OTP की किचकिच और प्राइवेसी के सवालों के बीच CoWin की सफलता की कहानी
कोरोना के बाद कैसे होगा कोविन का इस्तेमाल?
21 अक्टूबर 2021, कोविड-19 की एक दर्दनाक लहर अपने पीछे जो त्रासदी छोड़कर गई थी, लोग अबतक उससे उबर नहीं पाए थे. जाने कितने घरों में अब भी मातम पसरा था. जाने कितने हेल्थ वर्कर और जलती लाशों को देखकर आए पत्रकार अब भी ठीक से सो नहीं पा रहे थे. मगर इस एक दिन देश के कई अस्पतालों में तमाम हेल्थवर्कर्स केक काट रहे थे. आर्कियोलॉजिकल सर्वे ऑफ़ इंडिया ने देश की 100 ऐतिहासिक इमारतों को तिरंगे की रौशनी से नहला दिया था. कई दिनों बाद लोग मुस्कुराने का साहस कर पाए थे. क्योंकि 21 अक्टूबर 2021 वो तारीख थी जिस दिन देश में 100 करोड़ लोगों को कोविड का टीका लग गया था.
इंडिया में हेल्थ रेकॉर्ड्स को डिजिटल अवस्था में स्टोर करने का कोई इतिहास नहीं रहा है. मगर इंडिया जैसे देश में टीकाकरण करते समय बस यही एक चुनौती नहीं थी. वैक्सीन के प्रति आम व्यक्ति की झिझक, गैर-साइंटिफिक नज़रिया और कम समय में, जल्दी-जल्दी हुए ट्रायल्स के बाद आई वैक्सीन को पढ़े-लिखे इलीट के बीच आनन-फानन में उठाया गया एक कदम माना जा रहा था, जिसके साइड इफेक्ट्स की कल्पना मात्र से लोग सिहर जा रहे थे.
जिस दिन देश में लोगों को 100 करोड़ टीके लगे, उसके ठीक एक साल पहले देश के चुने हुए 25 सॉफ्टवेयर डेवलपर्स एक असाइनमेंट के लिए पहली बार मिले. उनके पास एक ऐप बनाने के लिए तीन महीने का वक़्त था. एक ऐसा प्लेटफार्म जो देश के आखिरी नागरिक तक पहुंच सके, भले ही उसके पास स्मार्टफ़ोन हो या न हो. कोविन (कोविड वैक्सीन इंटेलीजेंस नेटवर्क) की टेक्निकल टीम को लीड करने वाले देवव्रत नायक 'आउटलुक बिज़नस' से हुई एक बातचीत में बताते हैं, "जैसे-जैसे लॉन्च की तारीख नज़दीक आ रही थी, हमारी नींद उड़ती जा रही थी. 13-16 जनवरी (2021) के बीच शायद ही कोई सोया हो. हम सब कभी एक दूसरे से फिजिकली नहीं मिले थे, कोरोना के चलते पूरा काम वीडियो कॉल पर हो रहा था. खाना भी कैमरे के सामने ही खाते थे. बस एक ही चिंता थी, ये ऐप काम कर जाए."
इस ऐप को चलाने के साथ-साथ भविष्य में इससे जुड़े हर सवाल की जवाबदेही थी डॉक्टर राम सेवक शर्मा की. डॉक्टर आरएस शर्मा यूनीक आइडेंटिफिकेशन अथॉरिटी ऑफ़ इंडिया यानी आधार कार्ड की सेवा देने वाली UIDAI के पूर्व सीईओ, टेलिकॉम रेगुलेशन अथॉरिटी ऑफ़ इंडिया (TRAI) के पूर्व चेयरमैन और फ़िलहाल नेशनल हेल्थ अथॉरिटी (NHA) के सीईओ हैं.
16 जनवरी, 2021 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कोविन को वर्चुअली लॉन्च किया. लक्ष्य था सबसे पहले देश के 3 करोड़ फ्रंटलाइन वर्कर्स को टीका लगाना. जिसमें लगभग 1 करोड़ हेल्थकेयर वर्कर्स थे और कोरोनावायरस से उनका सीधा वास्ता था. नेशनल ई-गवर्नेंस के सीईओ अभिषेक सिंह ने लॉन्च के पहले एक आधिकारिक बातचीत में कहा था, "देश में इतने बड़े स्तर पर हमने इस फील्ड में कभी कुछ नहीं किया. पोलियो और मीज़ल्स का वैक्सीनेशन भी एक बड़ा प्रोग्राम था. लेकिन इतना बड़ा नहीं. हमारे पास समय कम है और 130 करोड़ से ज्यादा लोगों को वैक्सीन लगाई जानी है. वैक्सीन की सप्लाई, मूवमेंट और कोल्ड चेन मेंटेनेंस, तीनों बड़ी चुनौतियां हैं. ये इंडिया के लिए बहुत बड़ा काम है, देश में चुनाव करवाने से भी बड़ा."
कोविन की कहानी: चुनौतियां
नेशनल हेल्थ अथॉरिटी (NHA) के सीईओ आरएस शर्मा योरस्टोरी से हुई बातचीत में बताते हैं:
"हमने कोविन को कई बिंदुओं को ध्यान में रखते हुए बनाया था:
पहला लक्ष्य था सबको साथ लेकर चलना. इसके लिए लॉगइन प्रोसेस को आसान रखा गया. सिर्फ मोबाइल नंबर और ओटीपी की मदद से आप इसे इस्तेमाल कर सकते हैं.
दूसरा लक्ष्य था कि एक ही नंबर से एकाधिक लोग जुड़ सकें. ऐसा इसलिए कि कई बार परिवार में सिर्फ एक ही व्यक्ति के पास स्मार्टफ़ोन होता है.
तीसरा ये था कि ये एपीआई बेस्ड हो. हमारा काम एप्लीकेशन बनाना नहीं, प्लेटफ़ॉर्म बनाना था. इन एपीआई का इस्तेमाल करके कोई भी हमसे जुड़ सकता था. यानी दूसरे एप्स के ज़रिये लोग कोविन से जुड़ सकते हैं, उन्हें कोई नया ऐप डाउनलोड करने की ज़रूरत नहीं है.
एक लक्ष्य ये भी था कि सभी भाषाओं में इसे उपलब्ध कराया जा सके."
लेकिन ये सभी सुविधाएं शुरुआत से ही उपलब्ध नहीं थीं. कोविन इस बात का उदाहरण भी है कि फीडबैक और शिकायतों पर काम कर किसी भी प्लेटफ़ॉर्म को कैसे बेहतर किया जा सकता है. कोविन में आए बदलाव असल में इंडिया जैसे देश में टीकाकरण करने के लिए बुनियादी थे.
'इंडिया जैसे देश' का अर्थ यहां पसरे 'डिजिटल डिवाइड' से लगाया जाए. कोविन के आने के कुछ महीनों के भीतर ही पब्लिक हेल्थ एक्सपर्ट्स ने ये चिंता जताई कि एक ऑनलाइन प्रोसेस देश के कुछ ही लोगों को कवर कर सकेगा और शहरी लोगों तक ही सीमित रह जाएगा. सबसे बड़ा खतरा ये था कि ऑनलाइन बुकिंग मॉडल के चलते, वो स्लॉट जो ग्रामीण लोगों को मिलने चाहिए थे, शहरी लोगों के हाथ चले जाएंगे और टीकाकरण पर आर्थिक रूप से सक्षम लोगों का पूरा कंट्रोल हो जाएगा.
1 मई 2021 को 18 साल से ऊपर के नागरिकों के लिए टीकाकरण शुरू हुआ. इस एज ग्रुप के लिए ऑनलाइन रजिस्ट्रेशन अनिवार्य था. सोशल मीडिया पर शिकायतों की बाढ़ आ गई. कई लोगों के लिए कोविन का पन्ना क्रैश हो रहा था. लोग फोन नंबर डालकर इंतज़ार कर रहे थे और उन्हें ओटीपी उपलब्ध नहीं हो रहा था. अगर कोई लॉगइन कर स्लॉट बुकिंग तक पहुंच रहा था तो एक-एक पल में सैकड़ों स्लॉट भर जा रहे थे. वैक्सीन शॉर्टेज के चलते सेंटर पर पहुंच चुके लोगों को भी कई बार वापास लौटाया गया.
शहरों में नौकरी कर रहे तमाम इंजिनियरों के लिए कोविन से जुड़े कोड्स बनाना मुश्किल नहीं था. कई प्रोफेशनल्स ने तमाम प्लेटफ़ॉर्म बना लिए जो कोविन पर स्लॉट आते ही उन्हें नोटिफिकेशन भेज देते थे. ये कहना न होगा कि ग्रामीण और आर्थिक रूप से कमज़ोर तबके के पास ये सुविधा नहीं थी.
कोरोनावायरस की दूसरी लहर के बाद कोविन के अलावा सरकार का वैक्सीन डिस्ट्रीब्यूशन सिस्टम ही कटघरे में था. 31 मई को तमाम मसलों की सुनवाई करते हुए जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ के नेतृत्व में सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि 18-44 साल के नागरिकों के लिए कोविन का रजिस्ट्रेशन मॉडल इंडिया में व्याप्त 'डिजिटल डिवाइड' को बढ़ावा देता है और इस तरह सरकार टीकाकरण का अपना लक्ष्य कभी प्राप्त नहीं कर पाएगी.
केंद्र सरकार ने इसके जवाब में एक एफिडेविट दाखिल किया. जिसमें कहा गया:
"कोविन का सिस्टम पूरी तरह समावेशी है. डिजिटल डिवाइड के चलते किसी भी नागरिक का टीकाकरण छूट जाने का सवाल ही नहीं उठता. अगर किसी के पास ऑनलाइन रजिस्ट्रेशन की सुविधा नहीं है तो वे टीकाकरण केंद्र पर जाकर हाथोहाथ रजिस्ट्रेशन करवा सकते हैं. वहां उपस्थित हेल्थ वर्कर उन्हें कोविन पर रजिस्टर कर देंगे."
सरकार ने अपने एफिडेविट में ये भी साफ़ किया कि 23 मई 2021 के बाद से ऑनलाइन पंजीकरण अनिवार्य नहीं था और वॉक-इन बेसिस पर टीका लगवा सकते थे.
इस एफिडेविट के बाद ये भी तथ्य सामने आया कि कोविन के लॉन्च से लेकर अगले 6 महीने तक हुए टीकाकरण में लगभग 70% वॉक-इन ही थे.
प्राइवेसी के सवाल
डिजिटल डिवाइड की समस्या देश को पूर्णत: डिजिटल करने से संभवतः सुलझ सकती है. मगर पूर्णत: डिजिटल होना अपने साथ ज़िम्मेदारी और जवाबदेही लेकर आता है. देश में आधार कार्ड के माध्यम से हो रही डाटा शेयरिंग कई एक्टिविस्ट्स के लिए चिंता का विषय थी ही. आरोग्य सेतु के आने पर ये सवाल बढ़े और कोविन के आने पर दोहराए गए. डिजिटली साक्षर व्यक्ति का एक ही सवाल था: "मैं कैसे मानूं कि मेरा डेटा सुरक्षित है?"
कोविन ऐप के लॉन्च के ठीक बाद एक्सपर्ट्स ने पाया कि कोविन पर कोई भी प्राइवेसी पॉलिसी नहीं दिखती है. जबकि कोई भी एप्लीकेशन या प्लेटफ़ॉर्म जो किसी भी व्यक्ति की पर्सनल इनफॉर्मेशन मांगता है, साथ में ये ज़िम्मेदारी भी उठाता है कि वो उसका डेटा किसी थर्ड पार्टी से साझा नहीं करेगा. जनवरी 2021 में ही लॉ स्टूडेंट अनिकेत गौरव ने एक RTI फाइल की. जिसमें मिनिस्ट्री ऑफ़ इलेक्ट्रॉनिक्स एंड इनफॉर्मेशन टेक्नोलॉजी से कोविन के डेवलपर्स के बारे में पूछा गया. जवाब में पाया गया कि इसकी जानकारी मंत्रालय के पास उपलब्ध नहीं है.
मार्च 2021 में इंटरनेट फ्रीडम फाउंडेशन नाम की संस्था ने डाटा प्रोटेक्शन को लेकर एक RTI दाखिल की. स्वास्थ्य और परिवार मंत्रालय ने जवाब दिया कि वे कोविन की प्राइवेसी पॉलिसी साझा नहीं कर सकते क्योंकि आम जनता के लिए ये महज़ रजिस्ट्रेशन की सेवा है. लेकिन मामला कोर्ट तक गया और 2 जून, 2021 को दिल्ली हाई कोर्ट ने केंद्र सरकार को निर्देश दिया कि कोविन की प्राइवेसी पॉलिसी अपडेट की जाए.
आने वाले समय में कोविन को ओपन सोर्स प्लेटफ़ॉर्म बनाने के साथ-साथ प्राइवेसी पॉलिसी भी अपडेट की गई.
आरएस शर्मा अखबार 'इंडियन एक्सप्रेस' के लिए लिखते हैं: " इस प्लेटफ़ॉर्म के शानदार तरीके से काम करने के बावजूद इसको उस तरह का क्रेडिट नहीं मिलता जितना मिलना चाहिए. इस प्लेटफ़ॉर्म से बेहद कम समय में करोड़ों यूजर जुड़े. इसने 100 करोड़ रजिस्ट्रेशन्स का आंकड़ा छुआ, जो दुनिया में बहुत कम प्लेटफ़ॉर्म कर पाते हैं, वो भी इतने कम समय में.
आगे की राह
आरएस शर्मा योरस्टोरी से हुई बातचीत में बताते हैं: "आने वाले समय कोविन का इस्तेमाल बदल जाएगा. जैसे बच्चों का वैक्सिनेशन हमेशा होना ही होता है. कोविन की सुविधा से वो वैक्सीन बुक हो पाएगी. दूसरा ये भी होगा कि कोविन उन्हें रिमाइंडर भेजेगा कि पोलियो या किसी और वैक्सीन का वक़्त आ गया है. इससे बच्चे का वैक्सिनेशन रिकॉर्ड सुरक्षित बना रहेगा.
इसके साथ ही ब्लड डोनेशन के लिए कोविन पर रजिस्टर कर सकेंगे. डोनेशन के बाद कोविन से सर्टिफिकेट डाउनलोड कर सकेंगे. इसके साथ ही खून की उपलब्धता चेक कर सकेंगे. कि कौन का ब्लड ग्रुप कहां उपलब्ध है. इसी तरह ऑर्गन डोनेशन की भी जानकारी मिल सकेगी."
कोविन ऐप पर लॉग इन करने के बाद अब यूजर को ABHA (आयुष्मान भारत हेल्थ अकाउंट) नंबर क्रिएट करने का विकल्प मिलता है. शर्मा कहते हैं, "आयुष्मान भारत डिजिटल मिशन का बेसिक उद्देश्य ये है कि हेल्थ सेक्टर को डिजिटल कैसे बनाया जाए. हम भविष्य में ऐसी सुविधा क्रिएट करना चाहते हैं जिससे हर व्यक्ति के हेल्थ रिकॉर्ड एक ही खाते में उपलब्ध रहें. चाहे वो कहीं भी कंसल्ट कर रहे हों, उनके रिकॉर्ड एक ही जगह जमा हों. उनके हेल्थ रेकॉर्ड्स को हम आधार से लिंक कर देंगे, जिससे कभी भविष्य में उनसे कोई रिकॉर्ड खोए नहीं. यहां न सिर्फ लोग अपने हेल्थ रिकॉर्ड डाउनलोड कर पाएंगे बल्कि डॉक्टर से डिजिटली शेयर करने की सुविधा भी उपलब्ध होगी. ठीक इसी तरह दवा का प्रिस्क्रिप्शन भी फार्मेसी से शेयर कर सकेंगे और दवाएं मंगवा सकेंगे. हर एक रिकॉर्ड डिजिटली वेरीफाई होगा. ये सारा काम आयुष्मान भारत का एक हेल्थ रिकॉर्ड कर पाएगा. जैसे UPI आपके लिए एक एड्रेस बनाता है, ये आपका हेल्थ एड्रेस है.”
कभी बेगुसराय, धनबाद और पूर्णिया जैसे ज़िलों के डीएम रहे आरएस शर्मा को यकीन है कि इंडिया जैसे देश में भी संपूर्ण डिजीटाइज़ेशन संभव है. 80 के दशक से कंप्यूटर के इस्तेमाल की वकालत करने वाले डॉक्टर शर्मा ने ये काम आधार से शुरू किया था जिसके डिटेल्स उनकी किताब ‘मेकिंग ऑफ़ आधार: वर्ल्ड्स लार्जेस्ट आइडेंटिटी प्लेटफ़ॉर्म’ में मिलते हैं.
कोविन की तरह ही डॉक्टर शर्मा के साथ वर्तमान और भविष्य की सरकारों के लिए आगे की राह चुनौतियों भरी होने वाली है. लेकिन उस दिन की कल्पना करना भी रोमांचक है जब देश के आखिरी नागरिक तक के हेल्थ रिकॉर्ड उनके फोन में डिजिटली उपलब्ध होंगे.
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Edited by Prateeksha Pandey