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गरीब बच्चों की जिंदगी बेहतर करने में जुटी हैं दिल्ली पुलिस की कांस्टेबल ममता और निशा

गरीब बच्चों की जिंदगी बेहतर करने में जुटी हैं दिल्ली पुलिस की कांस्टेबल ममता और निशा

Friday January 01, 2016 , 4 min Read

पुलिस का नाम लेते ही लोगों के दिमाग में खाकी वर्दी पहने ऐसे शख्स की तस्वीर उभरती है, जो हाथ में बंदूक या लाठी लेकर लोगों को अपना रौब दिखाता हो। पुलिसवाले सामान्य तौर पर बड़े कठोर और सख्ती से काम लेने वाले दिखाई पड़ते हैं, लेकिन हमेशा ऐसा नहीं होता है। कम से कम दिल्लीे पुलिस की दो कांस्टेबल ममला नेती और निशा के बारे में तो यह बिल्कुल नहीं कहा जा सकता है। ये कांस्टेबल गरीब बच्चों को पढ़ा लिखाकर उन्हें जीवन में कुछ करने लायक बनाने के काम में जुटी हुई हैं।

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उत्तरी दिल्ली के तिमारपुर और रूपनगर पुलिस थानों में प्रतिदिन झुग्गी बस्तियों में रहने वाले गरीब परिवार के बच्चों को न सिर्फ पढ़ाया जा रहा है, बल्कि उन्हें इस कदर मजबूत बनाया जा रहा है कि वे अपने आस-पास होने वाली गलत गतिविधियों का विरोध कर अपराध पर काबू करने में पुलिस की मदद कर सकें।

योरस्टोरी को ममता बताती हैं 

तिमारपुर और रूपनगर पुलिस थानों के आस-पास बड़ी संख्या में झुग्गियां हैं। इन झुग्ग्यिों में रहने वाले अधिकतर लोग परिवार के लालन पालन के लिए छोटे मोटे काम करते हैं। इन परिवारों के बच्चे स्कूल के बाद खाली समय में इधर-उधर घूमा करते थे, जिससे इनके गलत संगत में पड़ने की आशंका रहती थी। इसके अलावा झुग्गियों में रहने वाली छोटी बच्चियों के साथ अपराध होने का खतरा भी रहता था।

ऐसे में छह महीने से इन दोनों पुलिस थानों में कांस्टेबल ममता नेगी (तिमारपुर) और कांस्टेबल निशा (रूपनगर) ने यहां के बच्चों को पढ़ाने और उन्हें आत्मरक्षा में निपुण करने का बीड़ा उठाया है।

निशा बताती हैं 

हर थाने में करीब 50 बच्चे पढ़ने के लिए आते हैं। इनमें अधिकतर बच्‍चे सरकारी स्कूल में पढ़ने वाले या किसी कारणवश स्कूल छोड़ चुके बच्चे शामिल हैं। अधिकतर बच्चे पढ़ने में तेज हैं, लेकिन सही दिशा और सलाह न मिल पाने के कारण ये कुछ पिछड़ गए हैं। थानों में बच्चों के स्कूल के सिलेबस के अलावा अंग्रेजी, गणित और जनरल नॉलेज पर भी विशेष ध्यान दिया जाता है।
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ममता कहती हैं 

‘मैंने खुद एक सरकारी स्कूल से पढ़ाई की है। सरकारी स्‍कूलाें में न सिर्फ संसाधनों की कमी होती है, बल्कि कई बार शिक्षक सिर्फ नाम के लिए पढ़ाते हैं। सभी के पास ट्यूशन पढ़ने के लिए पैसे नहीं होते हैं। अच्छी बात यह है कि इन बच्चों के मां-बाप बेशक गरीब और कम पढ़े लिखे क्यों न हों, लेकिन वे पढ़ाई के प्रति जागरूक हैं और प्रतिदिन अपने बच्चों को यहां पढ़ने भेजते हैं।’ 

निशा कहती हैं 

मैं दिल्ली पुलिस ज्वाइन करने से पहले बच्चों को ट्यूशन पढ़ाती थी। ऐसे में मुझे बच्चों को पढ़ाने के बहाने खुद भी पढ़ने का मौका मिलता है। यहां पढ़ने वाले अधिकतर बच्चे काफी होनहार हैं, जिन्हें सिर्फ सही राह दिखाने और सही माहौल देने की आवश्यकता है।

यहां पढ़ने वाले वाले निखिल कहते हैं ‘पहले मेरी अंग्रेजी अच्छी नहीं थी, लेकिन जबसे मैं यहां आकर पढ़ने लगा हूं मेरी अंग्रेजी में काफी सुधार हुआ है। अब अंग्रेजी की परीक्षा में मेरे काफी अच्छे नंबर आने लगे हैं। निशा मैम कहती हैं कि हम सभी बड़े होकर देश की सेवा करेंगे तो मुझे बहुत अच्छा लगता है। मैं भी उनकी तरह बड़ा होकर पुलिस ज्वाइन करूँगा।’ काजल कहती हैं कि ममता मैम हमें न सिर्फ पढ़ाती हैं, बल्कि डांस और योग भी सिखाती हैं। वह हमें प्रतियोगिता में जीतने पर चॉकलेट और पेन देती हैं। मैम हमें अक्षरधाम मंदिर भी घुमाने भी ले गई थीं, जहां हमने अपने देश की संस्कृति और महान पुरुषों के बारे में जाना।

दिल्ली पुलिस के 'शी टू शक्ति' प्रोग्राम के तहत यह कार्यक्रम चलाया जाता है, जिसका मुख्य उद्देश्य महिला सशक्तिकरण है। 'शी टू शक्ति' प्रोग्राम के अंतर्गत दिल्ली पुलिस विभिन्न कॉलेज की लड़कियों को सेल्फ डिफेन्स ट्रेनिंग देती हैं, समय समय पर एंटी ईवटीजिंग ड्राइव चलाती है और उन्हें अपने पैरों पर खड़ा होने में मदद भी करती हैं।