एक युवती जिसकी "आस्था" है एडवेंचर में
आस्था चतुर्वेदी ने एडवेंचर स्पोर्ट्स के ज़रिये बनाया बिज़नेस मॉडल स्पोर्ट्स के ज़रिये लोगों को जीने का नया तरीका बताने की कोशिश लोगों की तकलीफें दूर करने उन्हें जोड़ा एडवेंचर स्पोर्ट्स के साथ संघर्ष और मेहनत के बल पर चुनौतियों को किया पार
रात दिन काम में डूबे किसी उद्यमी से यह पूछा जाए कि वह छुट्टियों का मज़ा कैसे लेना चाहेंगे तो अधिकांश का जवाब शायद यही होगा कि वह किसी एडवेंचर स्पोर्ट्स का मज़ा लेना चाहेंगे जैसे - पर्वतारोहण, बंजी जंपिंग, राफ्टिंग, स्कींग, ट्रेकिंग या फिर मैराथन में हिस्सा लेना चाहेंगे। लेकिन वक्त की कमी व सुरक्षा के मद्देनज़र एडवेंचर स्पोर्ट्स भी अमूमन एक दफा की जाने वाली गतिविधियां बनकर रह जाते हैं। लेकिन अब स्थिति बदल गई है। वाइल्ड क्राफ्ट को फंड मिलने और थ्रिलोफिलिया के सामने आने से एडवेंचर को नोटिस किया जा रहा है। यही कारण है कि अर्बन क्लाइम्बर्स जैसी संस्था की संस्थापक आस्था चतुर्वेदी एडवेंचर स्पोर्ट्स को पूरी हिफाज़त के साथ आयोजित करने के लिए एक संयोजित मंच तैयार कर रही हैं। दरअसल आज की पीढ़ी आउटडोर डेफिसिएट डिसऑर्डर यानी बाहरी अभाव विकार की शिकार है, जो अकसर वक्त की कमी का हवाला देती है। आस्था का मकसद लाइफस्टाइल से जुड़ी इस दिक्कत से लोगों को निजात दिलाना है। उनकी कंपनी अर्बन क्लाइम्बर्स ग्राहकों को एडवेंचर स्पोर्ट्स का अनुभव कराने के लिए एक कदम आगे बढ़कर खुद उनके पास जाकर अपनी सेवाएं देती है।
कैसे हुई शुरुआत
आस्था एडवेंचर की दुनिया में नई नहीं हैं। वे बचपन से ही डोंगी (काइएक), ट्रेकिंग करती रही हैं। आस्था 2005 से 2009 तक यूएस में रहीं, जहां उन्हें पहली बार एहसास हुआ कि चढ़ाई यानी क्लाइबिंग को पेशेवर कारोबार बनाया जा सकता है। बस यहीं से अर्बन क्लाइंबर्स का ख्याल उनके दिमाग में गूंजा।
2012 की आखिरी तिमाही में हालात कुछ ऐसे बन पड़े कि आस्था को बगैर ध्यान भटकाए अपनी नौकरी पर फोकस करना था, लेकिन अर्बन क्लाइम्बर्स का ख्याल उनके ज़हन में था, लिहाज़ा उन्होंने अपनी अच्छी-खासी कॉरपोरेट नौकरी को अलविदा कह दिया। ये वो वक्त था, जब अर्बन क्लाइम्बर्स को आगे बढ़ते देखने की उनकी इच्छा सातवें आसमान पर पहुंच गई थी और आस्था ने इस दिशा में काम करना शुरू भी कर दिया था। लेकिन आस्था को उस समय बड़ा झटका लगा, जब एक मैराथन रेस की तैयारी के दौरान उनके घुटने के ऊपर की हड्डी चूर-चूर हो गई। इस घटना ने उन्हें निराशा में डुबो दिया, लेकिन वो इससे उबरी और दोबारा कुछ-कर गुजरऩे के लिए कमर कस ली। अपने चोटिल पैर के साथ ज़्यादातर वक्त बेड पर गुज़ारते हुए ही आस्था ने अर्बन क्लाइम्बर्स की रूपरेखा तैयार की। उनकी दृढ़ता और संकल्प की बदौलत अर्बन क्लाइम्बर्स ने आखिरकार अप्रैल २०१३ में हकीकत का जामा पहना।
कैसे खड़ा हुआ कारोबारी मॉडल
अर्बन क्लाइम्बर्स ने अपने पांव पसारने के लिए एक बहुआयामी रणनीति अपनाई। कंपनी बड़े अपार्टमेंट कॉम्पलेक्स के लोगों और स्कूलों से जुड़ी हुई है। ये क्लबों और रिसॉट्र्स में भी सक्रिय है, जिससे कंपनी को बड़े कॉरपोरेट समूहों को अपनी सेवाएं देने में मदद मिलती है। हमारा 'द वॉल ऑफ लाइफÓ नाम का एक कार्यक्रम है, जहां हम ट्रेनर्स के साथ काम करके इस कार्यक्रम के ज़रिए बड़े कॉरपोरेट समूहों को सेवाएं देते हैं। ये टीम बिल्डिंग से जुड़ा प्रोग्राम है।
चुनौतियां -
आस्था कहती हैं, महिला होने के नाते, बिजनेस करना अगर बेहद मुश्किल नहीं, तो उतना आसान भी नहीं है। उनकी मुख्य चुनौतियों में विक्रेताओं का प्रबंधन शामिल है। जैसे फेब्रिकेटर और लकड़ी के आपूर्तिकर्ताओं को ढूंढना। ये क्लासिक अनियोजित क्षेत्र पुरुषों के गढ़ हैं और आपका काम हो जाए, ये सुनिश्चित करने के लिए आपको इन विक्रेताओं से डील करते हुए ज़्यादा चौकन्ना रहना पड़ता है।
एक बहुत ज़्यादा व्यावहारिक अनुभव येलागिरी में इंडस स्कूल ऑफ लीडरशिप में चढ़ाई के लिए दीवार तैयार करना रहा, जिसमें एक हिल स्टेशन में दीवार खड़ी करने की चुनौती थी। इस दौरान लोगों के साथ-साथ सामान को भी करीब 20 दोहरे मोड़ों से लाना था। आस्था बताती हैं वक्त का प्रबंधन किसी भी उद्यमी के लिए सबसे बड़ी चुनौती है। अचानक आपको कई कामों पर फोकस करना पड़ सकता है आपको क्या-क्या काम करने हैं क्या नहीं करने इन सब की सूची बनती रहती है। एक दूसरी बड़ी चुनौती, ढंग के लोगों को अपने साथ जोडऩा और उन्हें साथ बनाए रखना है। ट्रेनरों की तादाद बेशक अच्छी-खासी है, लेकिन उन्हें भी ट्रेनिंग दिए जाने की ज़रूरत है, मसलन बोल-चाल का तरीका और व्यवहार कुशलता। आस्था का फोकस ऐसे युवा इंटर्नों और छात्रों की भर्ती पर है, जो अपनी जिंदगी में कुछ अलग और रोमांचक करना चाहते हैं। कुशल ट्रेनरों के लिए उन्होंने एक ट्रेनर मैनेजमेंट प्रोग्राम शुरू किया है।
आला दर्ज़े का बाज़ार और पहले आने के फायदे
आस्था मानती हैं कि अर्बन क्लाइम्बर्स को इस बाज़ार में शुरुआती कदम रखने का फायदा मिला है, क्योंकि वो इस क्षेत्र में पूरा सेट-अप खड़ा करने से लेकर ट्रेनिंग देने वाली अकेली कंपनी है। एक बार जब लोग सुरक्षा और विश्वसनीयता को लेकर आप पर भरोसा कर लेते हैं, तो वे स्पोटर््स में हाथ आज़माने के लिए खुद-ब-खुद आगे आते हैं। आस्था कहती हैं कि इस क्षेत्र में निवेशकों को आकर्षित करना भी काफी मुश्किल भरा रहा। खास तौर पर बैंगलोर जैसे शहर में, जहां खाने-पीने और तकनीक से जुड़ी नई कंपनियों का ही बोलबाला है।
आस्था ने कंपनी की शुरुआत बहुत कम बजट से की लेकिन जल्द ही दुबई के एक निवेशक ने उनकी कंपनी पर भरोसा जताया और फिर यह सिलसिला बढ़ता चला गया।
ग्राहक -
अर्बन क्लाइम्बर्स की मौजूदगी का कारण है, आज की तनाव व दबाव भरी लाइफ स्टाइल। ट्रेकिंग में ज़्यादातर बच्चे दिलचस्पी रखते हैं। हम पांच से तेरह चौदह साल तक के बच्चों को चढ़ाई करवाते हैं। हमारी सबसे बड़ी चुनौती टीचरों और बच्चों के माता-पिता को इसके लिए राज़ी करना होता है। बेशक वे कहीं ना कहीं इसके फायदे समझते हैं, लेकिन इस बात से अंजान रहते हैं कि ये फायदे उनके लिए सुलभ हैं।
अर्बन क्लाइम्बर्स, ओकरिज स्कूल और ऑरिनको अकादमी में ट्रेनिंग देता है। इतना ही नहीं कंपनी स्कूलों के लिए ट्रेनिंग की विषय वस्तु भी तैयार करती है। एक ग्राहक के नज़रिए से, बच्चों के साथ काम करना काफी तसल्ली वाला होता है। हम उन्हें चढ़ाई की बारीकियां और उसके फायदों के बारे में बताते हैं, जिससे उनके लिए यह केवल एक खेल नहीं रहता बल्कि भविष्य में काम आने वाली सीख बन जाता है।
अब तक का सफर -
आस्था बताती हैं कि उनके लिए यह सफर काफी रोमांचक रहा है। जिसने उन्हें पूरे समय एक्टिव बनाए रखा। इसके अलावा बहुत कुछ सीखने को भी मिला। आगे वे बताती हैं कि भारत में किसी भी कारोबार के लिए जगह की कमी सबसे बड़ी चुनौती है। अर्बन क्लाइम्बर्स ने एक बिल्डिंग के बेकार हिस्से को अच्छे ढंग से इस्तेमाल किया और इस समस्या से पार पाया। चढ़ाई के लिए जगह तैयार करने में हमें थोड़ा बहुत पैसा, समय और मेहनत लगी।
यह एक सही दिशा में एक सही कदम साबित हुआ। इसने हमारे लिए भविष्य के दरवाजे खोल दिए।
कंपनी को कई लोगों से मदद मिली, जिनमें आस्था के दोस्त शामिल थे साथ ही चढ़ाई करने वाले, कंपनी को जानने वाले और भारत से बाहर रह रहे वे लोग भी, जिन्होंने आस्था के काम को देखा, समझा।
भविष्य की योजनाएं
अब तक कंपनी 10 दीवारें तैयार कर चुकी है और भविष्य में काफी-कुछ करना चाहती है। फिलहाल अर्बन क्लाइम्बर्स स्कूलों के साथ काम कर रहा है और उसका अगला लक्ष्य है, चढ़ाई करने वालों के लिए एक मंच तैयार कर एकजुट करना।
अर्बन क्लाइम्बर्स के पास अपने ग्राहकों की ज़रूरत और जेब के मुताबिक उत्पाद और सेवाएं हैं, जो उसे सबसे अलग बनाता है। आस्था बताती हैं, अगर एक ग्राहक एक दीवार खरीदना चाहता है, तो हमारे पास ऐसे विशेषज्ञ हैं, जो उसके बजट के मुताबिक उसे दीवार देगें। अगर उनके ग्राहकों की संख्या ज़्यादा है, तो हमारे पास उनके लिए दीवार खड़ी करने और उसे ऑपरेट करने वाला मॉडल भी मौजूद है। यह एक नकद गहन मॉडल (कैश इंटेसिव मॉडल) है।
आगे वे बताती हैं कि हमें कंपनी में 2 करोड़ रूपए लगाए जाने की उम्मीद है लेकिन हम निवेशक की इच्छा के मुताबिक भी अपनी योजना तैयार कर सकते हैं।
एक डेनिश कहावत के मुताबिक, सबसे कठिन दहलीजऩुमा पर्वत पार करना है। लिहाज़ा आप किसका इंतज़ार कर रहे हैं? जूते पहनिए और चढ़ाई शुरू कीजिए।