आईआईटी के छात्रों ने किया कमाल, बनाई ड्रॉइवर लेस साइकिल जिसका दिव्यांग भी कर सकते हैं इस्तेमाल
कल्पना कीजिए कि आप बस स्टॉप में खड़ें हैं। बस का कुछ देर इंतजार के बाद आप अपनी जेब से मोबाइल फोन निकाल एक ऐप में लॉग इन करते हैं और कुछ ही पलों में एक साइकिल बिना ड्राइवर के आपके सामने आकर रूक जाती है, जिसमें सवार होकर आप अपने रास्ते निकल जाते हैं। जी हां, ये लोगों के लिए कल्पना हो सकती है लेकिन आईआईटी खड़गपुर के कुछ छात्रों ने इसे हकीकत में कर दिखाया है। यहां के कुछ छात्रों ने एक ऐसी साइकिल डिजाइन की है जो ड्रॉइवर लेस है और जिसके जरिये कहीं भी आया जाया जा सकता है। उस साइकिल को सिर्फ एक ऐप के जरिये नियंत्रण किया जा सकता है। ये कमाल किया है आईआईटी खड़गपुर के छात्र आयुष पांडे और उनकी टीम ने।
मध्य-प्रदेश के जबलपुर के रहने वाले आयुष पांडे आईआईटी खड़गपुर में बीटेक फाइनल ईयर के इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग के छात्र हैं। आयुष बताते हैं कि जब "मैं 8वीं और 9वीं कक्षा का छात्र था तब से ही मुझे रोबोट में काफी दिलचस्पी थी। मेरा बड़ा भाई छोटे रोबोट बनाता था। ये देखकर धीरे धीरे मेरी रूची इस ओर बढ़ने लगी। जिसके बाद मैंने भी तय कर लिया था कि आगे चलकर मैं रोबोट के क्षेत्र में काम करूंगा।" स्कूल की पढ़ाई के बाद जब आयुष इंजीनियरिंग करने आईआईटी खड़गपुर आये तो उनके कोर्स में पहले साल ही रोबोटिक था इसमें उन्हें उनके सीनियर पढ़ाया करते थे। इससे आयुष में रोबोट के प्रति और ज्यादा रूची बढ़ गयी। आयुष जब सेकेंड ईयर में पहुंचे तब अपने कॉलेज में ही उन्होंने एक ग्रुप को ज्वाइन किया जो ऐसी कार बनाने की कोशिश में लगे हैं जो बिना ड्राइवर के चले, आयुष अब भी इस ग्रुप के साथ जुड़े हैं। आयुष बताते हैं कि उन्होंने इस ग्रुप से बहुत कुछ सीखा है क्योंकि वो भी एक तरह की रोबोटिक कार ही बनाने की कोशिश में लगे हैं।
ड्रॉइवर लेस बाई-साइकिल के बारे में आयुष का कहना है कि "हमारे कैंपस में कुछ लोग साइकिल से भी आते हैं। तब मैं देखता था कि मेरे कुछ दोस्त जो दिव्यांग थे उनको साइकिल स्टैंड से साइकिल निकालने में काफी दिक्कत आती थी और वो साइकिल स्टैंड भी कॉलेज की इमारत से थोड़ा दूर था। तब मैंने एक ऐसी साइकिल बनाने के बारे में सोचा जो अपने आप जीपीएस और ऐप से चलती हो।" पिछले डेढ़ साल से आयुष और उनके सहपाठी शुभामोय महाजन जो खड़गपुर आईआईटी में मैकेनिकल इंजीनियरिंग के छात्र हैं, अपनी इस खास साइकिल पर काम कर रहे हैं। इसके अलावा थर्ड ईयर के 5 और सैकेंड ईयर के 6 छात्र भी इस साइकिल पर काम कर रहे हैं।
साइकिल के काम करने के तरीके के बारे में आयुष का कहना है कि "ये साइकिल अपने आप और मैनुअल दोनों ही तरीके से चलती है। अगर हमें बस स्टाप या मेट्रो स्टेशन से घर जाना हो तो हम मोबाइल के जरिये साइकिल को अपने पास बुला सकते हैं। इसमें एक बटन और क्लच दिया गया है जिसे व्यक्ति चाहे तो खुद चला के जा सकता है। ऐसे दिव्यांग लोग जिनके हाथ या पैर कहीं भी दिक्कत हो वो इसे ऑटोनमस मोड पर चला सकते हैं। ये एक इलैक्ट्रिक साइकिल है और इसमें बैट्री पावर है, अगर व्यक्ति को जल्दी है तो इसमें एस्कलेटर दिया गया है जिससे की वो तेज साइकिल चला सकता है। साथ ही इसे लोग इस्तेमाल के बाद कहीं पर भी खड़ा कर सकते हैं और ये साइकिल अपने आप स्टैंड तक पहुंच जाती है।
आयुष बताते हैं कि साइकिल के चोरी हो जाने या उसके खो जाने की स्थिति को ध्यान में रखकर वे इसके जीपीएस सिस्टम में काम कर रहे हैं। उनका कहना है कि साइकिल में एक एंड्रॉयड फोन होगा जिसमें कैमरा लगा होगा और एक फोन सर्वर के पास होगा जिससे साइकिल का डॉटा फीड सर्वर के पास जाता रहेगा। अब वे इसमें एक ऐसा अलार्म लगाने की सोच रहे हैं कि अगर कहीं कोई किसी प्रकार से साइकिल को नुकसान पहुंचाने की कोशिश करे तो उसका अलार्म अपने आप बज जाये। साइकिल जब स्टैंड में होगी या रास्ते में होगी तो उसका वीडियो फीड सर्वर पर जाता रहेगा। जिससे साइकिल मालिक को ये पता रहेगा कि साइकिल कहां और किस हालत में है।
आयुष के मुताबिक कोई भी व्यक्ति अपने एंड्रॉयड फोन पर इस ऐप को डाउनलोड कर सकता है। ऐप में यूजर्स जैसे ही अपनी लोकेशन की जानकारी देता है तो साइकिल को उसमें लगे जीपीएस से पता चल जाता है कि उसे किस लोकेशन में जाना होता है। इसके बाद ये साइकिल अपना रास्ता खुद तय करती है। आयुष के मुताबिक फिलहाल ये साइकिल सिर्फ उन्हीं जगहों पर चल सकती है जहां पर साइकिल के लिए अलग ट्रैक बनाए गये हैं। भारत में यह सुविधा, गांधीनगर, चंडीगढ़, बैंगलुरू और ग्रेटर नोएडा में उपलब्ध है। इसके अलावा कई पश्चिमी देशों में यह सुविधा उपलब्ध है। आयुष का मानना है कि अब भारत में भी स्मार्ट सिटी बन रहीं हैं इसलिए भविष्य में ये साइकिल काफी फायदेमंद साबित होगी।
आयुष और उनकी टीम फिलहाल इस साइकिल को और बेहतर बनाने में लगे हुए हैं। फिलहाल ऐसी साइकिल की लागत करीब 30 हजार रुपये के आसपास आती है। हालांकि ये अपनी इस साइकिल में कई तरह के सुधार कर रहे हैं। इसके अलावा उन्होने इस साइकिल के पेटेंट के लिए भी आवेदन किया हुआ है। आयुष के मुताबिक पेटेंट मिलने के बाद वो किसी कम्पनी से करार कर ऐसी और साइकिल बाजार में उतारेंगे।