थी. जिसने सबसे पहले कंपनी के खिलाफ महिलाओं को कम सैलरी देने का मुद्दा उठाया था. लेकिन यह पहली बार नहीं था, जब केली ने कंपनी के स्त्री विरोधी माहौल के खिलाफ आवाज ऊंची की थी. 2015 में उन्होंने सार्वजनिक रूप से कंपनी में उनके साथ हुए सेक्सुअल हैरेसमेंट के बारे में खुलकर बोला था. उन्होंने कहा, “मैं अकेली महिला नहीं थी. मेरे जैसी बहुत सारी थीं. मुझे पता नहीं कि गूगल कभी इसके लिए माफी भी मांगेगा. लेकिन सिर्फ माफी काफी नहीं. यह तरीका, यह माहौल बदलना चाहिए.”
गार्डियन ने लिखा कि गूगल के खिलाफ इतनी बड़ी संख्या में लोगों को सड़कों पर उतरा देख केली काफी भावुक हो गई थीं. उन्होंने कहा, “पिछला गुस्सा, पिछली यादें सब लौट-लौटकर आ रही हैं, लेकिन मैं खुश हूं कि इतने सारे लोग अब बोल रहे हैं.”
साल 2006 में यूनिवर्सिटी ऑफ वर्जीनिया से सॉफ्टवेअर इंजीनियर की डिग्री लेने वाली केली ने 2010 में गूगल में बतौर सॉफ्टवेअर इंजीनियर काम करना शुरू किया. थोड़े दिन वहां काम करने के बाद केली को पता चला कि उनके साथ काम कर रहे पुरुष कर्मचारी, जो उनसे कम क्वालीफाइड थे, कंपनी उन्हें केली के मुकाबले ज्यादा बड़ी तंख्वाहें दे रही थी. इतना ही नहीं, पुरुषों को लगातार बेहतर पोजीशन, मौका, प्रमोशन, डिपार्टमेंट सबकुछ मिल रहा था, जबकि बेहतर और समान काबिलियत के बावजूद महिला कर्मचारी पुरुषों से काफी पीछे थीं. ये अकेले केली की कहानी नहीं थी. केली के जैसी सैकड़ों महिलाएं थीं, जो कम पैसे में ज्यादा काम कर रही थीं.
केली के अलावा केस में तीन और प्रमुख वादी थीं- हॉली पीज, केली विसूरी और हेदी लमार. हॉली साढ़े दस साल गूगल के माउंटेन व्यू और सन्नीवेल ऑफिस टेक्निकल लीडरशिप भूमिकाओं में रहीं. केली विसूरी ने ढ़ाई साल गूगल के माउंटेन व्यू ऑफिस में काम किया. हेदी पालो ऑल्तो में गूगल के चिल्ड्रेन सेंटर में चार साल प्रीस्कूल टीचर और इंफेंट/टॉडलर टीचर थीं.
10,800 महिला कर्मचारियों ने किए हस्ताक्षर
लेबर डिपार्टमेंट के मुकदमे में ऐसी 15,500 महिला कर्मचारियों के हस्ताक्षर हैं, जो गूगल की भेदभावपूर्ण नीतियों और मर्दवादी पूर्वाग्रहों के कारण प्रभावित हुईं. और ये 15,500 महिलाएं सिर्फ गूगल के कैलिफोर्निया ऑफिस में काम कर रही या काम कर चुकी महिलाएं हैं. अमेरिका में गूगल के बाकी दफ्तरों और पूरी दुनिया में गूगल के सैकड़ों अन्य दफ्तरों में काम कर रही 60,000 से ज्यादा महिला कर्मचारी तो इस मुकदमे का हिस्सा भी नहीं हैं और इसलिए उन्हें इस समझौते का कोई लाभ भी नहीं मिलेगा.
मुकदमा दायर करने से पहले लेबर डिपार्टमेंट ने गूगल के खिलाफ इंक्वायरी बिठाई. वजह थी वार्षिक ऑडिट के दौरान पाई गई अनियमितताएं. केली के सार्वजनिक रूप से इस मुद्दे को उठाने से पहले लेबर डिपार्टमेंट अपने ऑडिट में इस नतीजे पर पहुंचा था कि गूगल महिलाओं के खिलाफ बहुत सुव्यवस्थित तरीके से भेदभाव कर रहा था. जब डिपार्टमेंट ने गूगल से सारे कर्मचारियों की तंख्वाहों की डीटेल मांगी तो गूगल ने बहुत सारे इंटर्नल रिकॉर्ड देने से इनकार कर दिया. यह डिपार्टमेंट के कान खड़े करने के लिए काफी था. आखिरकार जज के आदेश पर गूगल को सारे डॉक्यूमेंट
सौंपने पड़े.
मीडिया कवरेज को सेंसर करने की कोशिश
गूगल के कारनामों की फेहरिस्त यहीं खत्म नहीं होती. सैन फ्रांसिस्को की अदालत में मुकदमे की सुनवाई के दौरान गूगल ने कोर्ट से इस मुकदमे को खारिज किए जाने की मांग की. कोर्ट ने मांग ठुकरा दी. उसके बाद गूगल ने एड़ी-चोटी का जोर लगा दिया कि केस से जुड़ी तफसील मीडिया में न जाने पाए. गूगल ने केस की सुनवाई के दौरान मीडिया की मौजूदगी को सेंसर करने की मांग की, मीडिया कवरेज को रोकने की कोशिश की. गूगल ने जज से मांग की कि इस केस की सुनवाई बंद दरवाजों के अंदर हो, जिसे जज ने ठुकरा दिया था.
22 मई, 2017 को केस की सुनवाई के दौरान फेडरल अटॉर्नी ने पहली बार सार्वजनिक रूप से सरकारी जांच में पाई गई अनियमितताओं का जिक्र किया. किस तरह पूरे अमेरिका में गूगल के सभी दफ्तरों में सिस्टमैटिक तरीके से यह भेदभावपूर्ण व्यवहार हो रहा था और गूगल ने सरकारी एजेंसी की जांच में सहयोग करने से इनकार कर दिया था.
900 करोड़ रु. का मुआवजा
अप्रैल, 2017 में हुआ केस अब एक समझौते पर आकर खत्म हो गया है. गूगल ने मुकदमे का निपटारा करने के लिए 118 मिलियन डॉलर यानि करीब 900 करोड़ रु. का भुगतान करने पर सहमति जताई है. यह राशि 14 सितंबर, 2013 से लेकर अब तक गूगल में काम कर चुकी 15500 महिलाओं को मिलेगी. सैन फ़्रांसिस्को के सुपीरियर कोर्ट के जज शुक्रवार को इस समझौते को अपनी मंजूरी देंगे.
900 करोड़ ठीकठाक रकम है. इस नतीजे को ऐसे भी देखा जा सकता है कि यह महिलाओं की जीत है. लेकिन गूगल ने सिर्फ मुआवजा दिया है, अपनी गलती स्वीकार नहीं की है. माफी नहीं मांगी है. गूगल ने यह नहीं माना है कि वह सिस्टमैटिक तरीके से लगातार महिलाओं के साथ भेदभावपूर्ण व्यवहार कर रहा है. उन्हें मर्दों के मुकाबले कम सैलरी दे रहा है, सेक्सुअल हैरेसमेंट के आरोपियों को बचा रहा है, उन्हें लाखों डॉलर दे रहा है और इन सबके खिलाफ बोलने वाली महिलाओं को अपनी नौकरी और कॅरियर से हाथ धोना पड़ रहा है.
केली ने कहा था, “बात सिर्फ पैसे की नहीं है. बात उस सोच, उस तरीके, उस रवैए की है. यह माहौल बदलना चाहिए. केली को माफी चाहिए.”
सबकुछ के अंत में भी वो नहीं हुआ, जो होना चाहिए था. 257 अरब डॉलर वाले गूगल ने अपने खजाने में से 118 मिलियन पकड़ा दिए, लेकिन माफी फिर भी नहीं मांगी.