रिक्शा चलाने वाले के बेटे ने NIT से इंजीनियरिंग कर हासिल की अच्छी नौकरी
रिक्शा चालक का बेटा बन गया मकैनिकल इंजीनियर...
शुभम शुरू से ही इतने मेधावी थे कि दसवीं बोर्ड में वह जिले में तीसरे स्थान पर रहे। कॉलेज मे पढ़ाई के दौरान ही उनका चयन मगध सुपर थर्टी में हो गया। शुभम ने काफी मुश्किल हालात में अपनी जिंदगी बिताई है। वह छठी से आठवीं की पढ़ाई के दौरान शाम के वक्त एक दवा दुकान में काम करता था ताकि पिता पर ज्यादा बोझ न पड़े औऱ वह भी कुछ पैसे कमाता रहे। वहां काम करने के बदले उसे हर महीने सिर्फ तीन सौ रुपये मिलते थे...
शुभम के पिता कभी रिक्शा चलाकर परिवार का गुजारा करते थे, लेकिन शुभम अब मकैनिकल इंजिनियर बन गया है। मगध सुपर-30 में शुभम की पूरी देखरेख होती रही। उन्हें वहां किसी भी तरह की कमी नहीं महसूस हुई। क्योंकि वहां खाने से लेकर रहने का इंतजाम सब मुफ्त था।
बिहार में गरीब बच्चों को फ्री में कोचिंग देने वाले सुपर-30 के आनंद कुमार का नाम तो आपने सुना ही होगा। लेकिन क्या आप उनके पुराने साथी को जानते हैं। आनंद कुमार के साथ ही सुपर-30 की शुरुआत करने वाले बिहार के पूर्व डीजीपी अभयानंद भी आनंद की तरह तमाम गरीब बच्चों को कोचिंग की सुविधा मुहैया करवाकर आईआईटी और एनआईटी जैसे संस्थानों में भेजकर उनकी जिंदगी बदल रहे हैं। उनके कोचिंग संस्थान से निकले शुभम की कहानी काफी दिलचस्प है। शुभम के पिता कभी रिक्शा चलाकर परिवार का गुजारा करते थे, लेकिन शुभम अब मकैनिकल इंजिनियर बन गया है।
गया शहर के मखलौट गंज मोहल्ले में रहने वाले रामचंद्र प्रसाद का परिवार पिछले 17 सालों से यहां रह रहा है। वे मूल रूप से बिहार के ही वजीर गंज के रहने वाले हैं, लेकिन रोजगार की तलाश में गया चले आए थे और यहां आकर रिक्शा चलाने लगे। उनका बेटा शुभम बचपन से ही पढ़ने में मेधावी था, इसीलिए रामचंद्र उसकी पढ़ाई पर पूरा ध्यान देते रहे। स्कूल की फीस और कॉपी-किताब खरीदने के लिए जितने पैसों की जरूरत होती थी उसे पूरा कर पाना रामचंद्र के लिए आसान नहीं था। लेकिन उन्होंने कभी गर्मी, जाड़ा या बरसात की फिक्र नहीं की और अपने बेटे को पढ़ाने के कमरतोड़ मेहनत करते रहे।
जागरण की खबर के मुताबिक शुभम की पहली से आठवीं तक की पढ़ाई राजकीय मध्य विद्यालय मुरारपुर से हुई। नौवीं और दसवीं टी मॉडल हाईस्कूल से करने के बाद इंटरमीडिएट की पढ़ाई गया कॉलेज से की। शुभम शुरू से ही इतने मेधावी थे कि दसवीं बोर्ड में वह जिले में तीसरे स्थान पर रहे। कॉलेज मे पढ़ाई के दौरान ही उनका चयन मगध सुपर थर्टी में हो गया। मगध सुपर-30 में शुभम की पूरी देखरेख होती रही। उन्हें वहां किसी भी तरह की कमी नहीं महसूस हुई। क्योंकि वहां खाने से लेकर रहने का इंतजाम सब मुफ्त था।
शुभम ने भी इस मौके का भरपूर फायदा और अवसर को जाने नहीं दिया। उन्होंने इंजीनियरिंग के लिए प्रवेश परीक्षा दी तो एनआइटी में अच्छी रैंक आ गई। वे जयपुर से बीटेक करने के लिए चले गए। इसी साल उन्होंने मैकेनिकल इंजीनियरिंग की पढ़ाई पूरी हुई। कॉलेज में कैंपस प्लेसमेंट के जरिए उन्हें मारूति सुजुकी में नौकरी मिल गई। शुभम का परिवार 17 सालों से दो कमरों के एक दड़बेनुमा किराए के मकान में रह रहा है। उनका बड़ा भाई शहर में ही नींबू बेचता है। लेकिन उनके पिता को अब उम्मीद है कि बेटा पढ़ लिखकर अपनी जिंदगी तो संवारेगा ही साथ ही उनकी हालत भी अब बदलेगा
शुभम ने काफी मुश्किल हालात में अपनी जिंदगी बिताई है। वह छठी से आठवीं की पढ़ाई के दौरान शाम के वक्त एक दवा दुकान में काम करता था ताकि पिता पर ज्यादा बोझ न पड़े औऱ वह भी कुछ पैसे कमाता रहे। वहां काम करने के बदले उसे हर महीने सिर्फ तीन सौ रुपये मिलते थे। शुभम अभयानंद की खूब तारीफें करता है और कहता है कि यदि अभयानंद सर ने सुपर थर्टी की स्थापना नहीं की होती तो शायद आज मैं यहां नहीं होता। शुभम के पिता हालांकि अभी भी रिक्शा चलाते हैं, लेकिन उन्हें उम्मीद है कि बेटे को नौकरी मिल जाने के बाद अब उन्हें ऐसा नहीं करना पड़ेगा।
बिहार के पूर्व डीजीपी अभयानंद की ओर से चलाये जा रहे संस्थान 'अभयानंद सुपर -30' में वंचित तबके के मेधावी छात्रों को दस महीने की आवासीय कोचिंग मुफ्त दी जाती है। पिछले चार वर्षो में लगभग सौ छात्र आईआईटी निकाल चुके हैं। इस बार उनके संस्थान से शशि कुमार को 258 वीं रैंक प्राप्त हुई थी। शशि कुमार ने आइआइटी द्वारा जारी रिजल्ट में पूरे बिहार में पहले नंबर पर रहे। इसी संस्थान में पढ़ने वाले केशव राज 487वें रैंक के साथ बिहार के सेकेंड टॉपर बने थे। अपने मेंटरशिप में अलग-अलग छह सुपर 30 संस्थान चलाने वाले अभयानंद ने कोचिंग जगत के लिए नजीर पेश की है।
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