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मिलें 2 मिलियन से अधिक पेड़ लगाने वाली 49 वर्षीय चिकपल्ली अनासुम्मा से, हाल ही में जीता है यूनेस्को पुरस्कार

अपने ग्रीन इनिशिएटिव के लिए यूनेस्को पुरस्कार जीता है अनासुम्मा ने...

मिलें 2 मिलियन से अधिक पेड़ लगाने वाली 49 वर्षीय चिकपल्ली अनासुम्मा से, हाल ही में जीता है यूनेस्को पुरस्कार

Tuesday October 29, 2019 , 3 min Read

प्रगति के नाम पर, हम अपने पर्यावरण को बहुत नुकसान पहुंचा रहे हैं, जिसके कारण हम आज ग्लोबल वार्मिंग और जलवायु परिवर्तन जैसे गभीर संकट का सामना कर रहे हैं। वर्षों से, संबंधित अधिकारियों और सरकारों के ध्यान में लाने के लिए दुनिया भर में कई कार्यक्रम, अनगिनत याचिकाएँ और हड़तालें हुई हैं।


स्थिति की गंभीरता को समझते हुए, और यह महसूस करते हुए कि अभी भी बहुत देर नहीं हुई है, कई व्यक्तियों ने अपने-अपने तरीके से इस समस्या को लेकर लड़ाई लड़ी है।


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49 वर्षीय चिकपल्ली अनासुम्मा (फोटो: सोशल मीडिया)

इसी लड़ाई में शामिल हैं तेलंगाना के संगारेड्डी जिले की निवासी चिकपल्ली अनासुम्मा (Chikapalli Anasuyamma) जो अपने छोटे प्रयासों से ही सही लेकिन पर्यावरण की रक्षा के लिए एक बड़ा योगदान दे रही हैं।


49 वर्षीय चिकपल्ली अनासुम्मा ने बंजर भूमि पर लगभग दो मिलियन पौधे लगाए हैं, जिसके लिए उन्होंने इस साल सितंबर में न्यूयॉर्क में यूनेस्को पुरस्कार (UNESCO Equator award) जीता है।


'डाउन टू अर्थ' के साथ इस मुद्दे पर बोलते हुए, उन्होंने कहा,

"अब तक, मैं दो मिलियन से अधिक पौधों को कचरे के टीलों पर उगा चुकी हूं, और दो दर्जन पेड़ पड़ोस के जंगलों को लगाए हैं।"


हालाँकि, हरियाली के साथ चिकपल्ली की ये पहल अचानक शुरू नहीं हुई। अपने पति से अलग होने के बाद, वह छोटी-मोटी जॉब कर रही थीं। कुछ समय बाद, वह एक महिला समूह, डेक्कन डेवलपमेंट सोसाइटी (DDS) की सदस्य बन गईं, जो बंजर भूमि को जंगलों में बदलने का काम कर रही थी।





बंजर भूमि को हरा-भरा करने के लिए उन्होंने पास्तापुर में एक समूह का गठन किया और अपने आसपास के गांवों में मौजूद खाली बंजर पड़ी जमीन को जंगलों में बदल दिया। जो कभी एक छोटी नर्सरी के साथ शुरू हुआ था, चिकपल्ली ने उसे एक बड़ी पहल में बदल दिया था। उनकी कड़ी मेहनत और दृढ़ संकल्प की बदौलत, आज 16 गांव लाभान्वित हो रहे हैं। जिसके कारण वह अब गुब्बड़ी अनासुम्मा के नाम से लोकप्रिय है।

एक जंगल, जो उन्होंने अपने एक पड़ोस के गांव में तैयार किया, वो 12-16 एकड़ में फैला हुआ है, इस जंगल में लकड़ी, फल और औषधीय पौधे उगाए जाते हैं। हालांकि, उनकी सबसे यादगार पहल तेलंगाना के इंडोर गांव में हुई थी।

यह गाँव उन 49 गाँवों में से एक था, जो 1990 में सिंगूर बांध परियोजना के कारण डूब गया था। यह तथ्य जानने के बाद, चिकपल्ली जल्द ही वहां पहुंचीं और आदिवासियों को आश्वस्त किया कि पास की पहाड़ी को समुदाय के भोजन और आजीविका के स्रोत के रूप में विकसित किया जा सकता है। ग्रीन क्रूसेडर ने लगभग 40 दलित महिलाओं को प्रशिक्षित किया ताकि 28 हेक्टेयर पहाड़ी में फैले पड़ोस के जंगल को विकसित किया जा सके।


चिकपल्ली कहती हैं,

“हर दिन, महिलाएं भूमि को नम बनाने के लिए बर्तन में पानी भरकर ले जाती थीं। जल्द ही, यह खिलना शुरू हो गया, और पहाड़ी का एक हिस्सा हरा-भरा हो गया।”

आज, जंगल में 0.3 मिलियन पेड़ हैं, जिन्हें एक पूर्ण जंगल में विकसित होने में पांच साल लगे। यह समुदाय के लिए ईंधन, औषधीय जड़ी-बूटियों और भोजन के स्रोत के रूप में भी उभरा है।