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21वीं सदी में सहानुभूतिशील पूंजीवाद: समान आय वितरण का लक्ष्य

यह समझना महत्वपूर्ण है कि प्रेम और संवेदना हमारे कार्यस्थलों में बहुत बड़ी भूमिका निभाते हैं. यह उचित आत्महित और विकास की कहानी में दूसरों को शामिल करने की इच्छा ही है, जो आर्थिक समृद्धि और समान आय वितरण को रास्ता दिखा सकती है.

21वीं सदी में सहानुभूतिशील पूंजीवाद: समान आय वितरण का लक्ष्य

Saturday August 19, 2023 , 7 min Read

दुनिया भर के लीडर इस गंभीर सवाल का सामना कर रहे हैं कि क्या संवेदना और कार्य-संपादन एक-दूसरे के विरोध में हैं या अनुकूल हैं. दूसरे शब्दों में, कई लोग पूछ रहे हैं कि क्या 21वीं सदी में सहानुभूतिशील पूंजीवाद संभव है. 

हम ऐसे समय में संवेदना की अत्यधिक मांग का अनुभव कर रहे हैं जब परिणामों से बिलकुल भी समझौता नहीं किया जा सकता है. इस कारण से, कई लीडर जाल में फंस गए हैं, जैसे की संवेदना और कार्य-संपादन के बीच चयन करना ही एकमात्र विकल्प है. इसलिए, लीडरशिप स्तर पर कई चुनौतियों में से एक है अच्छा संतुलन बनाना; कार्य-संपादन को बेहतर बनाना और साथ ही कर्मचारियों का समर्थन सुनिश्चित करना.

पूंजीवाद की मुख्य विशेषताओं में से एक लाभ कमाने का इरादा है. ऐसा करने में कोई नुकसान नहीं है. यह सुनिश्चित करते हुए लाभ कमाना कैसा रहेगा कि अधिकारों से वंचित रहने वाले लोग आपकी सफलता की कहानी का एक अभिन्न हिस्सा हैं और वे आपके साथ-साथ आगे बढ़ते हैं? यह समझना महत्वपूर्ण है कि प्रेम और संवेदना हमारे कार्यस्थलों में बहुत बड़ी भूमिका निभाते हैं. यह उचित आत्महित और विकास की कहानी में दूसरों को शामिल करने की इच्छा ही है, जो आर्थिक समृद्धि और समान आय वितरण को रास्ता दिखा सकती है.

प्रेम, करुणा और आशा के साथ मार्गदर्शन करना

कई अर्थशास्त्रियों का मानना है कि वैश्विक स्तर पर विकास धीमा हो गया है. उन्हें डर है कि आर्थिक मंदी के परिणामस्वरूप अंत में पहले की तुलना में अधिक असमानता होगी और इससे मध्यम वर्ग की समृद्धि को भी खतरा होगा. 2007 में, दुनिया ने आर्थिक मंदी देखी. कोविड-19 महामारी के बाद अर्थव्यवस्था को एक और झटका लगा. इसके परिणामस्वरूप, असमानता का स्तर अद्वितीय है और शायद, कुछ मायनों में, 18वीं और 19वीं शताब्दी की शुरुआत में मौजूदा स्थिति के बराबर है.

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मैं मौजूदा स्थिति का मूल्यांकन कैसे करूँ? एक सामाजिक व्यवसायी के रूप में, मेरा मानना है कि जीवन हमारे द्वारा चुने गए विकल्पों पर आधारित है. हम हमेशा इस दुनिया में नहीं रहेंगे. यह समझना ज़रूरी है कि हम यहाँ क्यों हैं और हमारे जीवन का उद्देश्य क्या है. हम अपनी पहली सांस से आखिरी सांस के बीच क्या करते हैं? आज मैं अपने आसपास जो बदलाव देख रहा हूँ, वो एक दिन, एक साल या एक दशक में नहीं हुआ. यह एक मुश्किल प्रक्रिया रही है, इसमें बहुत उतार-चढ़ाव रहे हैं. हालाँकि, मैंने प्यार, संवेदना और उम्मीद को कभी नहीं छोड़ा है.

इस समय, राजस्थान, उत्तर प्रदेश और बिहार की 40,000 से अधिक महिलाएं मेरे साथ जुड़ी हुई हैं और वो कारीगर हैं. वो विशेष रग्स (कारपेट) बुनती हैं. ये कुशल कारीगर, ज़्यादातर महिलाएं, प्रतिष्ठित बुनने वाले और एक समान होने पर गर्व महसूस करते हैं.

मैंने कारीगरों के साथ कभी भी 'किसी अन्य' जैसा व्यवहार नहीं किया है. कोई अलग नहीं है. मैंने हमेशा उन्हें अपना हिस्सा माना है. उन्होंने मुझे बहुत प्यार दिया है और मुझे संवेदना की ताकत समझाई. बुनाई की कला बुनकर के लिए स्वतंत्र हो सकती है. जब मैं इन महिला कलाकारों के साथ बैठा और उनसे कच्चे धागे को बुनना सीखा, तो इससे मुझे भी स्वाधीनता मिली. ऐसा बदलाव खालीपन में नहीं हुआ. इन बुनकरों के निपुण हाथों की गतिविधियों ने मुझे, एक कारीगर के रूप में उनका सम्मान करने और उनके कौशल, दक्षता और अनुभव से बहुत कुछ सीखने के लिए प्रेरित किया. निस्संदेह, मैं आगे बढ़ना चाहता था. लेकिन मैं चाहता था कि वो मेरे साथ-साथ आगे बढ़ें.

उनकी कहानी सिर्फ 'रुकावटों पर विजय पाने' की कहानी नहीं है; यह उनकी आर्थिक मुक्ति और समान होने की कहानी है. अपने अधिकारों से वंचित महिलाओं को सशक्त बनाना कोई छोटी उपलब्धि नहीं है. यह सब एक छोटे कदम से शुरू हुआ, कारीगरों के एक छोटे समूह और कुछ करघों के साथ. 1970 के दशक के अंत में, मेरा विचार असंतुलन और असमानता से लड़ना और कारीगरों को, बिना किसी मध्यस्थ व्यक्तियों के, उनका हक दिलाना था. आज, एक बिजनेस लीडर के रूप में, जयपुर रग्स को वित्तीय स्वतंत्रता और समानता की कहानी के रूप में देखकर मुझे खुशी होती है. सहानुभूतिशील पूंजीवाद 21वीं सदी में लाभकारी लाभ प्राप्त कर सकता है.

 

मैं कारपेट की बुनाई को, बुनकर और ग्राहक के बीच एक भावनात्मक बंधन के रूप में देखता हूँ. मैंने अपने बच्चों को कुछ मूल्य और नैतिक सिद्धांत दिए, क्योंकि मैं समझता हूँ कि सामाजिक पूर्वधारणाएं क्या नुकसान पहुँचा सकती हैं. यहाँ तक कि 21वीं सदी में भी, ऐसे सफल व्यवसाय मॉडल बनाना संभव है जो संवेदना से प्रेरित हों. एक बार जब आप व्यवसाय चलाने का निर्णय लेते हैं और अपने सहकर्मियों के आत्म-सम्मान का ध्यान रखते हुए उनके साथ समान व्यवहार करते हैं, और जब हमदर्दी, संवेदना और प्रेम आपके व्यवसाय मॉडल में प्रमुख होते हैं, तो दुनिया की कोई भी ताकत आपको हरा नहीं सकती है.

सच में, संवेदना के साथ अपने सपने को जीना संभव है!

आर्थिक समानता की राह पर चलना

आज की डिजिटल दुनिया में सहानुभूतिशील पूंजीवाद की और अधिक जांच करने से पहले, विभिन्न चिंताओं और चुनौतियों को परखना उपयुक्त है. अर्थशास्त्री पूंजीवाद को एक आर्थिक प्रणाली के रूप में परिभाषित करते हैं जिसमें प्राइवेट एक्टर अपने हितों को ध्यान में रखते हुए संपत्ति का स्वामित्व, प्रबंधन और नियंत्रण करते हैं. दूसरा पहलू अमीर और गरीब के बीच अंतर को कम करके समान आय वितरण का प्रयास है. क्या सहानुभूतिशील पूंजीवाद से अमीरों और गरीबों के बीच के बड़े अंतर को कम करना संभव है?

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एडम स्मिथ ने एक बार कहा था कि "यह कसाई, शराब बनाने वाले, या बेकर की उदारता से नहीं है कि हम अपने डिनर की उम्मीद करते हैं, बल्कि उनके अपने हित के प्रति सम्मान से है." 18वीं सदी के दार्शनिक और आधुनिक अर्थशास्त्र के जनक, स्मिथ ने उस समय तर्क दिया था कि स्वैच्छिक लेनदेन के दौरान, दोनों पक्ष अपने-अपने हितों की पूर्ति करते हैं और दूसरे पक्ष की जरूरतों की सराहना किए बिना कोई भी वह प्राप्त नहीं कर सकता जो वह चाहता है.

मुझे याद है, मई 2023 में जापान के हिरोशिमा में एक शिखर सम्मेलन के दौरान, परमाणु हथियारों के बिना एक शांतिपूर्ण और समृद्ध दुनिया की वकालत करने वाले बयान के तुरंत बाद दलाई लामा ने G7 नेताओं की बहुत प्रशंसा की थी. यह प्रार्थना करते हुए कि 21वीं सदी अधिक संवेदनापूर्ण, समावेशी, शांतिपूर्ण और सामंजस्यपूर्ण दुनिया बने, दलाई लामा ने एक परस्पर जुड़ी दुनिया की वकालत की जिसमें संवाद और कूटनीति को महत्वपूर्ण भूमिका निभानी चाहिए. हालाँकि दलाई लामा का बयान एक विशिष्ट संदर्भ में दिया गया था, मैंने उनकी जोशपूर्ण अभिव्यक्ति और स्पष्ट राय से प्रेरणा ली.

अपनी दुनिया को संवेदना से समृद्ध बनाने के लिए, हमें बदलाव लाने के लिए खुद को जागरूक बनाना होगा और हर समय अनैतिकता के बारे में शिकायत नहीं करनी होगी.

जयपुर रग्स और संवेदनापूर्ण व्यवसाय

1978 में, मैंने दो करघों और 9 कारीगरों के साथ अपना व्यवसाय शुरू किया, और आज जयपुर रग्स भारत का सबसे बड़ा हस्तनिर्मित रग निर्माता है. हमारे पास 7,000 से अधिक करघे और लगभग 40,000 कारीगर हैं, जिनमें से 85% महिलाएं हैं, जो रग्स (कारपेट) को बुनने का काम करते हैं. संयुक्त राज्य अमेरिका में शाखा कार्यालयों और विश्वव्यापी वितरण नेटवर्क की वैश्विक उपस्थिति के साथ, जयपुर रग्स के स्टोर इटली, दुबई, चीन और रूस जैसे देशों में हैं.

जयपुर रग्स के मामले में, मेरे दर्शन में विश्वास रखना हर चीज़ का केंद्र रहा है. मेरे मूल्यांकन में, कारण और तर्क पर आधारित आत्महित से आर्थिक समृद्धि को संभव बनाया जा सकता है. जब उद्यमिता या व्यावसायिक नेतृत्व संवेदना और सहानुभूति से प्रेरित होता है, तो कई और सफलता की कहानियां बनाई जा सकती हैं.

(लेखक ‘Jaipur Rugs’ के चेयरमैन और मैनेजिंग डायरेक्टर हैं. आलेख में व्यक्त विचार लेखक के हैं. YourStory का उनसे सहमत होना अनिवार्य नहीं है.)

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Edited by रविकांत पारीक