गाड़ियों के प्रदूषण को रोकने में मदद कर सकती है आईआईटी ग्रेजुएट की ये खास डिवाइस
हम सभी जानते हैं कि वायु प्रदूषण में वाहनों से निकलने वाले प्रदूषण का बड़ा योगदान है। कई सरकारें समस्या के समाधान के लिए नए-नए तरीके आजमा रही हैं। मिसाल के तौर पर, दिल्ली सरकार ने जनवरी 2016 में 'ऑड-इवन' नियम पेश किया था। इसके मुताबिक एक दिन ऑड नंबर की गाड़ियां और एक दिन ईवन नंबर की गाड़ियां ही सड़कों पर चलेंगी। एक सर्वेक्षण के अनुसार, भारत में 21 करोड़ से अधिक वाहन हैं।
हालांकि इससे सड़क पर आधे वाहनों को रखने से प्रदूषण को थोड़ा कम करने में मदद जरूर मिलेगी क्योंकि कार्बन उत्सर्जन कम होगा, लेकिन फिर भी यह कोई ठोस योजना नहीं लगती है।
वाहनों के प्रदूषण पर अंकुश लगाने में मदद करने के लिए, IIT-खड़गपुर स्नातक ने प्रदूषक से निपटने के लिए '-2.5' नामक एक उपकरण बनाया है। मैकेनिकल इंजीनियर देबायन साहा ने इस तरह की डिवाइस बनाई है कि यह वाहनों के साइलेंसर पाइप के पास फिट हो सकती है, ताकि वाहनों के प्रदूषण को कम किया जा सके।
देबायन ने बिजनेस स्टैंडर्ड को बताया,
"हमारे द्वारा विकसित तकनीक में हमने इलेक्ट्रिक एनर्जी और वेव एनर्जी का इस्तेमाल किया है जो PM 2.5 जैसे प्रदूषकों को एक चुंबक में बदल देता है। हमारी तकनीक से प्रदूषक तत्व एक चुंबक की तरह काम करेंगे और पर्यावरण में फैले बाकी प्रदूषक तत्व को खींचेंगे। जब छोटे-छोटे प्रदूषक तत्व मिलकर बड़े हो जाएंगे, वे भार की वजह से जमीन पर गिरेंगे, न कि हवा में फैलेंगे।"
दरअसल पीएम 2.5 हवा में मौजूद छोटे कण होते हैं जो दृश्यता को कम करते हैं और जब इनका स्तर बढ़ता है तो यह हवा धुंधली दिखाई देती है। यह एक प्रमुख वायु प्रदूषक है जो फेफड़ों में गहराई से पहुंच सकता है, जिससे आंख, नाक, गले और फेफड़ों में जलन, खांसी, सांस लेने में तकलीफ जैसी अन्य स्वास्थ्य संबंधी दिक्कतें पैदा हो सकती हैं।
यह अस्थमा और हृदय रोग जैसी गंभीर बीमारियों का कारण भी बन सकता है। देबायन द्वारा निर्मित डिवाइस को कारों से लेकर बसों तक किसी भी वाहन पर लगाया जा सकता है। एक बार PM 2.5 नामक इस डिवाइस को कार में लगा देने से यह उसके आसपास की 10 कारों से होने वाले वायु प्रदूषण को भी रोक सकता है।
देबायन कहते हैं,
"सड़क पर एक कार अब अपने पास के वातावरण में प्रदूषण को कम कर सकती है, और संभवतः इसके आसपास के क्षेत्र में 10 कारों से उत्सर्जित प्रदूषण को बेअसर कर सकती है। गहराई से इस समस्या को जानने पर, उन्होंने पाया कि मुख्य कारण पीएम- 2.5 नहीं है, बल्कि इसका छोटे आकार का होना है। जिसके कारण यह हमारे फेफड़ों और रक्तप्रवाह में आसानी से प्रवेश कर सकता है।”
ScoopWhoop की रिपोर्ट के मुताबिक देबयान वर्तमान में स्टैनफोर्ड यूनिवर्सिटी में एक ग्लोबल बायोडिजाइन स्टूडेंट है। वे प्रदूषण को रोकने के लिए वाहनों पर अपने डिवाइस को लगाने के लिए विभिन्न संगठनों के साथ बातचीत कर रहे हैं।