कारगिल विजय दिवस: राजस्थान के शूरवीर शहीद सूबेदार मंगेज सिंह हरनावां की कहानी
मंगेज सिंह भारतीय सेना की 11वीं राजपूताना राइफल्स बटालियन में सूबेदार के पद पर तैनात थे। कारगिल युद्ध के दौरान 6 जून 1999 को पाकिस्तानी सैनिकों से लोहा लेते हुए वे शहीद हो गए।
साल 1999 में जम्मू-कश्मीर के कारगिल में भारत-पाकिस्तान के बीच हुए युद्ध में शहीद हुए सुबेदार मंगेज सिंह राठौड़, राजस्थान के नागौर जिले के परबतसर उपखंड क्षेत्र के गांव हरनावां के निवासी थे. उनका जन्म 2 अक्टूबर 1959 को हुआ था. अपने माता-पिता की तीसरी संतान के रूप में तीन बेटों में वे सबसे छोटे थे. 10वीं कक्षा पास करते ही संतोष कँवर से उनका विवाह हो गया. उनके परिवार में उनकी धर्मपत्नी और तीन पुत्र है.
ऐसे मिली शहादत
YourStory से बात करते हुए शहीद मंगेज सिंह की पत्नी ने बताया, "मेरे पति मंगेज सिंह, भारतीय सेना की 11वीं राजपूताना राइफल्स बटालियन में सूबेदार के पद पर तैनात थे. कारगिल युद्ध के दौरान 6 जून 1999 को 10 सैनिकों के साथ सूबेदार मंगेज सिंह को तुर्तुक क्षेत्र में भेजा गया. यहां ऑटोमेटिक हथियारों से लैस पाकिस्तानी सैनिकों ने भारतीय सेना के जवानों पर हमला कर दिया."
इस दौरान सैनिक अपनी लाइट मशीन गन (एलएमजी) व मिडियम गन संभालते हुए टारगेट से 50 मीटर की ही दूरी पर थे. हमले में भारतीय सेना के 6 जवान घायल हो गए और एक गोली मंगेज सिंह को भी लगी. खुद घायल होने के बावजूद मंगेज सिंह अपने साथियों को घायल सैनिकों को संभालने और वहां से ले जाने का आदेश देकर लड़ाई लड़ते हुए खुद आगे बढ़ते रहे.
उन्होंने घायल हालत में ही बंकर के पीछे पाकिस्तानी सैनिकों पर जमकर कई राउंड फायरिंग की, जिससे 7 पाकिस्तानी सैनिक ढेर हो गए. वहीं पाकिस्तानी सैनिकों द्वारा की गई फायरिंग में मंगेज सिंह भी शहीद हो गए.
64 दिन बाद मिला शहीद का शव
वीरांगना (शहीद की पत्नी) संतोष कँवर सहित परिजनों को मंगेज सिंह की शहादत की जानकारी तो 6 जून 1999 को ही मिल गई थी, पर उनका पार्थिव शरीर तत्काल बरामद नहीं हो सका. शव की खोज़बीन लगातार जारी रही और लंबे सर्च ऑपरेशन के बाद भारतीय सेना को 5 अगस्त 1999 को शहीद का पार्थिव शरीर मिला.
शव नहीं मिलने पर पत्नी ने किया अनशन
24 साल पहले कारगिल युद्ध में सूबेदार मंगेज सिंह राठौड़ की शहादत के बाद वीरांगना संतोष कँवर ने अपने जाबांज पति के शव के इंतजार में लगातार 21 दिनों तक अन्न-जल त्याग दिया, जिसकी जानकारी मिलने के बाद तत्कालीन मुख्यमंत्री भैरोसिंह शेखावत व तत्कालीन विदेश राज्यमंत्री वसुंधरा राजे सिंधिया खुद वीरांगना के गांव पहुंचे और समझाइश करते हुए वीरांगना को अपने हाथ से पानी पिलाया.
वीरांगना ने अन्न ग्रहण नहीं किया और कहा कि पति का मुँह देखकर ही अन्न ग्रहण करूंगी. इसके बाद 5 अगस्त 1999 को सेना को शहीद का शव मिला और 64 दिनों बाद शव घर आने पर ही वीरांगना ने अनशन तोड़ा.
मरणोपरांत मिला सम्मान
राजस्थान के इस वीर सपुत को मरणोपरांत वीर चक्र से सम्मानित किया गया और उनके नाम पर कारगिल में भारत के कब्जे वाले कुछ क्षेत्र का नामकरण मंगेज सिंह हरनावां के नाम से किया गया. वहीं, प्रदेश सरकार ने भी उनके नाम से एक विद्यालय का नामकरण किया.