कितना सफल रहा UN जलवायु शिखर सम्मेलन? भारत सहित अन्य देशों को क्या हासिल हुआ?
कोष स्थापित करना उन अल्प विकसित देशों के लिए एक बड़ी जीत है, जो जलवायु परिवर्तन के प्रभावों से निपटने के लिए लंबे समय से नकदी की मांग कर रहे हैं.
मिस्र में संयुक्त राष्ट्र जलवायु शिखर सम्मेलन (COP) रविवार को नुकसान और क्षति को संबोधित करने के लिए एक कोष स्थापित करने के एक ऐतिहासिक निर्णय के साथ संपन्न हुआ. हालांकि, अन्य महत्वपूर्ण मुद्दों जैसे कि सभी जीवाश्म ईंधनों को चरणबद्ध तरीके से कम करने के भारत के आह्वान में बहुत कम प्रगति दिखाई दी.
कोष स्थापित करना उन अल्प विकसित देशों के लिए एक बड़ी जीत है, जो जलवायु परिवर्तन के प्रभावों से निपटने के लिए लंबे समय से नकदी की मांग कर रहे हैं.
उल्लेखनीय है कि जलवायु परिवर्तन से संबंधित आपदाओं का सामना कर रहे गरीब देश अमीर देशों से जलवायु अनुकूलन के लिए धन देने की मांग कर रहे हैं. गरीब देशों का मानना है कि अमीर देश जो कार्बन उत्सर्जन कर रहे हैं, उसके चलते मौसम संबंधी हालात बदतर हुए हैं, इसलिए उन्हें मुआवजा दिया जाना चाहिए.
शिखर सम्मेलन शुक्रवार को समाप्त होने वाला था, लेकिन वार्ताकारों ने शमन, हानि और क्षति निधि और अनुकूलन जैसे मुद्दों पर एक समझौते पर जोर दिया.
एक समय में, वार्ता टूटने के करीब पहुंच गई थी, लेकिन नुकसान और क्षति को दूर करने के लिए एक नई वित्त सुविधा पर प्रगति के बाद अंतिम घंटों में गति पकड़ी जिसकी भारत सहित गरीब और विकासशील देशों की लंबे समय से मांग कर रहे थे और जो इस साल के जलवायु शिखर सम्मेलन में एक महत्वपूर्ण मुद्दा था. वार्ता की सफलता इसी प्रगति पर निर्भर थी.
भारत सहित अन्य देशों ने क्या कहा?
भारत ने जलवायु परिवर्तन के कारण प्रतिकूल प्रभावों से निपटने के लिए कोष स्थापित करने संबंधी समझौता करने के लिए रविवार को मिस्र में संपन्न हुए संयुक्त राष्ट्र जलवायु सम्मेलन को ऐतिहासिक बताया और कहा कि दुनिया ने इसके लिए लंबे समय तक इंतजार किया है.
सीओपी27 के समापन सत्र में केंद्रीय पर्यावरण मंत्री भूपेंद्र यादव ने यह भी कहा कि दुनिया को किसानों पर न्यूनीकरण (ग्रीनहाउस गैस के उत्सर्जन में कमी) की जिम्मेदारियों का बोझ नहीं डालना चाहिए.
वहीं, दुनिया के गरीब देशों के लिए अकसर आवाज उठाने वाली पाकिस्तान की जलवायु मंत्री शेरी रहमान ने कहा, ‘‘इस तरह हमारी 30 साल की यात्रा आखिरकार आज सफल हुई है.’’ उनके देश का एक तिहाई हिस्सा इस गर्मी में विनाशकारी बाढ़ से प्रभावित हुआ था.
मालदीव के पर्यावरण मंत्री अमिनाथ शौना ने शनिवार को ‘द एसोसिएटेड प्रेस’ (एपी) से कहा, ‘‘इसका मतलब है कि हमारे जैसे देशों के लिए हमारे पास ऐसे समाधान होंगे जिनकी हम वकालत करते रहे हैं.’’
पर्यावरणीय थिंक टैंक ‘वर्ल्ड रिसोर्सेज इंस्टिट्यूट’ के अध्यक्ष एनी दासगुप्ता ने कहा, ‘‘यह क्षतिपूर्ति निधि उन गरीब परिवारों के लिए एक जीवनरेखा होगी, जिनके मकान नष्ट हो गए हैं, जिन किसानों के खेत बर्बाद हो गए हैं और जिन द्वीपों के लोगों को अपने पुश्तैनी मकान छोड़कर जाने को मजबूर होना पड़ा है.’’ दासगुप्ता ने कहा, ‘‘सीओपी27 का यह सकारात्मक परिणाम कमजोर देशों के बीच विश्वास के पुनर्निर्माण की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है.’’
अमेरिका सहित विकसित देशों ने किया विरोध
विकसित देशों, विशेष रूप से अमेरिका ने, इस नए कोष का विरोध इस डर से किया था कि यह उन्हें जलवायु परिवर्तन के कारण होने वाले बड़े नुकसान के लिए कानूनी रूप से उत्तरदायी ठहराएगा.
हानि और क्षति वित्त सुविधा का प्रस्ताव G77 और चीन (भारत इस समूह का हिस्सा है), सबसे कम विकसित देशों और छोटे द्वीपीय राज्यों द्वारा रखा गया था. कमजोर देशों ने कहा था कि वे इसके बिना COP27 को नहीं छोड़ेंगे.
इसके बाद सम्मेलन ने एक ट्रांजिशनल कमिटी स्थापित करने पर सहमति व्यक्त की जो कि यह तय करेगी कि धन कैसे प्रदान किया जाएगा और फंड में कौन योगदान देगा. इसकी सिफारिशों पर अगले साल सीओपी28 में चर्चा की जाएगी. सीओपी27 में उम्मीद थी कि सभी जीवाश्म ईंधन को चरणबद्ध तरीके से बंद किया जाए.
COP26 के एजेंडे पर नहीं बनी सहमति
सीओपी27 की उम्मीद तेल और गैस सहित सभी जीवाश्म ईंधनों को चरणबद्ध तरीके से बंद करने की थी. इसे भारत ने प्रस्तावित किया था और यूरोपीय संघ और अमेरिका सहित कई विकसित और विकासशील देशों द्वारा समर्थन दिया था, लेकिन निश्चित तौर पर अंतिम
समझौता उस पर नहीं बना, जिस पर COP26 में सहमति बनी थी. वार्ताकारों ने कहा कि मामले पर शनिवार देर रात तक गहन चर्चा हुई, लेकिन समझौते में इसे जगह नहीं मिली.
कई देश अंतिम पैकेज से असंतुष्ट लग रहे थे लेकिन उन्होंने हस्तक्षेप नहीं करने का फैसला किया क्योंकि इससे उस नुकसान और क्षति सौदे को लेकर संकट पैदा हो सकता था जो गरीब और कमजोर राष्ट्र लंबे समय से करना चाहते थे. कई पार्टियों ने 2025 से पहले उत्सर्जन के चरम पर जाने और हरित ऊर्जा के ट्रांजिशन पर भाषा के कमजोर होने के आह्वान को छोड़ दिया.
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Edited by Vishal Jaiswal