Brands
Discover
Events
Newsletter
More

Follow Us

twitterfacebookinstagramyoutube
Yourstory

Brands

Resources

Stories

General

In-Depth

Announcement

Reports

News

Funding

Startup Sectors

Women in tech

Sportstech

Agritech

E-Commerce

Education

Lifestyle

Entertainment

Art & Culture

Travel & Leisure

Curtain Raiser

Wine and Food

YSTV

ADVERTISEMENT
Advertise with us

सागरपुर के याकूब अली पुराने कपड़ों को upcycle करके बनाते हैं नई चीज़ें

स्थिरता की दिशा में शहरी इलाकों के लिए पुनर्प्रयोग (Upcycle) एक नई प्रवृत्ति और जागरुक विकल्प के तौर पर उभरी है।

सागरपुर के याकूब अली पुराने कपड़ों को upcycle करके बनाते हैं नई चीज़ें

Tuesday April 18, 2017 , 3 min Read

जब तक औद्योगिक क्रांति ने हमें सुविधाओं से रू-ब-रू नहीं कराया था, तब तक दुनिया भर की संस्कृतियों और जीवनशैली में रोजमर्रा के सामानों को मरम्मत करके उपयोग में लाना एक आम बात हुआ करती थी। पहले भारत में भी मरम्मत और पुनर्प्रयोग (Upcycle) की संस्कृति विशेष रूप से प्रचलित थी जो धीरे-धीरे खत्म होती चली गई, लेकिन अब भी ऐसे कई ग्रामीण क्षेत्र हैं जहां वो संस्कृति जीवित है और याकूब अली की कहानी व उनकी कोशिश उस संस्कृति की एक खूबसूरत मिसाल है।

<h2 style=

याकूब अली a12bc34de56fgmedium"/>

पुरानी चीज़ों का पुनर्प्रयोग (Upcycle) उन संस्कृतियों में बहुत स्वाभाविक रूप से होता है, जहां संसाधनों की कमी होती है या फिर जहां हर चीज की कीमत समझी जाती हैं।

सागरपुर, उत्तर प्रदेश के के याकूब अली गुजरात के वड़ोदरा में चार साल पहले काम की तलाश में आये और वहीं गुजरात में एक हथकरघा मशीन लगाई, जिस पर वे पुराने और फटे कपड़े, कंबल, सोफा कवर, पायदान और चादर जैसी चीजों का पुनर्प्रयोग (Upcycle) करने लगे। याकूब अली कहते हैं, कि 'ये परंपरा मेरे गांव में बहुत पहले से चल रही है और ये मशीन लगभग सभी घरों में है'

पुनर्प्रयोग (Upcycle) उन संस्कृतियों में बहुत स्वाभाविक रूप से होता है, जहां संसाधनों की कमी होती है या फिर जहां हर चीज की कीमत समझी जाती हैं। ये काम याकूब बचपन से कर रहे हैं और अब इसमें महारत हासिल कर चुके हैं। पुनर्प्रयोग (Upcycle) से वे तरह-तरह की चीज़ें बनाते हैं। शहरी क्षेत्रों में भी अब इस संस्कृति को तेज़ी से अपनाया जा रहा है। याकूब कहते हैं, 'मैं जो काम कर रहा हूं, इस काम के बारे में जानने तो कई लोग आते हैं, लेकिन मुझे आमतौर पर प्रतिदिन के हिसाब से तीन-चार नये अॉर्डर मिलते हैं' वे ग्राहकों से कपड़ों की संख्या, कपड़े की हालत और उनसे जो वस्तु बनाने की जरूरत होती है उसके अनुसार पैसे लेते हैं।

image


याकूब की हथकरघा मशीन जिसे वे यूपी से खोलकर लेकर गुजरात लाये थे, उस मशीन की कीमत करीब 5,000 रुपये है। याकूब के आने से पहले उनके गांव के और भी कई लोग काम की तलाश में वड़ोदरा और अन्य स्थानों पर आ चुके हैं। चार साल पहले जब याकूब ने देखा कि कई लोग वड़ोदरा जैसे शहरों की ओर अपना रुख कर रहे हैं और दूसरी जगहों पर व्यापार की अच्छी गुंजाइश है, तो उन्होंने भी अपना शहर छोड़ दिया। वे कहते हैं, 'जैसे-जैसे लोग मेरे काम के बारे में जान रहे हैं, वैसे-वैसे मेरे काम की मांग बढ़ रही है। मैं इस काम को आगे भी करते रहना चाहता हूं।'

स्थिरता की दिशा में शहरी इलाकों के लिए पुनर्प्रयोग (Upcycle) एक नई प्रवृत्ति और जागरुक विकल्प के तौर पर उभरी है। ये कितने आश्चर्य की बात है कि दुनिया के एक बेहतर भविष्य के लिए अपनाये जाने वाले समाधानों में से कितने ही समाधान कुछ दशक पहले तक हमारे जीवन का एक स्वाभाविक हिस्सा हुआ करते थे।

-प्रकाश भूषण सिंह

ये भी पढ़ें,

एक ऐसा स्टार्टअप जिसने बदल दी यौन तस्करी से पीड़ित महिलाओं की ज़िंदगी


यदि आपके पास है कोई दिलचस्प कहानी या फिर कोई ऐसी कहानी जिसे दूसरों तक पहुंचना चाहिए, तो आप हमें लिख भेजें [email protected] पर। साथ ही सकारात्मक, दिलचस्प और प्रेरणात्मक कहानियों के लिए हमसे फेसबुक और ट्विटर पर भी जुड़ें...