जब नवाब पटौदी की मां मुंबई आईं और पूरे शहर में शर्मिला टैगोर की बिकनी वाली फोटो के बैनर लगे थे
आज शर्मिला टैगोर का जन्मदिन है. हिंदी और बंगाली सिनेमा की वह अभिनेत्री, जो अपने समय से बहुत आगे थीं.
आज शर्मिला टैगोर का जन्मदिन है. ‘अपूर संसार’ की नन्ही ब्याहता अपर्णा, ‘देवी’ की दयामयी, ‘सीमाबद्ध’ की टुटुल, ‘आरण्येर दिन-रात्रि’ की अपर्णा, ‘सत्यकाम’ की रंजना और ‘गृह प्रवेश’ की मानसी का जन्मदिन.
13 साल की उम्र से फिल्मों में काम करने वाली शर्मिला, जिन्हें टीचरों से ने स्कूल से यह कहकर निकाल दिया था कि फिल्मी लड़की का स्कूल बाकी लड़कियों पर बुरा असर पड़ता है. जिनके पिता ने स्कूली शिक्षा से ऊपर फिल्मों को चुनने, एक मुसलमान लड़के से शादी करने से लेकर बिकनी में फिल्मफेयर के लिए फोटोशूट करने तक बेटी के हर फैसले में हमेशा उसका साथ दिया.
हालांकि शादी के पक्ष में वो नहीं थे. लेकिन इसलिए नहीं कि लड़का मुसलमान था. इसलिए क्योंकि उन्हें लगता था कि शादी लड़कियों के लिए जेल है. शादी उसकी आजादी और उसका स्वाभिमान छीन लेगी. लेकिन ऐसा हुआ नहीं. अपने कॅरियर की सबसे खूबसूरत, यादगार और बोल्ड फिल्में भी शर्मिला ने शादी के बाद की थीं.
रवींद्रनाथ टैगोर के जुड़े कुलीन खानदान में जन्म
शर्मिला टैगोर का जन्म 8 दिसंबर 1944 को उत्तर प्रदेश के कानपुर में हुआ था, जो आजादी से पहले यूनाइटेड प्रॉविंस का हिस्सा हुआ करता था. पिता गीतिंद्रनाथ टैगोर ब्रिटिश इंडिया कॉरपोरेशन में जनरल मैनेजर थे और मां इरा टैगोर हाउस वाइफ थीं, जो एक असमिया परिवार से आई थीं.
टैगोर के पिता बंगाल के कुलीन हिंदू टैगोर परिवार ताल्लुक रखते थे. नोबेल विजेता रवींद्रनाथ टैगोर उनके दूर के रिश्तेदार थे. गीतिंद्रनाथ असल में प्रसिद्ध चित्रकार गगनेंद्रनाथ टैगोर के पोते थे, जिनके पिता गुनेंद्रनाथ टैगोर रवींद्र बाबू के पहले चचेरे भाई थे.
शर्मिला की मां भी टैगोर परिवार से ताल्लुक रखती थीं
शर्मिला टैगोर की मां की भी रवींद्रनाथ टैगोर के परिवार से रिश्तेदारी थी. इरा टैगोर की नानी, लतिका बरुआ रवींद्रनाथ टैगोर के भाई द्विजेंद्रनाथ टैगोर की पोती थीं. शर्मिला के नाना एक असमिया कुलीन बरुआ परिवार से थे, जो गुवाहाटी के अर्ल लॉ कॉलेज के पहले प्रिंसिपल बने. ये कॉलेज अब गुवाहाटी में गवर्नमेंट लॉ कॉलेज के नाम से जाना जाता है. हिंदी सिनेमा की शुरुआती अभिनेत्रियों में से एक देविका रानी भी शर्मिला की दूर की रिश्तेदार थीं.
काबुलीवाला की नन्ही मिनी शर्मिला की बहन थी
शर्मिला तीन बहनों में सबसे बड़ी थीं. उनकी दो छोटी बहनें थीं- ओइन्द्रिला कुंडा और रोमिला सेन. टैगोर परिवार से फिल्मों में काम करने वाली ओइन्द्रिला पहली शख्स थीं. जिसने भी रवींद्रनाथ टैगोर की कहानी पर 1957 में बनी तपन सिन्हा की बंगाली फिल्म ‘काबुलीवाला’ देखी है, उन्हें वो नन्ही बच्ची मिनी जरूर याद होगी, जिसकी काबुलीवाले से दोस्ती हो जाती है.
उस मिनी का किरदार निभाने वाली कोई और नहीं बल्कि शर्मिला टैगोर की छोटी बहन ओइन्द्रिला थीं. हिंदी फिल्मों में वो उनकी पहली और आखिरी भूमिका थी. उन्होंने फिर कभी फिल्मों में काम नहीं किया. बड़ी होकर वो एक इंटरनेशनल लेवल की ब्रिज प्लेयर बनीं. रोमिला सेन की शादी एक बड़े बिजनेसमैन निखिल सेन से हुई थी, जो लंबे समय तक ब्रिटानिया इंडस्ट्रीज के सीईओ रहे.
शुरुआती शिक्षा और सत्यजीत रे के साथ पहली फिल्म
शर्मिला की शुरुआती शिक्षा सेंट जॉन डायोकेसन गर्ल्स स्कूल और फिर आसनसोल के लोरेटो कॉन्वेंट में हुई. जब वो सिर्फ 13 साल की थीं और अभी स्कूल में पढ़ ही रही थीं, जब उन्होंने फिल्मों में काम करना शुरू कर दिया. उन्होंने अपनी पहली फिल्म ही इस सदी के भारतीय उपमहाद्वीप के महान फिल्मकार सत्यजीत रे के साथ की थी. अपु ट्रायलॉजी की तीसरी फिल्म ‘अपूर संसार’ की नन्ही अभागी दुल्हन कोई और नहीं, बल्कि 13 बरस की शर्मिला टैगोर थीं.
उस फिल्म में उनके काम को बहुत सराहना मिली और उन्हें और फिल्मों में काम मिलने लगा. अगली फिल्म सत्यजीत राय की ही बनाई ‘सती’ थी. पहली हिंदी फिल्म से पहले शर्मिला ने छह बंगाली फिल्मों में काम किया.
जब शर्मिला के पिता के पास आई स्कूल से शिकायत
वो अभी छोटी ही थीं और स्कूल में पढ़ भी रही थीं. लेकिन ज्यादातर समय फिल्मों की शूटिंग में व्यस्त रहने के कारण वह स्कूल कम ही जा पाती थीं. साथ ही स्कूल को यह भी लगने लगा कि फिल्मी माहौल से आने के कारण शर्मिला की वजह से बाकी लड़कियों का ध्यान पढ़ाई से हट रहा है. उनकी वजह से स्कूल का माहौल खराब हो रहा है. स्कूल वालों ने शर्मिला के पिता से कहा कि वह अपनी बेटी को स्कूल न भेजें.
पिता की सलाह, तुम्हारा भविष्य फिल्मों में है
शर्मिला के पास दो रास्ते थे. या तो वो फिल्में छोड़कर अभी अपनी पढ़ाई पूरी करें या फिर स्कूल छोड़ दें. पिता ने ही सलाह दी कि तुम्हारा भविष्य और तुम्हारा कॅरियर फिल्मों में है. पढ़ाई तो तुम घर से भी कर सकती हो. शर्मिला ने फिर कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा. और आगे चलकर वह न सिर्फ हिंदी सिनेमा की सबसे सफल, बल्कि सबसे क्रांतिकारी अभिनेत्रियों में शुमार हुईं.
बिकनी वाली लड़की
शर्मिला का पूरा जीवन लीक और परंपरा से हटकर अपनी शर्तों जीने की कहानी है. शर्मिला पहली हिंदी सिनेमा की अभिनेत्री थीं, जो रूपहले पर्दे पर बिकनी में नजर आईं, 1967 में बनी फिल्म ‘एन इवनिंग इन पेरिस’ में. 1966 में फिल्मफेयर मैगजीन के कवर उनकी एक फोटो छपी, जिसमें वो एक काले-सफेद रंग की दो पीस बिकनी में दिखाई दीं.
जब शर्मिला ने की शक्ति सामंत से बिकनी वाले पोस्टर हटाने की गुजारिश
1967 में ‘एन इवनिंग इन पेरिस’ रिलीज हुई. पूरे शहर में बड़े-बड़े होर्डिंग्स लगे थे, जिसमें उनकी नीली बिकनी वाली तस्वीर थी. उसी समय नवाब मंसूर अली खान पटौदी की मां मुंबई आई हुई थीं. एक साल पहले दिल्ली के जिमखाना क्लब में शर्मिला की पटौदी से मुलाकात हुई थी. शर्मिला क्रिकेट के मैदान में उस वक्त अपना जलवा बिखेर रहे इस नौजवान के प्रति अपने अदम्य आकर्षण को छिपा नहीं पाईं. पटौदी को भी पहली ही मुलाकात में शर्मिला से इश्क हो गया.
पटौदी की मां मुंबई यात्रा के दौरान उस लड़की से मिलना चाहती थीं, जिन्हें उनका बेटा उन दिनों डेट कर रहा था. यूं तो शर्मिला बहुत आजादख्याल और बहुत आधुनिक विचारों वाले परिवार से ताल्लुक रखती थीं. वो फिल्मों में अपने पिता के कारण ही थीं. अपने समय से आगे के आधुनिक फैसलों को लेकर उन्हें घर में किसी तरह के विरोध का सामना नहीं करना पड़ा था.
लेकिन उन्हें डर था कि पटौदी का खानदान नवाबी होने के साथ थोड़ा पिछड़े रूढि़वादी ख्यालों का भी है. ऐसे में अगर उनकी मां ने होने वाली बहू के बिकनी वाले बैनर पूरे शहर को चकाचौंध करते देखे तो जाने उन पर क्या बीतेगी. उन्होंने शक्ति सामंत से गुजारिश की कि कुछ दिनों के लिए ये बैनर हटा लिए जाएं. शक्ति सामंत भी बिना कोई सवाल किए उनकी बात समझ गए और सारे बैनर हटा दिए गए.
शर्मिला टैगोर का फिल्मी कॅरियर
हिंदी फिल्मों में उनके कॅरियर की शुरुआत 1964 में बनी फिल्म ‘कश्मीर की कली’ के साथ हुई. डायरेक्टर थे शक्ति सामंत. पहली ही फिल्म सुपरहिट रही. फिर उन्होंने यश चोपड़ा के साथ फिल्म वक्त में काम किया और वह भी सुपरहिट रही. 1967 में एन इवनिंग इन पेरिस रिलीज होने तक वो अनुपमा, देवर, सावन की घटा जैसी 9 हिंदी फिल्में कर चुकी थीं और सब के सब हिट थीं.
तभी उन्होंने अचानक नवाब पटौदी से शादी की ली. इस शादी के लिए उन्होंने इस्लाम धर्म स्वीकार किया और अपना नाम रखा आयशा सुल्ताना. कहते हैं कि शर्मिला के घरवाले, हिंदी सिनेमा में उनके मेंटॉर रहे शक्ति सामंत जैसे दोस्त, शुभचिंतक इस शादी से खुश नहीं थे. नाखुश होने की वजह सिर्फ एक थी. एक रूढि़वादी, नवाबी खानदान में ब्याह के बाद शर्मिला का कॅरियर खत्म हो जाएगा. यही फिक्र उनके पिता को भी थी.
लेकिन इतिहास गवाह है कि ऐसा हुआ नहीं. शादी के बाद शर्मिला ने तकरीबन 80 से ज्यादा फिल्मों में काम किया. उनकी शादी बहुत खुशहाल थी और इसके लिए उन्हें अपने कॅरियर, काम और आजादी के साथ कोई समझौता नहीं करना पड़ा. उनके बच्चों ने कई बार पब्लिक इंटरव्यू में ये बात कही है कि उनके माता-पिता एक-दूसरे की निजता, स्वायत्तता और स्पेस का बहुत आदर करते थे. यही उनकी लंबी और मजबूत शादी की बुनियाद थी.
शादी के बाद शर्मिला ने सत्यकाम, तलाश, आराधना, छोटी बहू, अमर प्रेम, आ गले लग जा, आविष्कार, चरित्रहीन, अनाड़ी, चुपके-चुपके, आरण्येर दिन-रात्रि और सीमाबद्ध जैसी अपने समय की सुपरहिट फिल्मों में काम किया.