पास के शौचालय तक पहुंचाए, 'PeeBuddy'
बीते कुछ समय से विशेषकर महिलाओं के लिये काफी फायदेमंद साबित हो रही है शौचालय तलाशने वाली एप्पमहिलाओं के उत्पाद तैयार करने वाली कंपनी पीबडी लाई है Use-Refuse (यूज़-रिफ्यूज़) एप्लीकेशनइसके अलावा कई अन्य एप्प भी हैं सक्रिय जिन्हें उपयोगकर्ता गूगल प्लेस्टोर से कर सकते हैं लोडअधिकतर एप्प उपयोगकर्ता की जीपीएस लोकेशन के आधार पर नजदीकी शौचालय की देती हैं जानकारी
अब से कुछ महीने पहले की बात है जब अपनी गर्भावस्था के अंतिम दौर से गुजर रही मेरी एक परिचित पुणे में स्थित पिज्जाहट के आउटलेट में घुसीं। उनका वहां जाने का मकसद पिज्जा या कुछ और खाने का नहीं था बल्कि वे तो सिर्फ शौचालय का प्रयोग करने के इरादे से वहां गई थीं।
शौचालय का प्रयोग करने के बाद वे काफी देर तक वहां मौजूद कर्मचारियों के दूसरे उपभोक्ताओं के साथ व्यस्त होने का इंतजार करती रहीं ताकि वे बिना किसी प्रकार के सवाल-जवाब से रूबरू हुए आराम से बाहर निकल सकें। कितना अच्छा होता अगर मेरी उस परिचित को आजकल काफी प्रचलित और आम हो चुकी शौचालय तलाशने वाली एप्लीकेशनों के बारे में जानकारी होती।
भारत में घर से बाहर निकलने वाली अधिकतर महिलाओं को लगभग प्रतिदिन ही ऐसी स्थितियों से दो-चार होना पड़ता है लेकिन बहुत कम महिलाएं ही ऐसे उपलब्ध विकल्पों की जानकारी रखती हैं।
अभी पिछले सप्ताह ही महिलाओं के बीच स्वच्छता और अंतरंग देखभाल उत्पादों का निर्माण करने वाली दिल्ली स्थित एक कंपनी PeeBuddy (पी बडी) गूगलप्ले पर अपनी एक एप्लीकेशन Use-Refuse (यूज़-रिफ्यूज़) लेकर आया है।
पीबडी के संस्थापक दीप बजाज कहते हैं, ‘‘कोई भी महिला अपने सामने उपलब्ध शौचालय की स्थिति को देखते हुए हमारे द्वारा कागज से तैयार की गई विशेष डिस्पोज़ेबल डिवाइस ‘पीबडी’ का प्रयोग मूत्र विसर्जन के लिये कर सकती है। लेकिन सबसे बड़ी दिक्कत तो यही है कि पहले उसे यह तो पता हो कि नजदीकी शौचालय हैं कहां? इस स्थिति को देखते हुए हमने एक ऐसी एप्लीकेशन तैयार करने का फैसला किया जिसकी मदद से उपयोगकर्ता अपने नजदीकी शौचालय के बारे में पता लगा सके।’’
शौचालय तलाशने वाली लगभग सभी एप्लीकेशन किसी भी अन्य रेस्टोरेंट या खाने-पीने की सामग्री तलाशने वाले मंचों की तरह काम करती हैं और यह शौचालयों को आपके सम्मुख ऐसे पेश करती हैं जिसकी आप कल्पना भी नहीं कर सकते।
कुछ एप्लीकेशन तो अपनी शौचालयों की सूची में किसी विशेष शौचालय की तस्वीरें, विशेषताएं, रेटिंग और टायलेट पेपर से लेकर वहां मिलने वाली अन्य सुविधाओं का पूरा ब्यौरा उपयोगकर्ता के लिये रखती हैं तो दूसरी तरफ कुछ एप्लीकेशन सिर्फ बुनियादी जानकारी देते हुए उपयोगकर्ताओं के बताती हैं कि उनके पास मौजूद शौचालय निःशुल्क है या फिर उसका प्रयोग करने के लिये शुल्क देना होता है। इस प्रकार की सभी एप्लीकेशनों में एक बात बिल्कुल आम होती है कि वे उपयोगकर्ता को नजदीकी शौचालय से रूबरू करवाने के लिये उसकी जीपीएस लोकेशन का उपयोग करती हैं।
गूगल प्लेस्टोर पर ऐसी एप्लीकेशनों को तलाशना कोई मुश्किल काम नहीं है और पूरा प्लेस्टोर इनसे भरा पड़ा है। मूत्रालय, फ्लश, स्वच्छ भारत टाॅयलट लोकेटर, गोट्टागो, टाॅयलटफस्र्ट और सूसुविधा लोगों के ध्यान को अपनी ओर आकर्षित करने वाली कुछ एप्लीकेशन में से एक हैं।
लोगों को शौचालयों तक पहुंचने में मदद करने वाली इन एप्लीकेशनों के निर्माताओं में महिलाओं की सुरक्षा के लिये ‘निर्भया’ एप्प का निर्माण करने वाले भी शामिल हैं। यह देखते हुए कि शौचालय खासकर महिलाओं के लिये एक बुनियादी आवश्यकता है इन्होंने अपनी एप्लीकेशन में शहरी और ग्रामीण इलाकों में मौजूद सार्वजनिक शौचालयों की जानकारी को भी शामिल करने का फैसला किया।
स्मार्ट क्लाउड इंफोटेक के सीईओ गजानन साखरे द न्यू इंडियन एक्सप्रेस को दिये एक साक्षातकार में कहते हैं, ‘‘आज के समय में कई महिलाओं को कामकाज के सिलसिले में शहरों में बाहर का रुख करना पड़ता है और ऐसे में कई बार उन्हें दूरदराज में स्थित ग्रामीण इलाकों की यात्रा भी करनी पड़ती है और ऐसे में यह जानकारी उनके लिये काफी उपयोगी साबित हो सकती है। हमने सभी क्रियशील शौचालयों की लोकेशन को इकट्ठा कर लिया है और जल्द ही यह हमारी एप्प में मौजूद नक्शे में शामिल होगी।’’
भारत जैसे बड़े देश में शौचालयों की भारी कमी एक बहुत बड़ी समस्या और चुनौती है। वर्ष 2012 में एनएसएसओ (नेश्नल सैंपल सर्वे आॅफिस) द्वारा करवाये गए एक सर्वेक्षण पर भरोसा करें तो भारत मे सिर्फ 32 प्रतिशत ग्रामीण परिवारों में अपने शौचालय हैं। इसके अलावा अतिरिक्त 9 प्रतिशत लोग अपने घरों से बाहर मौजूद शौचालयों का प्रयोग करते हैं।
बीते कुछ वर्षों के दौरान देशभर में नए शौचालयों के निर्माण को लेकर काफी शोर-शराबे का माहौल रहा है। यहां तक कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी स्वयं भी देशभर में 100 मिलियन नए शौचालयों के निर्माण की घोषणा कर चुके हैं लेकिन असली चुनौती उनकी देखभाल करने की और पहले से ही मौजूद शौचालयों को क्रियशील बनाए रखने की है।
दीप कहते हैं, ‘‘हम प्रत्येक शौचालय को बिल्कुल साफ-सुथरा बनाना चाहते हैं। ऐसा नहीं है कि सार्वजनिक स्थानों पर शौचालयों का संचालन करने वाले व्यक्ति इस दिशा में प्रयास नहीं करते हैं लेकिन विभिन्न कारणों के चलते माइक्रो स्तर की निगरानी रखना एक चुनौतीपूर्ण कार्य है। इस एप्प की सहायता से वे शौचालयों में मौजूद सुविधाओं के बारे में उपयोगकर्ताओं की राय से वाकिफ हो सकते हैं और उसी के अनुसार रखरखाव के काम का खांचा तैयार कर सकते हैं।’’
हालांकि शहरी इलाकों में स्थिति कमोबेश बेहतर है। इन इलाकों में नागरिकों के लिये सैंकड़ों की संख्या में सार्वजनिक शौचालय मौजूद हैं लेकिन फिर भी अतिरिक्त जानकारी हमेशा ही एक वरदान की तरह होती है। कोई भी महिला कभी यह नहीं चाहेगी कि चूंकि वह उपभोक्ता नहीं है इसलिये उसके लिये दरवाजे बंद कर दिये जाएं।
उपयोगकर्ताओं के लिये मौजूद कुछ एप्लीकेशन सिर्फ सार्वजनिक शौचालयों की जानकारी साझा करते हैं जिन्हें तलाशना अपेक्षाकृत आसान होता है और ऐसे में अगर किसी एप्प को वास्तव में लोगों की नजरों में खरा उतरना है तो उसमें ऐसे सभी शौचालयों की जानकारी होनी चाहिये जो आम लोगों के लिये खुले हैं।
उदाहरण के लिये पीबडी की टीम के पास ऐसे स्वयंसेवकों की खासी संख्या मौजूद है जो मुंबई में मौजूद स्थानीय शौचालयों को तलाशने और फिर उन्हें एप्लीकेशन पर डालने के काम में लगे हुए हैं। आने वाले समय में इनका इरादा कंपनियों और पेट्रोल पंप मालिकों से मिलकर उनके शौचालयों के रखरखाव का जिम्मा लेने और समाज की सेवा के लिये उन्हें सूचिबद्ध करने का होगा।
अंत में दीप कहते हैं, ‘‘अगर वे लोग वास्तव में उपभोक्ताओं पर केंद्रित हैं और व्यापार के संचालन के लिये आवश्यक सभी प्रक्रियाओं का पालन कर रहे हैं और इनके शौचालय साफ-सुथरी स्थिति में हैं तो ये यूज-रिफ्यूज़ जैसी शौचालयों को तलाशने वाली एप्लीकेशनों पर खुद की सूचीबद्ध करवाने में जरा भी नहीं हिचकेंगे।’’