हाइपरलोकल और फूडटेक के क्षेत्र की कंपनी 'Delyver' की सफलता की कहानी
अगर आप हाल ही में बिगबास्केट द्वारा अधिग्रहित की गई बैंगलोर की मात्र पांच वर्ष पुरानी हाइपर लोकल डिलीवरी कंपनी डेलीवर (Delyver) का प्रधान कार्यालय देखें तो वह आपको बेहद ही सादा और दूसरों से बिल्कुल अलग दिखेगा। सजावट के नाम पर आपको दो मंजिलों में फैले इनके कार्यस्थल पर सिर्फ ए-4 साईज के कुछ पोस्टर ही दिखाई देंगे जो भारत में डेलीवर के द्वारा किये गए कई नए कामों और इनके एक बिल्कुल ही अलग व्यापार माॅडल से आपको रूबरू करवा रहे होंगे। ‘‘भारत में आॅन-डिमांड होम डिलीवरी के क्षेत्र में पहला हाइपर लोकल ई-काॅमर्स मंच’’, ‘‘होम शेफ कार्यक्रम के तहत घर के पके खाने को उपलब्ध करवाने वाला पहला मंच’’, ‘‘भारत में ‘बिना किसी न्यूनतम आॅर्डर मूल्य’ के तहत होम डिलीवरी करने वाला पहला मंच’’, और इसके अलावा और भी बहुत कुछ दर्शाते पोस्टर।
इसके अलावा ये पोस्टर इसके बेहद नम्र संस्थापकों अफसल सालू, प्रफुल ठाकरे और रीबू वर्गीस के बारे में भी एक रोचक कहानी बताते हैं कि ये तीनों व्यक्तिगत रूप अपने बारे में अधिक बात करने के बिल्कुल अनिच्छुक रहे हैं। कुल मिलाकर यह कंपनी हाइपर लोकल काॅमर्स, फूड टेक, आॅन डिमांड भोजन वितरण ओर इंवेंट्री मुक्त बाजार के माॅडल को अपनाने वाली प्रारंभिक कंपनियों में से एक है। इस कंपनी ने वर्तमान समय के सबसे लोकप्रिय इन सभी खंडों में तभी से कार्य का संचालन करना प्रारंभ कर दिया था जब इस क्षेत्रों का प्रथक नामकरण तक नहीं हुआ था।
जुगाड़
‘‘देखा जाए तो वास्तव में स्थानीय निवासियों के लिये स्थानीय रेस्टोरेंटों का पका खाना और स्थानीय दुकानों से उत्पाद उपलब्ध करवाने में संदर्भ में हाइपर लोकल शब्द का उपयोग शायद पहली बार हमनें ही शुरू किया है,’’ मजाक करते हुए प्रफुल कहते हैं। वे आगे कहते हैं, ‘‘हम अपने संभावित निवेशकों को डेलीवर के द्वारा किये जा रहे कामों के बारे में जानकारी देने के लिये शब्द तलाशने के दौर में संघर्ष कर रहे थे कि तभी हमें यह शब्द एक अमरीकी विश्वविद्यालय के एक अध्ययन में मिला और हमनें इसका चुनाव अपने प्रयोग के लिये कर लिया। हमें काफी बाद में इस बात का अहसास हुआ कि इस प्रकार के काम करने वालों के लिये तो यह शब्द मूलमंत्र ही बन गया है।’’
डेलीवर की टीम आने वाले समय में भी काफी कुछ ऐसा नया करने में सफल रही जो बाद में फूडटेक स्टार्टअप्स के पारिस्थितिकी तंत्र का एक महत्वपूर्ण हिस्सा बनने में सफल रहीं।
अफसल गर्व और सहजता के एक मिश्रित भाव के साथ कहते हैं, ‘‘क्योंकि हमारे सामने कोई मिसाल या नजीर नहीं थी इसलिये हमें समय के साथ आगे बढ़ते हुए चीजों को व्यवस्थित करना पड़ा। उदाहरण के लिये वर्ष 2011 तक घर के पके हुए खाने को पैक करने के साथ उसे देर तक गर्म रखने के लिये आवश्यक पैकिंग के बैग इत्यादि से संबंधित कोई विकल्प ही बाजार में उपलब्ध नहीं था। नतीजनत हम तीनों ने मिलकर पुराने सामानों से ही फूड कंटेनर और डिलीवरी बैग का डिजाइन तैयार करने के बाद उन्हें तैयार करने के लिये एक निर्माता को राजी किया। आज की तारीख में वही निर्माता उसी डिजाइन के कंटेनर हमारे कई प्रतिद्वंदियों को भी उपलब्ध करवा रहा है।
टीम
डेलीवर का कर्मचारियों के चयन में लगाया गया ध्यान आने वाले समय में इनके लिये काफी मददगार साबित हुआ। प्रफुल कहते हैं, ‘‘बहुत हद तक हमारी मूल टीम अभी भी एक साथ काम कर रही है।’’
वे कहते हैं, ‘‘हमारे कई प्रारंभिक कर्मचारी कंपनी के साथ ही विकास करने में कामयाब रहे हैं। उदाहरण के लिये किसी समय का हमारा पहला काॅल सेंटर कर्मचारी अब शहरी क्षेत्रों में संचालन का काम संभाल रहा है।’’
मात्र तीन संस्थापकों द्वारा खड़ी की गई कंपनी वर्तमान में 300 से भी अधिक लोगों के एक समूह का रूप ले चुकी है जिसमें डिलीवरी ब्याॅयज भी शामिल हैं। हाल ही में डेलीवर ने डिलीवरी ब्वायज के लिये उद्यमी माॅडल को अपनाया है जो उन्हें उनका स्वयं का बाॅस बनने में सक्षम करता है और अब वे अपने लिये वित्तीय लक्ष्य चिन्हित कर सकते हैं।
निवेश
डेलीवर का प्रारंभ इसके संस्थापकों की निजी बचत के करीब 30 लाख रुपयों के दम पर किया गया था। उद्गम के 2 वर्ष बाद 2012 में यह टीम दो साथी उद्यमियों मीणा और कृष्णा गणेश से करीब 1.4 करोड़ रुपये का निवेश पाने में सफल रही। अफसल बताते हैं, ‘‘उस समय हम इतने अनुभवहीन थे कि हमें लगा कि यह पैसा हमें बैंगलोर में विस्तार करने के लिये बहुत होगा। वास्तव में निवेश के उस दौर के बल पर हम सिर्फ अपने पड़ोस के 4 इलाकों को ही कवर करने में सफल हुए।’’ इसके बाद वर्ष 2014 में कंपनी अग्नीस कैपिटल सहित कुछ अन्य निजी निवेशकों से 1 मिलियन डाॅलर का निवेश पाने में सफल रही। इस निवेश का प्रयोग कर कंपनी बैंगलोर में अपना विस्तार करने के अलावा एक अच्छी वेबसाइट और एप्लीकेशन जैसी आवश्यक तकनीक से लैस होने में कामयाब रही।
भविष्य की योजनाएं
इसी वर्ष जून के महीने में आॅनलाइन ग्रोसरी स्टोर बिगबास्केट ने डेलीवर को कैश और स्टाॅक डील के अंतर्गत खरीदा है। कहा तो यह जा रहा है कि यह अधिग्रहण बिगबास्केट की अपनी वितरण की क्षमताओं में विकास की रणनीति का एक हिस्सा है। खबरों पर विश्वास करें तो इस सौदे के माध्यम से बिगबास्केट हाइपर लोकल क्षेत्र में वितरण करने के इनके अनुभव और प्रशिक्षित बेड़े का प्रयोग अपने ‘एक घंटे में वितरण’ के वायदे को पूरा करने में करना चाहती है। अफसल कहते हैं, ‘‘यह अधिग्रहण बिगबास्केट को ई-काॅमर्स के अलावा हाइपर लोकल स्तर पर भी अपनी पहुंच को विस्तारित देने की क्षमता प्रदान करेगा।’’ फिलहाल बिगबास्केट और डेलीवर देशभर के 8 शहरों में अपने परिचालन के विस्तार की योजना को अंतिम रूप देने में लगे हैं।
सफलता की प्रमुख कुंजियां
तो, इस दूरदृृष्टि का क्या फायदा है और संस्थापक इससे अलग और क्या कर सकते थे? अफसल कहते हैं।
‘‘हमें किसी भी प्रकार का कोई पछतावा नहीं है क्योंकि डेलीवर को प्रारंभ करके मिलने वाला अनुभव हम सबके लिये एक सीखने और सिखाने वाला अनुभव रहा है। लेकिन अगर हमारे लिये संभव होता तो हम इस क्षेत्र में अपने प्रवेश को समय को अपने हिसाब से बदलना चाहते। हम समय से काफी आगे चले और पहले करीब चार वर्षो में व्यापार का उतना विस्तार नहीं कर सके। हमें यकीन है कि इस क्षेत्र में सफलता के लिये तेज विकास और एक अच्छी टीम मुख्य कुंजियां हैं और इनके लिये बड़े निवेश की आवश्यकता होती है।’’
प्रफुल आगे कहते हैं, ‘‘हम इतने से ही खुश हैं कि इन बीते पांच वर्षों में हम अपने हितधारकों, कर्मचारियों, निवेशकों और उपभोक्ताओं को प्रसन्न करने में कामयाब रहे हैं।’’
भारत में हाइपर लोकल काॅमर्स का भविष्य
‘‘हाल के दिनों में इस क्षेत्र ने छोटे और बड़े हर प्रकार के कई नए खिलाडि़यों को प्रवेश करते हुए पाया है और इसमें अभी विस्तार की काफी संभावनाएं हैं। हमें उम्मीद है कि आने वाले दिनों में जो टीम अपने काम को बेहतरीन तरीके से करने में सफल होगी वही यहां टिकेगी भले ही बाजार में निवेश और प्रचार का दौर कितना ही चले।’’ हालांकि प्रफुल इसके आगे की बात अनकही ही छोड़ देते हैं लेकिन उनकी आंखों की चमक और इस टीम का बीते पांच वर्षों से निरंतर दिखाया जा रहा संघर्ष का जज्बा यह साफ करता है कि इस तिकड़ी द्वारा दिखाया गया रास्ता कभी असफल नहीं होगा।