मदद करने को तैयार हाथों को जरूरतमंदों तक पहुंचाने का काम करती है 'खुशियां'
यदि आप वाकई ज़रूरतमंदों के चेहरे पर मुस्कान बिखेरना चाहते हैं, तो 'खुशियां' आयें। खुशियां, एक ऐसी संस्था जो आपको आपकी जरूरत के हिसाब से करती है सही एनजीओ से जुड़ने में मदद...
कई बार ऐसा होता है न कि हमारे पास देने को खूब सारे कपड़े हों घर पर लेकिन हमें समझ नहीं आता कि जरूरतमंद लोगों तक कैसे पहुंचा जाए, हमारे पास किताबें होती हैं, जिनसे कई नौनिहालों का भविष्य संवर जाए लेकिन हम उन तक पहुंच ही नहीं पाते, हमारी इसी कसमसाहट को कम करने का काम करता है 'खुशियां'।
कई बार ऐसा होता है न कि हमारे पास देने को खूब सारे कपड़े हों घर पर लेकिन हमें समझ नहीं आता कि जरूरतमंद लोगों तक कैसे पहुंचा जाए, हमारे पास किताबें होती हैं, जिनसे कई नौनिहालों का भविष्य संवर जाए लेकिन हम उन तक पहुंच ही नहीं पाते, हमारा बड़ा दिल करता है कि किसी के काम आ सकें लेकिन इस सेवा के लिए सही जगह तक नहीं पहुंच पाते हैं, हमारी इसी कसमसाहट को कम करने का काम करता है 'खुशियां'। खुशियां, एक ऐसी संस्था जो आपको आपकी जरूरत के हिसाब से सही एनजीओ के साथ जुड़ने में मदद करती है अगर आप वाकई में जरूरतमंदों के चेहरे पर मुस्कान बिखेरना चाहते हैं। खुशियां ना सिर्फ एनजीओ बल्कि कॉर्पोरेट घरानों और ऐसे लोगों के साथ तालमेल बिठाती है जिनकी खूबसूरत कोशिश और सहयोग से सभी के लिये खुशियां बिखेरी जा सकें।
खुशियां का अपना वॉलयिंटर बेस्ड सिस्टम है। वो इवेंट करवाता है, लोगों को जोड़ता है, उस दिशा में काम कर रही स्वयंसेवी संस्थाओं को एक छत के नीचे लाता है और ज्यादा से ज्यादा लोगों तक मदद पहुंचाने में यकीन करता है। मदद करने वाले ऐसे ही लोगों को साथ लाने के लिये जुलाई 2013 में शुरू हुई खुशियां ने साल भर के अंदर 11 सफल इवेंट करवाए और सितंबर 2014 में रजिस्टर्ड संस्था बन गई। इस संस्था को शुरू करने वाले फाउंडर रोहित गुप्ता खुद भी एक जुझारू सामाजिक कार्यकर्ता हैं। उन्होंने कभी अपना एनजीओ खोलकर कुछ हासिल करने की कोशिश नहीं की बल्कि सामाजिक कार्यों में लग कर दूसरे लेवल पर जाकर अलग अलग एनजीओ से जरूरतमंदों को मदद करने वालों के साथ जोड़ते चले गए।
योरस्टोरी से बातचीत में रोहित ने बताया, 'खुशियां' का काम करने का अपना अनोखा तरीका है जिसके लोगों और संस्थाओं को जोड़ा जाता है। खुशियां में अपनी खुशी से मदद के लिये आगे आने वाले लोगों की मदद से साप्ताहिक कार्यक्रम तय किये जाते हैं। ऐसे खास मौकों की पहचान की जाती है, ज़रूरतों को परखा जाता है और फिर इवेंट प्लान कर दिल्ली-एनसीआर के अलग-अलग हिस्सों में कार्यक्रम किये जाते हैं।
सारे वॉलेन्टियर अपने स्तर पर इवेंट के लिये अपनी भागेदारी निभाते हैं। कोई एडमिन संभालता है तो कोई प्रमोशन करता है, कुछ तस्वीरें निकालते हैं तो कुछ मैनेजमेंट में अपना सहयोग देते हैं। वॉलन्टियर अपनी चाहत के हिसाब से अपना योगदान उपयुक्त और रिक्त जगहों पर अपनी सेवा दे सकते हैं। 2017 में खुशियां ने 35 एनजीओ के साथ मिलकर 50 से भी ज्यादा इवेंट किये।
खुशियां अपने वॉलन्टियर्स की शक्ति और उनके मूल्य को पहचानी है, और उन्हें सशक्त बनाने के लिये वक्त-वक्त पर सामाजि इवेंट, खास-मुलाकात कराती है ताकि सबको मौके मिलते रहें और आगे के लिये वॉलनिटयर्स को नए आइडिया मिलते रहें। एनजीओ से होने वाले फायदों के बार में समझने में ऐसे कार्यक्रमों के जरिये मदद मिलती है, और नए वॉलेन्टियरिंग तरीकों की समझ भी बढ़ती है।
साथ ही मैनेजमेंट स्किल को भी बेहतर बनाने के विकल्प खुल जाते हैं। खुशियां के हर इवेंट को अलग भागों में बांट कर मौसम, त्योहार, उम्र, और एनजीओ के ज़रूरतों के हिसाब से प्लान किया जाता है।
गर्मियों में नए सेशन के दौरान पढाई से संबंधित सामग्रियों को उपलब्ध कराना, कपड़ों का वितरण, ठंड के दौरान गर्म कपड़ों को जमा कर ज़रूरतमंदों को उप्लब्ध कराना। या होली, दिवाली, क्रिसमस, लोहड़ी जैसे त्योहारों के मौके पर इवेंट का निष्पादन। ओल्ड एज होम और दिव्यांग बच्चों के अलावा ऑर्फनेज के बच्चों के लिये खास त्योहारों के वक्त कार्यक्रम करना भी प्लान का हिस्सा होता है।
खुशियां शिक्षक दिवस और वातावरण दिवस के मौकों पर भी लोगों के जागरूक करने के लिये इवेंट करवाती है। स्किल डेवेलपमेंट के लिये आर्ट और क्राफ्ट के अलावा काम सिखाने के लिए भी वर्कशॉप कराई जाती है। अलग अलग एनजीओ अपने तरीके से इन कार्यक्रमों के लिये अपना सहयोग देते हैं। अपने कामों के लिए संस्था कई सम्मान भी हासिल कर चुकी है। खुशियां तक अपनी मदद पहुंचाने के लिए उनकी वेबसाइट और फेसबुक पेज पर पहुंचे।
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