लॉकडाउन में फंसे बेटे को घर लाने के लिए दिव्यांग महिला ने चलाया 18 घंटे स्कूटर
मुम्बई, कोविड-19 लॉकडाउन में फंसे अपने 14 साल के बेटे को घर वापस लाने के लिए पुणे की एक दिव्यांग महिला ने अमरावती से 1200 किलोमीटर की यात्रा स्कूटर से तय की।
एक निजी कंपनी में एकाउटेंट सोनू खंडारे ने कभी नहीं सोचा था कि लॉकडाउन के चलते उन्हें जीवन में कभी ऐसी यात्रा करनी पड़ेगी।
पच्चीस अप्रैल को 37 वर्षीय यह दिव्यांग महिला ने महाराष्ट्र के अमरावती के एक गांव से अपने बेटे को वापस घर लाने के लिए 18 घंटे तक स्कूटर चलाया।
खंडारे ने पीटीआई-भाषा से कहा,
‘‘मेरा बेटा प्रतीक 17 मार्च को अंजगनागाव सुरजी तहसील में मेरे सास-ससुर के घर गया था और वह लॉकडाउन की घोषणा के बाद वहीं फंस गया।’’
प्रारंभ में खंडारे दंपत्ति को बच्चे को लेकर कोई चिंता नहीं थी लेकिन जब चार मई तक लॉकडाउन बढ़ाया गया तब दोनों मियां-बीवी परेशान हो गये।
खंडारे ने जिला प्रशासन से संपर्क किया और यात्रा पास के लिए ऑनलाइन आवेदन किया। उन्होंने किराये पर एक कार लेने की सोची लेकिन उसका 8000 रूपये का भारी भरकम भाड़ा था।
जब कोई विकल्प व्याहारिक नहीं लगा तब खंडारे विशेष अनुमति के लिए व्यक्तिगत रूप से पुलिस आयुक्त कार्यालय पहुंची।
उन्होंने कहा,
‘‘जब मुझे 24 अप्रैल को 48 घंटे के लिए यात्रा पास मिला तब मैं सीधे घर गयी, कुछ खाद्य चीजें और पानी लिया एवं बिना कुछ और विचारे मैं अपने दो पहिये से चल पड़ी।’’
उन्होंने कहा,
‘‘मैं रात में भी अपना स्कूटर चलाती रही जबकि हेडलाइट से आ रही धुंधली रोशनी से ज्यादा कुछ नहीं था। मुझे रास्त में हर चेकपोस्ट पर रोका गया और सवाल जवाब किया गया।’’
खंडारे ने कहा,
‘‘जब मुझे पेट्रोल पंप के समीप सीसीटीवी नजर आया तब मैंने वहां खुले में सुस्ताने का निर्णय लिया क्योंकि मेरे मन में चल रहा था कि यदि कुछ मेरे साथ (गलत) होता है तो वह रिकार्ड हो जाएगा।’’
अगले दिन वह तड़के फिर चल पड़ी एवं दोपहर सास-ससुर के घर पहुंची।
तीन बच्चों की मां ने कहा,
‘‘मैंने वहां बमुश्किल कुछ घंटे बिताये क्योंकि मेरे दिमाग में यात्रा पास खत्म होने से पहले सुरक्षित वापसी की बात चल रही थी।’’
वह 26 अप्रैल को पास खत्म होने से महज एक घंटे पहले करीब ग्यारह बजे पुणे के भोसारी इलाके में अपने घर लौट आयीं। उन्हें इस यात्रा में भूख-प्यास, असहज रास्ते से दो-चार होना पड़ा।
Edited by रविकांत पारीक